निज प्रभुमय देखहिं जगत : श्रीकृष्ण इष्ट थे स्वामी रामतीर्थ जी के

काका हरिओम्

Uttarakhand

जीवन में साधना का शुभारंभ प्रेम की साधना से हुआ करता है। अंतःकरण का शोधन इसी से होता है। समस्त साधनाओं की उपलब्धि भी प्रेम ही है।

स्वामी राम की साधना का आधार भी श्रीकृष्ण का प्रेम था। कृष्ण विरह में वह रात को सो नहीं पाते थे। रोते रहते। पुकारते कि कब मिलोगे। सुबह उठते तो सिराहना बुरी तरह से भीगा होता। यह विरह इतना बढ़ गया कि बादलों के श्याम रंग में भी श्रीकृष्ण दिखाई देने लगे। लोग उन्हें बावरा कहते।

वह विषधर में भी अपने प्रियतम के दर्शन करते। ऐसा संस्मरण एक महापुरुष ने सुनाया था। इन्हें लाहौर के उस कॉलेज में पढ़ने का सौभाग्य मिला था, जिसमें गोस्वामी तीरथराम पढ़ाया करते थे। उन्हें यह घटना वहां काम करनेवाले एक सेवक ने बताई थी। उसने स्वयं देखी थी प्रोफेसर तीरथराम की यह भावदशा।

एक बार उन्होंने श्रीकृष्ण के विरह में अपने शरीर को गंगाजी की पवित्र धारा में यह कहते हुए समर्पित कर दिया था कि तेरे दर्शन यदि नहीं हुए तो शरीर को रखकर क्या करूंगा। और तत्काल उन्हें श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हुआ। यही वह टर्निंग प्वाइंट था, जिसने एक भक्त को परमज्ञान की उच्चतम स्थिति पर आरूढ़ कर दिया। ध्यान रहे,

‘इश्क जब तक न सके रुसवा

आदमी काम का नहीं होता।’

एक के बन जाओ, सबके बन जाओगे।

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