द्रोणागिरी शिखर : असंख्य फूलों के बीच ‘संजीवनी बूटी’ की पहचान आज भी पहेली

डाॅ. माया राम उनियाल
से. नि. निदेशक आयुष (भारत सरकार)

Uttarakhand

यद्यद्विभूनिमत्सत्वं, श्रीमद्र्जतमेव वा।

तत्तदेवावगच्छत्वं, ममतेजोश संभवम्?

गीता के दशम अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! जो भी ऐश्वर्ययुक्त, कान्ति युक्त और शक्तियुक्त वस्तु हैं, उसको तू मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न हुई जान।

योगीराज श्रीकृष्ण ने स्वयं श्रीमुख से यह स्पष्ट किया है कि संसार में जो भी विलक्षण वस्तु होती हैं, वे सब परमात्मा के ही रूप हैं। द्रोणागिरी पर्वत अपने आप में स्वयं विलक्षण शक्ति संपन्न पर्वत है, जो त्रेतायुग से आज तक अपनी विलक्षणता के लिए चर्चित है। भारत ही नहीं, भारत के बाहर लंका के सुषैण वैद्य को भी इस पर्वत की शक्ति सम्पन्नता का ज्ञान था। तभी तो उन्होंने लंका से हनुमान को लाखों पर्वतों को लांघकर द्रोणागिरी पर्वत पर जाने को कहा।

द्रोणागिरी ईश्वर के रूप के समान लाखों पर्वतों के मध्य गुप्त रूप से स्थित है। व्यावहारिक जगत में भी हम देखते हैं कि जो जितनी मूल्यवान वस्तु होती है, उसकी सुरक्षा व्यवस्था भी उसी अनुपात में की जाती है। प्रकृति ने भी अपने इस अनमोल रत्न को लाखों पर्वतों के मध्य गुप्त रखा है। ये लाखों अनुलंघ्य पर्वतपुंज इसके सुरक्षा कर्मी हैं।

दूनागिरी गांव के ऊपर वाली चोटी दूनागिरी हिम शिखर हैं। दूनागिरी गांव से ऊपर पूर्व दिशा में 2.5 कि.मी. चढ़कर एक लाल स्फटिक जैसा पाषाण युक्त टीला है। इसमें पहुंचकर दूनागिरी पर्वत के पीछे द्रोणागिरी पर्वत शिखर के दर्शन होते हैं। इसका आधा भाग सदा हिमाच्छादित रहता है। बायां भाग जो हनुमान जी द्वारा खंडित किया गया है, स्पष्ट दिखाई देता है।

इस हिमाच्छादित भाग पर तीन स्थानों पर लाल रंग की कोई वस्तु पर्वत के हृदय को चीर कर हिम से बाहर आकर हिम के ही ऊपर पतली अरुण जलधार की तरह कुछ दूर तक बहकर तीन लाल कुण्ड के रूप में दृष्टिगोचर होती हैै। हिमाच्छादित भाग से नीचे की धरती कई उपत्यकाओं में विभक्त है। इन्हीं बुग्याली घासों और अनेक रंगों वाले फूलों में संजीवनी बूटी भी होगी, जिसे सुषैण वैद्य जैसा पारखी ही पहचान सकता है।

सृष्टिकर्ता ने इस पर्वत की संरचना इस प्रकार से की है कि सामान्य जन इसे आसानी से न पहचान सकें। इस अनमोल खजाने की रक्षा के लिए कोई महान शक्तिशाली देव प्रधान रक्षक होगा। यह प्रधान रक्षक पर्वत ही देवता के रूपमान में विद्यमान है। बिना इसे परास्त किए हुए इस मूल्यवान खजाने पर हाथ भी कौन लगा सकता है। अतः महाशक्तिशाली हनुमान जी ने लक्ष्मण जी की प्राणों की रक्षा के लिए पर्वत से द्वंद्व किया और उसकी बांयी भुजा पर गदा से प्रहार करने को विवश होना पड़ा।

इन असंख्य फूलों के मध्य संजीवनी बूटी कौन सी है, यह प्रश्न जानकारी के अभाव में त्रेतायुग से आज तक पहेली बना हुआ है। यद्यपि अन्य जड़ी-बूटियों से लोग आज भी लाभान्वित हो रहे हैं। असंख्य जड़ी-बूटियां औषधि के उपयोग में लायी जाती हैं किंतु इनका दोहन जिस तरीके से होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। साथ ही जो मर्मज्ञ वैद्य हैं वे बूटियों का सही पहचान अन्य जनों को नहीं देना चाहते हैं, जिससे ज्ञान विस्तार नहीं हो पा रहा है। मात्र जड़ी पहचानने से भी लाभ नहीं होता है। उसके गुण दोष एवं सही उपयोग की विधि को जानना भी परम आवश्यक है।

स्थानीय वैद्य इस दिशा में बड़े उपयोगी हो सकते हैं किन्तु इन लोगों की मानसिकता कुछ रूढ़िगत विचारों से ग्रस्त हैं। इनका मानना है कि हर किसी को जड़ी-बूटी बता देने से वे जड़ियां प्रभावहीन हो जाती हैं। मुझे लगता है कि स्थानीय वैद्यों की मानसिकता के गर्भ में जो सोच है उसके पीछे सुपात्रता की पहचान अनिवार्य शर्त है। यह उचित भी है। सुपात्र को दिया गया ज्ञान ही जन कल्याणकारी होता है। बूटियों का अनभिज्ञ प्रयोग प्राण घातक भी हो सकता है।

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