आखिर सुविधा का इतिहास कब तक पढ़ाया जाएगा ?

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’

Uttarakhand

(स्वतंत्र लेखन, अध्यापन, सांस्कृतिक व सामाजिक सरोकारों से सम्बंध)


इतिहास की विषय वस्तु का असर देश पर सदियों तक पड़ता है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति बहुत हद तक उसके शिक्षा, प्रशिक्षण, इतिहास व संस्कृति पर निर्भर रहती है। खास तौर से नागरिकों के मस्तिष्क तक पहुचने का सरल रास्ता है इतिहास का अध्यन। इसीसे लोग अपने नायकों के प्रति भावनात्मक रूप से जुड़े रहते है। यह निहायत जरूरी था और है और रहेगा कि इतिहास को लिखने, सूचनाओ को एकत्रित करने, संश्लेषण करने और किसी नतीजे तक पहुचना में अत्यधिक सावधानी, निष्पक्षता, तथ्यात्मकता और सुस्पस्टता का होना जरूरी ही नही आवश्यक है।

आज सुविधाओं का इतिहास राजनीति की प्यास बुझा रहा है। क्या इतिहास सिर्फ राजनीति की लिए ही लिखा जाना चाहिए? हम अब एक सुनहरे भविष्य की ओर जाना है तो कम से कम आगे के लिए जहा तक हो सके सुविधा का इतिहास के बचने का प्रयास करना चाहिए।

भोपाल यानी भोजपालब यानी सबसे बड़ा शिवलिंग मंदिर, भोपाल यानी तालाबों का शहर.. क्या यह प्रकृति निर्मित थे.. नहीं.. फिर किसने ये अनुपम भेट दी..?

अरे छोड़िये जनाब… वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर की माने तो भोपाल मतलब नवाव पटौदी का भोपाल…

फिर हबीब कौन था..?

जैसे ही घोषणा हुई की भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन किया गया, तो एक बार दिमाग को जोर का झटका लगा… रानी लक्ष्मीबाई सुना, रानी दुर्गावती सुना, रानी होलकर सुना… फिर ये कौन सी नई रानी आ गई ?? क्या हमने इतिहास नहीं पढ़ा ?? या हमें इतिहास में पढ़ाया नहीं गया..??? आखिर क्यो..?? आखिर इतिहास के श्रेष्ठ नायकों को हमसे क्यो छुपाया जा रहा था… ????

चलो जाने दो… सत्य जब बाहर आता है तो ऐसे ही सीना फाड़ कर बाहर आता है…!!

तो सुने… हबीबगंज स्टेशन का नाम जिन रानी कमलापति के नाम पर रखा गया है वो कौन थी ??

14वीं शताब्दी की शुरुआत में योरदम नामक एक गोंड योद्धा ने गढ़ा मंडला में अपने मुख्यालय के साथ गोंड साम्राज्य की स्थापना की।

गोंड वंश में मदन शाह, गोरखदास, अर्जुनदास और संग्राम शाह जैसे कई शक्तिशाली राजा थे।

मालवा में मुगल आक्रमण के दौरान भोपाल राज्य के साथ क्षेत्र का एक बड़ा क्षेत्र गोंड साम्राज्य के कब्जे में था।

इन प्रदेशों को चकलाओं के रूप में जाना जाता था जिनमें से चकला गिन्नौर 750 गांवों में से एक था। भोपाल इसका एक हिस्सा था। गोंड राजा निज़ाम शाह इस क्षेत्र का शासक था।

चैन शाह के द्वारा जहर खिलाने से निज़ाम शाह की मृत्यु हो गई। उनकी विधवा, कमलावती और पुत्र नवल शाह असहाय हो गए। नवल शाह तब नाबालिग था।

निज़ाम शाह की मृत्यु के बाद, रानी कमलावती ने दोस्त मोहम्मद खान को संविदा पर नोकरी पर रखा, ताकि वो राज्य के मामलों का प्रबंधन कर सकें।

दोस्त मोहम्मद खान एक चतुर और चालाक कट्टर जेहादी मु-स्लिम अफगान था, जिसने छोटी रियासतों का अधिग्रहण शुरू किया। रानी कमलावती इन्हें भाई मानती थी, पर इस्लामी परम्परा के अनुसार दोस्त मोहम्मद रानी कमलावती (जो कि बहन थी) उन पर ही खुद से शादी के लिए दबाव बनाने लगा।

तब राजा भोज की नगरी भोजपाल की गौरव गौंड रानी कमलापति के पुत्र नवल शाह ने लाल घाटी के युद्ध में अपनी माँ और मातृभूमि के लिये अपना बलिदान दिया।

उसके बाद रानी कमलावती ने भी हिन्दू परम्परा और संस्कृति की रक्षा के लिए छोटे तालाब में जल जौहर कर लिया।

रानी कमलावती की मृत्यु के बाद दोस्त मोहम्मद खान ने गिन्नोर के किले को जब्त कर लिया, विद्रोहियों पर अंकुश लगा दिया, बाकियों पर उनके नियंत्रण के हिसाब से अनुदान दिया और उनकी कृतज्ञता अर्जित की।

रानी कमलावती को गोंड भाषा में कमलापति कहने लगे हैं, पर विदित हो कि भोपाल सीहोर जिले के सरकारी गजेटियर में रानी का नाम “कमलावती” ही उल्लेखित है।

रानी कमलापति ही थी जिनकी दूरदर्शिता में बड़े तालाब ओर छोटे तालाब का निर्माण कराया गया।

छल और कपट से, देवरा राजपूतों को नष्ट कर दिया और उन्हें भी मारकर नदी में बहा दिया; जिसे तब से सलालीटर्स की नदी या हलाली डेम के रूप में जाना जाता है।

हबीबगंज स्टेशन का निर्माण अंग्रेजों ने 1905 में करवाया था। तब इसका नाम रानी कमलावती के गोंड “शाह” वंश के नाम पर शाहपुर था, जिसे आज शाहपुरा के नाम से जानते है।

लेकिन साल 1979 में पिछली सरकार में इस रेलवे इस स्टेशन का विस्तार किया गया और इसका नाम हबीबगंज रखा गया।

हबीबगंज का नाम भोपाल के तथाकथित नवाब हबीब मियां के नाम पर है। उस समय एमपी नगर का नाम गंज हुआ करता था, दोनों को जोड़कर हबीबगंज रखा गया था।

हबीब मियां ने 1979 में स्टेशन के विस्तार के लिए अपनी जमीन दान में दी थी, पर नवाबो और उनके शागिर्दों के पास जो भी जमीन थी वो तो जनजातीय समाज की रानी कमलावती से ही हड़पी गयी थी।

हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलावती करना जनजातीय समाज के लिए एक सम्मान का विषय है।

नया भारत अपनी खोई हुई धरोहर को पुनः स्थापित कर रहा है…

भारत की अस्मिता के प्रति ये सरकार चिन्तित है… वरना ये नवाव वही है जो बटवारे में पाकिस्तान समर्थक था और पाकिस्तान भाग भी गया था… तो क्या भगोड़े के नाम पर स्टेशन होगा या जिसने बलिदान दिया उसके नाम पर ??

आखिर रानी कमलावती अब तक इतिहास से क्यों गायब थी..??

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