हिमशिखर धर्म डेस्क
स्वामी रामतीर्थ के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग है। गंगोत्री यात्रा के दौरान रास्तें में उन्होंने देखा, सामने बेशुमार फूल खिले हैं। वह एक वर्जित क्षेत्र था। गोरे सार्जेंट ने उन्हें आगे जाने से रोका। स्वामी रामतीर्थ बोले-मुझे इन फूलों से एक सवाल पूछना है, मैं गया और आया।
सार्जेंट के मन में उत्सुकता जगी। उसने उन्हें जाने दिया। शायद उनके गेरुए वस्त्रों और तेजोदीप्त मुखमंडल ने सार्जेंट को प्रेरित किया हो।
स्वामी राम सचमुच गए और आ गए। गोरे सार्जेंट ने प्रश्न किया-स्वामी! इतना तो बताओ, तुमने इन फूलों से सवाल क्या किया?
स्वामी राम बोले-मैंने पूछा, अरे फूलों! तुम सदा हंसते क्यों रहते हो?
फिर फूलों ने क्या जवाब दिया? सार्जेंट का अगला सवाल था
बोले, हममें सुगंध और मधु जो भरा है।
पढ़ते-पढ़ते अनायास एक मुस्कान ओठों पर उतर आई। किताब बंद करके छाती पर रख ली। हृदय कोरक में सचमुच मधु भर गया।
सौरभ यानि चारित्रिक पवित्रता, मधु यानी प्रेम।
हृदय की निर्मलता सौरभ है, और प्रेम मधु है।