बोध कथा : मृत्यु टाले नहीं टलती

मृत्यु एक अटल सत्य है। हमारा यह शरीर नश्वर है। आत्मा अजर अमर है और जिस तरह आत्मा को कोई नहीं काट सकता ठीक उसी तरह अग्नि जला नहीं सकती और पानी कभी गीला नहीं कर सकता है। एक वस्त्र बदलकर दूसरे वस्त्र धारण किए जाते हैं ठीक उसी प्रकार आत्मा एक शरीर का त्याग करके दूसरे जीव में प्रवेश करती है। आज बृहस्पतिवार को जानें भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ से जुड़ी रोचक कथा। ये कहानी जीवन और मृत्‍यु से जुड़े बोध को लेकर कही जाने वाली एक कथा है।

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़कर श्री हरि खुद शिव से मिलने अंदर चले गए।

तब कैलाश की प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।

उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की दृष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।

गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया।

आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था।

यम देव बोले “गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। मैं सोच रहा था कि वो इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।”

गरुड़ समझ गये मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए।

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