हिमशिखर खबर ब्यूरो।
प्रभु श्रीराम अपनी लीला समेटकर इस संसार को छोड़कर जा रहे थे। उस समय श्रीराम को चिंता हो रही थी कि मेरे जाने के बाद मेरे भक्तों की रक्षा कौन करेगा? रावण रूपी दुर्गुण भक्तों को परेशान करते ही रहेंगे। उन्होंने हनुमान जी की ओर देखा तो हनुमान जी ने श्रीराम से एक वरदान मांगा कि जब तक इस संसार में आपकी कथाएं लोग सुनते रहेंगे, तब तक मैं इस संसार में जीवित रहूं।
श्रीराम ने तुरंत ही ये वरदान हनुमान जी को दे दिया। हनुमान जी आज भी जीवित रूप में हैं। त्रेता युग के बाद द्वापर युग आया। हनुमान जी द्वापर युग में हिमालय के गंधमादन पर्वत पर रह रहे थे।
महाभारत काल में एक दिन भीम अपनी पत्नी द्रौपदी के लिए सुगंधित फूल लेने बेफिक्री से गंधमादन पर्वत जा रहे थे। सोच रहे थे, अब पहुंचा कि तब पहुंचा, दिव्य पुष्प लाकर द्रौपदी को दूंगा, वह प्रसन्न हो जाएगी। लेकिन अचानक उनके बढ़ते कदम रुक गए… देखा, एक वृद्ध लाचार और कमजोर वानर मार्ग के एक बड़े पत्थर पर बैठा है। उसने अपनी पूंछ आगे के उस पत्थर तक बिछा रखी है जिससे रास्ता रुक गया है।
पूंछ हटाए बिना, आगे नहीं बढ़ा जा सकता… अर्थात उस वानर से अपनी पूंछ से मार्ग रोक रखा था और कोई भी बलवान व्यक्ति किसी को उलांघकर मार्ग नहीं बनाता, बल्कि मार्ग की बाधा को हटाकर आगे बढ़ता है। इसलिए भीम भी रुक गए। जब मद, अहंकार और शक्ति बढ़ जाती है तो आदमी अपने आपको आकाश को छूता हुआ समझता है। वह किसी को खातिर में नहीं लाता… और अत्यधिक निरंकुश शक्ति ही व्यक्ति के विनाश का कारण बनती है… भीम ने कहा, “ऐ वानर! अपनी पूंछ को हटाओ, मैंने आगे बढ़ना है।
“वानर ने देखा एक बलिष्ठ व्यक्ति गदा उठाए, राजसी वस्त्र पहने, मुकुट धारण किए बड़े रोब के साथ उसे पूंछ हटाने को कह रहा है। भीम के सवाल का जवाब नहीं दिया। भीम ने फिर कहा, “वानर, मैंने कहा न कि पूंछ हटाओ, मैंने आगे जाना है, तुम वृद्ध हो, इसलिए कुछ नहीं कह रहा। “वानर गंभीर हो गया। मन ही मन हंस दिया। कहा, “तुम देख रहे हो, मैं वृद्ध हूं, कमजोर हूं… उठ नहीं सकता। मुझमें इतनी ताकत नहीं कि मैं स्वयं ही अपनी पूंछ हटा लूं… तुम ही कष्ट करो, मेरी पूंछ थोड़ी इधर सरका दो, और आगे निकल जाओ।
“भीम के तेवर कसे… गदा कंधे से हटाई… नीचे रखी। इस वानर ने मेरे बल को ललकारा है, आखिर है तो एक पूंछ ही, वह भी वृद्ध वानर की। मैंने बहुत बलवानों को परास्त किया है, धूल चटाई है, सौ हाथियों का बल है मुझमें…।
“इतना कह कर भीम ने अपने बाएं हाथ से पूंछ को यों पकड़ा, जैसे एक तिनके को पकड़ रहा है कि उठाया, हवा में उड़ा दिया… लेकिन भीम से वह पूंछ हिल भी नहीं सकी। हैरान हुआ… फिर उसने दाएं हाथ से पूंछ को हटाना चाहा… लेकिन दाएं हाथ से भी पूंछ तिलमात्र नहीं हिली… भीम ने वानर की तरफ देखा… वानर मुस्करा रहा था। भीम को गुस्सा आ गया। भीम ने दोनों हाथों से भरपूर जोर लगाया… एक पांव को पत्थर पर रखकर, आसरा लेकर फिर जोर लगाया… दो-तीन बार… लेकिन हर बार भीम हताश हुआ… सोचने लगा… यह कोई मामूली वृद्ध वानर नहीं है… यह दिव्य व्यक्ति है और इसकी असीम शक्ति का मैं सामना नहीं कर पाऊंगा…
भीम ने कहा, “मैं आपको पहचान नहीं सका… जिसकी पूंछ को मैं उठा नहीं सका वह कोई मामूली वानर नहीं हो सकता… मुझे क्षमा करें, कृपया अपना परिचय दें। हनुमान जी ने अपना परिचय दिया तो भीम ने क्षमा मांगी’
हनुमान जी बोले, ‘भीम शक्ति का, ताकत का अभिमान न करो… क्योंकि यह ताकत और बल तुम्हारा नहीं। भगवान ने ही इसे दिया है… यह शरीर भी तो परमात्मा ने दिया है… और जो चीज परमात्मा की है, वह किसी और की कैसे हो सकती है। इसलिए जो जिसने दिया है, उसके लिए उसी का धन्यवाद करना चाहिए। परमात्मा की शक्ति के अलावा किसी की क्या शक्ति हो सकती। “भीम की आंखें खुलीं…
सीख – इस प्रसंग में हनुमान जी ने संदेश दिया है कि हमें कभी भी अपनी शक्ति पर घमंड नहीं करना चाहिए। जो लोग बलशाली हैं, उन्हें बच्चों की, महिलाओं की और बूढ़ों की रक्षा करनी चाहिए। अगर हम समर्थ हैं तो विनम्र रहें और दूसरों की मदद करें।