देहरादून।
स्वामी अमर मुनि महाराज की पुण्य-स्मृति अपनी पूर्ण गरिमा के साथ राजपुर आश्रम परिसर में संपन्न हुई। समाधि पूजन और स्वामी जी के चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद सुंदरकांड का सामूहिक रूप से पाठ किया गया।
कार्यक्रम में अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए योगाचार्य हरीश जौहर ने स्वामी जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऐसे महापुरुष हमेशा परोपकार के लिए जन्म लेते हैं। वास्तव में इनका जन्म करुणा से होता है। स्वामी जी के व्यक्तित्व के कई पहलुओं के बारे में मैंने सुना है, उनमें विद्वत्ता के साथ राष्ट्र के प्रति प्रेम का भी सर्वोच्च भाव था। वो हमेशा अध्यात्म को राष्ट्र के साथ जोड़ कर देखा करते थे।
आचार्य काका हरिओम ने स्वामी जी के बारे में अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि यह समझ नहीं आता कि उनके बारे में कहां से शुरू ट किया जाए। क्योंकि उन्होंने वह तकनीक बताई, जो शिक्षा की प्रक्रिया को स्पष्ट करती है। अर्थात् वह यह बताती है कि जीवन में कैसे की क्या भूमिका है?
स्वामी शिवचंद्र दास महाराज ने मंच का संचालन करते हुए स्वामी जी को ज्ञान और वैराग्य की परंपरा का सजीव रूप बताया। कहा कि इस तरह का तपस्वी जीवन आजकल देखने को उपलब्ध नहीं होता है।
मिशन के प्रबंधक राजेश पैन्यूली ने अपने जीवन के उन संस्मरणों का जिक्र किया जो स्वामी जी के साथ जुड़े हुए थे। कहा कि स्वामी जी को किसी भी एक क्षेत्र में सीमित नहीं किया जा सकता। अध्यात्म, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, शिक्षा, मनोविज्ञान और कथा-साहित्य इन सभी क्षेत्रों में उनका एक समान अधिकार था। उन्होंने एक शिक्षक के रूप में भी कार्य किया। परमाध्यक्ष के रूप में स्वामी जी ने रामतीर्थ मिशन को एक नई दिशा दी।
स्वामी बलराम मुनि ने स्वामी अमरमुनि जी को स्वामी रामतीर्थ मिशन की परंपरा में एक विशिष्ट व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि उन्होंने साधु कैसा होना चाहिए, इसका अपने जीवन से उदाहरण देकर बताया। उनका जीवन स्वयं में इस बात का प्रतीक था। समापन पर भोजन-प्रसाद का वितरण किया गया।