मकर संक्रांति विशेष:आज है मकर संक्रांति का पर्व, जानिए स्नान दान का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

उत्तरायण संक्रांति की प्रथम किरण का हार्दिक अभिनन्दन एवं सुमधुर स्वागत।

माघ माह का प्रारम्भ आज से, मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने से इस मास को माघ मास कहते हैं। इस महीने को धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने तभी तो लिखा है कि –

माघ मकर गत रवि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।

पद्म पुराण में कहा गया है कि– व्रत, दान और तपस्या से भगवान को उतनी प्रसन्नता नहीं होती जितनी माघ मास में स्नान से होती है।

आज 15 जनवरी को गङ्गा आदि पुण्य नदियों में स्नान करें, यदि वे सुलभ न हों तो कहीं भी स्नान किया जा सकता है।

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् संनिधं कुरु ।।

मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त

मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सुबह 07 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन शाम 05 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। वहीं, महापुण्यकाल सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक रहेगा। पुण्यकाल और महापुण्यकाल में स्नान-दान करना शुभ होता है।

 

मकर संक्रांति पर्व शश, पर्वत, शंख, हर्ष और सत्कीर्ति नाम के राजयोग में मनेगा। आज रविवार है और सूर्य अपने ही नक्षत्र यानी उत्तराषाढ़ में रहेगा। इस शुभ संयोग में किए गए स्नान-दान और पूजा का फल और बढ़ जाएगा। मान्यता है कि इस दौरान किए गए शुभ कामों से अक्षय पुण्य मिलता है। इस मौके पर उत्तर और मध्य भारत में तिल-गुड़ की मिठाइयां बांटते हैं। गुजरात में पतंगबाजी और महाराष्ट्र में खेलकूद होते हैं। इसी दिन सबरीमाला मंदिर में मकरविलक्कु पर्व मनाते हैं। इस दिन भगवान अय्यप्पा की महापूजा होती है।

इस महीने की पूर्णिमा को ब्रह्मवैवर्तक पुराण का दान करना चाहिए। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर संक्रांति’ कहलाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में देवताओं का दिन उत्तरायण और दक्षिणायन रात को माना गया है। तो कहा जा सकता है मकर संक्रांति देवताओं का प्रभात काल है, अनेक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि आज घी और कम्बल के दान का विशेष महत्व है। गङ्गा स्नान तथा गङ्गा तट पर दान विशेष रूप से प्रशंसनीय है। समूचे भारत में यह दिन अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में इस दिन को ‘खिचड़ी’ संक्रान्ति व दिन के रूप में मनाते हैं। खिचड़ी खाना व खिचड़ी एवं तिल का दान करना अधिक महत्वपूर्ण है।

महाराष्ट्र में विवाहिता स्त्रियां पहली संक्रांति को तेल, कपास व नमक आदि की वस्तुएं सौभाग्यवती स्त्रियों को भेंट करती हैं। यहां ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन से सूर्य की गति तिल- तिल कर बढ़ती है अतः आज तिल के अनेक मिष्ठान्न बना कर सबको वितरित किए जाते हैं। गुजरात में भी इसी तरह यह पर्व मनाया जाता है। बंगाल में आज के दिन तिल दान का विशेष महत्व माना व कहा जाता है। असम में इसे बिहू के नाम से जाना जाता है। सूर्य भगवान को एक राशि से दूसरी राशि में होने वाले परिवर्तन को अन्धकार से प्रकाश की ओर होने वाला परिवर्तन माना जाता है। सूर्य ऊर्जा का अजस्र स्रोत है, सूर्य के अधिक देर रहने से प्राणियों में चेतना की वृद्धि होती है। अतः भारतीय संस्कृति इस माह को आध्यात्मिक उन्नति का मास मान कर अधिक धार्मिक मास मानती है।

आज स्नान कर तिलों से होम, तिल युक्त वस्तुओं का दान, पंचदेवों की पूजा, पुरुष सूक्त, सूर्याष्टक स्त्रोत्र पाठ, ब्राह्मण भोजन, धार्मिक पुस्तकों का दान आदि करना चाहिए। किसी गौशाला में हरी घास और गायों की देखभाल के लिए धन का दान करें। अभी ठंड का समय है तो जरूरतमंद लोगों को ऊनी वस्त्र या कंबल का दान जरूर करें।

मानव अपना कल्याण स्वयं कर सकता है। शास्त्र हमारा मार्गदर्शन करते हैं और उनके द्वारा बताए मार्ग पर चलना मानव का उद्देश्य होना अपेक्षित है। हम सभी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमारा मार्ग प्रशस्त करेंगे।

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