पंडित उदय शंकर भट्ट
पूरी सृष्टि नियम से बंधी हुई है। प्रकृति की तरह मनुष्य को भी व्यवस्थित जीवन जीने के लिए नियमों का पालन करना होता है। जो मनुष्य नियमबद्ध तरीके से जीवन जीता है, उसका जीवन आनंदमयी रहता है, जबकि इसके विपरीत नियमरहित जीवन जीने वाले मनुष्य को एक समय के बाद अपना जीवन भार लगने लगता है। प्रकृति भी जब अपने नियम से हटती है, तब विकराल घटनाएं घटती हैं और विध्वंस होता है। ऐसे में प्रकृति और जीवन दोनों में नियमबद्धता आवश्यक है।
जीवन में हर खेल अपने नियम के कारण खेला जाता है। यदि खेल में से नियम निकाल लें तो फिर खेल हुड़दंग रह जाएगा। कभी ताश या शतरंज खेलने वालों को ध्यान से देखिएगा। इनके कुछ नियम हैं, और यदि किसी एक ने भी तोड़ा तो फिर समझो खेल खत्म। इसी खेल को हमारी भारतीय संस्कृति ने लीला कहा है।
परमात्मा ने प्रकृति इतनी नियमानुसार बनाई है कि वह लीला का एक हिस्सा है। अब वह नियम हम मनुष्यों को भी पालना है। यदि नहीं पालते या तोड़ते हैं तो जीवन का खेल गड़बड़ा जाएगा। फिर लीला में ऐसे दृश्य दिखना शुरू हो जाते हैं कि हमें लगता है यह सब क्या हो रहा है, भगवान क्या कर रहा है? भगवान ने कुछ नहीं किया। उसने तो एक बार नियम बना दिया और अब हमें उसी के अनुसार चलना है।
यह बात इस दौर में बहुत काम आएगी। यदि जीवन को खेल की तरह लेंगे तो एक उत्साह बना रहेगा, हम उसके नियमों का पालन करेंगे। खेल में कोई एक जीतता है, पर लीला का सबसे बड़ा आनंद यह है कि जब नियम पालते हैं तो दोनों ही पक्ष जीत जाते हैं। ईश्वर अपने बंदों को कभी हराना नहीं चाहता। हम जब भी हारेंगे, खुद की गलती से, स्वयं नियम तोड़कर हारेंगे। इसलिए इस वक्त जब तीसरी लहर की आशंकाएं डराने लगी हैं, नियम पालने में जरा भी लापरवाही न करें।