पंडित हर्ष मणि बहुगुणा
आज नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती है। आज के ही दिन सन् 1897 को सुभाष बाबू का जन्म कटक में हुआ था। हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद गुप्त रूप से तीर्थाटन हेतु घर से भाग गए थे और अधिकांश तीर्थों व अनेक गुरुओं के पास आध्यात्मिक उन्नति के लिए गए परंतु हर जगह धर्म की आड़ में छल प्रपंच का बोलबाला देखा, ढोंगी बाबाओं ने एक आस्तिक व्यक्ति की आस्था समाप्त कर दी। अतः धार्मिक ज्ञान से सदैव के लिए उदासीन हो गये व घर लौट आए व पुनः पढ़ना प्रारम्भ किया तथा ‘सिविल सर्विस’ सेवा के लिए तैयारी करने लगे और विलायत चले गए वहां रहकर ही आपको स्वतंत्रता व स्वदेश सेवा का महत्व समझ में आया। इसी से स्वदेश प्रेम के साथ स्वतंत्रता के लिए प्रयासरत हुए। और ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ इस नारे को बुलन्द किया।
आपकी वाणी का भारतीय नौजवानों पर जादू का सा असर हुआ। और फिर भारत आकर भारत में अपने नौजवान साथियों के कारण रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के विरोध करने के बाद भी सभापति चुने गए। परन्तु आपके सभापति चुने जाने के बाद भी वयोवृद्ध नेताओं ने बहुत विरोध किया यहां तक परिस्थिति बनी कि आप कांग्रेस से ही त्याग पत्र देने के लिए तत्पर हो गये, इसके परिणाम स्वरूप हरिपुरा में सभापति के पद से त्यागपत्र दे दिया। शायद यह भारतीय राजनीति की विडम्बना है। जब कभी कोई सही व सच्चा मानव राजनीति या किसी भी अन्य क्षेत्रों में उन्नति के शिखर पर पहुंचता है तो उसके पर काटने का कुचक्र प्रारम्भ हो जाता है और यही कारण है कि हम विश्व में पिछड़ते चले जाते हैं, यह विडम्बना गांव की संकीर्ण मानसिकता को भी उजागर करती है तथा सुयोग्य व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोक कर गांव, क्षेत्र व देश के विकास में बाधक बन जाती है और हम कूप मण्डूक ही रह जाते हैं।
तदनन्तर सुभाष बाबू विदेशों में विलायत, इटली, रूस, जर्मनी, जापान आदि देशों में घूमते रहे और जर्मन युद्ध के समय देश से लापता ही हो गये। परन्तु कभी कभी रेडियो से आपका प्रसारण हो जाता था, आपकी सूचना से ही भारतीय जन मानस को यह ज्ञात हुआ कि आपने ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया है। बाद- बाद में आजाद हिन्द फौज का हाल समाचार ज्ञात होता रहा। उसी से यह जानकारी भी मिली कि वह हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख सभी भारतीयों का ऐसा संगठन था जिसमें देश के अतिरिक्त किसी अन्य बात का कोई नाम नहीं था। यही एक बड़ी भारी सेना तैयार भी हुई और उसके सभी नियमोपनियम बनाए गए। परन्तु दुर्भाग्यवश जापान के हार जाने से उस सेना के सिपाही पकड़े या मारे गए। ज्ञात तो यह भी हुआ था कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु जापान में एक विमान दुर्घटना में हुई, शायद जो सही नहीं थी। पर सच्चाई जो भी रही होगी भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व खोया जिसका खामियाजा अभी तक भुगतना पड़ रहा है। इस देश ने बहुत सुभाषों को जन्म दिया लेकिन उनका पालन-पोषण ढंग से नहीं कर पाए यही गलतियां हम बार- बार दोहराते हैं। आज उनकी जयंती पर सम्पूर्ण देश भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है व शत -शत नमन करता है। उनके पग चिन्हों पर चलना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।