कोविड की दूसरी लहर के बाद मनरेगा कार्य की मांग में स्थिरता आई, लेकिन महामारी से पहले के स्‍तर से ज्‍यादा बनी रही

नई दिल्ली

Uttarakhand

केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश करते हुए कहा कि कोविड महामारी के चलते देशव्‍यापी लॉकडाउन के दौरान वित्‍त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के दौरान रोजगार में भारी गिरावट के बाद इससे जुड़े विभिन्‍न संकेतकों में उल्‍लेखनीय सुधार दर्ज किया गया है। सीतारमण द्वारा आज संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2021-22 में श्रम बाजार के रुझान और रोजगार पर कोविड-19 के प्रभाव का विश्‍लेषण किया गया है।

शहरी श्रम रुझान बाजार में 

      समीक्षा बताती है कि आवधिक श्रम बल समीक्षा डाटा के अनुसार, अर्थव्‍यवस्‍था के पुनरुद्धार के साथ 2020-21 की अंतिम तिमाही के दौरान बेरोजगारी दर (यूआर), श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) और श्रमिक जनसंख्‍या दर (डब्‍ल्‍यूपीआर) लगभग अपने महामारी से पहले के स्‍तरों पर पहुंच गई हैं।

आर्थिक समीक्षा कर्मचारी भविष्‍य निधि सगंठन (ईपीएफओ) के पेरोल डाटा का उपयोग करते हुए शहरी रोजगार की प्रवृत्तियों का भी विश्‍लेषण करती है। ईपीएफओ डाटा के एक विश्‍लेषण से 2021 के दौरान रोजगार बाजार में औपचारिक नौकरियों में बढ़ोतरी का पता चलता है। समीक्षा के अनुसार, वास्‍तव में नवंबर 2021 में ईपीएफ के 13.95 लाख नए सदस्‍य बने, जो 2017 के बाद किसी एक महीने में सबसे ज्‍यादा बढ़ोतरी रही। नवंबर 2020 की तुलना में ईपीएफ सदस्‍यता में यह 109.21 प्रतिशत की बढोतरी थी। आर्थिक समीक्षा कहती है कि 2021 के दौरान ईपीएफ सदस्‍यता में कुल मासिक बढ़ोतरी न सिर्फ 2020 के समीक्षाधीन मासिक आंकड़ों से ज्‍यादा रही, बल्कि यह महामारी से पहले वर्ष 2019 के समीक्षाधीन महीनों से भी आगे निकल गई।

ग्रामीण श्रम बाजार में रुझान 

    आर्थिक समीक्षा 2021-22 महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम की मांग पर ताजा आंकड़ों की सहायता से ग्रामीण श्रम बाजार में रुझानों का विश्लेषण करती है।
समीक्षा बताती है कि 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के तहत रोजगार अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गए थे। हालांकि, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार जैसे कई प्रवासियों के स्रोत राज्यों में एक दिलचस्प रुझान सामने आया, जहां 2021 के ज्यादातर महीनों में 2020 के समीक्षाधीन स्तर की तुलना में मनरेगा रोजगार कम रहे। इसके विपरीत, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे प्रवासी प्राप्तकर्ता राज्यों में 2020 की तुलना में 2021 के अधिकांश महीनों में मनरेगा रोजगार की मांग ज्यादा रही।

ज्यादा विवरण देते हुए, आर्थिक समीक्षा संकेत करती है कि कोविड की दूसरी लहर के बाद मनरेगा कार्य की मांग स्थिरता आई है। हालांकि, कुल मनरेगा रोजगार महामारी पूर्व के स्तर से अभी भी ज्यादा हैं। कोविड की दूसरी लहर के दौरान, जून 2021 में मनरेगा रोजगार के लिए मांग 4.59 करोड़ लोगों के अधिकतम स्‍तर तक पहुंच गई।

वार्षिक पीएलएफएस आंकड़ों का उपयोग करके रोजगार में दीर्घकालिक प्रवृत्ति का आकलन

पीएलएफएस 2019-20 (सर्वेक्षण अवधि जुलाई 2019 से जून 2020) के दौरान, सामान्‍य स्थिति में रोजगार का विस्‍तार जारी रहा। 2018-19 और 2019-20 के बीच 4.75 करोड़ अतिरिक्‍त लोग कार्य बल में शामिल हुए। यह 2017-18 और 2018-19 के बीच सृजित रोजगार से लगभग तीन गुना अधिक है। शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र ने इस विस्‍तार में बहुत अधिक योगदान दिया (ग्रामीण क्षेत्र में 3.45 करोड़ और शहरी क्षेत्र में 1.30 करोड़)। इसके अलावा अतिरिक्‍त श्रमिकों में 2.99 करोड़ (63 प्रतिशत) महिलाएं शामिल थीं। 2019-20 में जुड़े अतिरिक्‍त श्रमिकों में 65 प्रतिशत स्‍वरोजगार वाले थे। स्‍वरोजगार के रूप में शामिल होने वाली लगभग 75 प्रतिशत महिलाएं ‘अवैतनिक पारिवारिक श्रमिक’ थीं। अतिरिक्‍त श्रमिकों में लगभग 18 प्रतिशत अनियमित मजदूर थे और 17 प्रतिशत ‘नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी’ थे। वर्ष 2019-20 में बेरोजगार व्‍यक्तियों की संख्‍या में भी 23 लाख की कमी आई, जिसमें मुख्‍य रूप से ग्रामीण क्षेत्र के पुरुषों द्वारा योगदान किया गया।

भारत में उद्योग-वार रोजगार में, 2019-20 में जुड़े श्रमिकों में से 71 प्रतिशत से अधिक कृषि क्षेत्र से थे। कृषि क्षेत्र में नए श्रमिकों में महिलाओं की संख्‍या 65 प्रतिशत रही। व्‍यापार पोर्टल और रेस्‍तरां में नए श्रमिकों की हिस्‍सेदारी 22 प्रतिशत से कुछ ज्‍यादा रही, जो पिछले वर्ष की प्रवृति‍ के अनुरूप था जब इस क्षेत्र में 28 प्रतिशत से ज्‍यादा नए श्रमिकों का प्रतिनिधित्‍व किया था। विनिर्माण क्षेत्र की नए श्रमिकों में हिस्‍सेदारी 2018-19 की 5.65 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 2.41 प्रतिशत रह गई और निर्माण क्षेत्र की हिस्‍सेदारी 26.26 प्रतिशत से घटकर 7.36 प्रतिशत रह गई।

आजीविका को बढ़ावा देने के लिए महत्‍वपूर्ण नीतिगत कदम 

    आर्थिक समीक्षा आजीविका को बढ़ावा देने के लिए कई नीतिगत उपायों पर प्रकाश डालती है। इसमें अर्थव्‍यवस्‍था को बढ़ावा देने के लिए घोषित आत्‍मनिर्भर 3.0 पैकेज के तहत शुरू की गई आत्‍मनिर्भर भारत रोजगार योजना शामिल है, जिसके उद्देश्‍यों में कोविड के बाद सुधार के चरण में रोजगार सृजन बढ़ाना, सामाजिक सुरक्षा लाभों के साथ ही नए रोजगारों को प्रोत्‍साहन देना और कोविड-19 महामारी के दौरान रोजगार के नुकसान की बहाली शामिल है।

    वापस लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार और आजीविका को प्रोत्‍साहन देने के लिए जून 2020 में गरीब कल्‍याण रोजगार अभियान की शुरुआत की गई थी। इसमें 50,000 करोड़ रुपए के संसाधन आवरण के साथ छह राज्‍यों के 116 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्‍ध कराने और आधारभूत संरचना के निर्माण के लिए 25 लक्ष्‍य आधारित कार्यों पर ध्‍यान केंद्रित किया गया है।

    इसी प्रकार वित्‍त वर्ष 2021-22 में मनरेगा के लिए आवंटन बढ़ाकर 73,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है, जो वित्‍त वर्ष 2020-21 में 61,500 करोड़ रुपए था। वित्‍त वर्ष 2021-22 के लिए अभी तक आवंटन बढ़ाकर 98,000 करोड़ रुपए किया जा चुका है। वित्‍त वर्ष 2021-22 में अभी तक 8.70 करोड़ से ज्‍यादा लोगों और 6.10 करोड़ परिवारों को काम उपलब्‍ध कराया जा चुका है।

समीक्षा में कई अन्‍य सामाजिक सुरक्षा उपायों का भी उल्‍लेख किया गया, जो व्‍यापारियों/दुकानदारों/स्‍वरोजगार में लगे लोगों के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन (पीएम-एसवाईएम) योजना, राष्‍ट्रीय पेंशन योजना में किए गए हैं। इसके अलावा श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ देने के लिए ई-श्रम पोर्टल की शुरुआत की गई और श्रमिकों के कल्‍याण के लिए श्रम सुधार किए गए।

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