विनोद चमोली
प्रयागराज को गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम कहा जाता है। क्या सरस्वती नदी का अस्तित्व एक मिथक है या एक ऐतिहासिक नदी है? देश भर में नदी के अस्तित्व को खोजने के लिए कई संस्थाएँ कार्य कर रही हैं। अदृश्य सरस्वती के इतिहास को लेकर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली ने तमाम विशेषज्ञों की मदद से सरस्वती नदी पर एक रिसर्च बुक ‘द्विरूपा सरस्वती’ जारी की है। यह पुस्तक सरस्वती नदी के इतिहास और प्रमाणित करते दस्तावेजों का संकलन है। रिसर्च से साफ हो चुका है कि सरस्वती मिथक नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक नदी है।
माना जाता है कि प्रयाग में त्रिवेणी का संगम होता है। त्रिवेणी यानी तीन नदियां, गंगा, यमुना और सरस्वती। गंगा और यमुना को प्रयाग में मिलते हुए तो सब देखते हैं पर सरस्वती नदी पर कई तरह के भ्रम हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सरस्वती नदी अदृश्य रूप से बहकर प्रयाग पहुंचती है और यहां आकर गंगा और यमुना के साथ संगम करती है। वहीं, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सरस्वती नदी का कहीं कोई वजूद ही नहीं है और यह केवल एक मिथकीय धारणा है। सरस्वती नदी के अस्तित्व को खोजने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) पिछले कई वर्षों से कार्य कर रहा है। कला केंद्र के जनपद सम्पदा विभाग के अंतर्गत जब नदी-किनारे बसी संस्कृति के अध्ययन की परियोजना प्रारंभ की गई, तो सरस्वती परियोजना उसका पहला पड़ाव था। इसी उद्देश्य से देश के ख्यातिलब्ध विद्वानों और अन्वेषकों को एकत्रित कर उनके सान्निध्य में सरस्वी पर मंथन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। इसी मंथन के उपरांत सरस्वती नदी के विभिन्न शोधार्थियों, विद्वानों और अन्वेषकों द्वारा शोधपरक आलेखों का संकलन किया गया। अब सरस्वती नदी पर किए गए शोध पर एक रिसर्च किताब प्रकाशित की गई है, जिसका नाम है ‘द्विरूपा सरस्वती’।
‘द्विरूपा सरस्वती’ पुस्तक को आईजीएनसीए के ट्रस्टी डाॅ. महेश शर्मा और मानद सचिव डाॅ सच्चिदानंद जोशी द्वारा संपादित किया गया है। इस रिसर्च बुक में 20 से अधिक शोध प्रकाशित किए गए हैं। गत दिवस ‘द्विरूपा सरस्वती’ शोधपरक पुस्तक का विमोचन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक डाॅ. मोहन भागवत और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने किया था। इस दौरान श्री बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल और माणा के प्रधान पीताम्बर सिंह मोलफा भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। द्विरूपा सरस्वती शोधपरक पुस्तक को संपादित करने में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के पूर्व निदेशक और ख्यातिप्राप्त विद्वान डाॅ धर्मवीर शर्मा और वेदों के मर्मज्ञ विद्वान डाॅ नारायण दत्त शर्मा की भी मुख्य भूमिका है। इसके साथ ही दोनों विद्वानों के लेख भी इस पुस्तक में शामिल हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के पूर्व निदेशक डाॅ धर्मवीर शर्मा ने सरस्वती नदी के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि ऋग्वेद में वर्णित तथ्यों के आधार सरस्वती देश की मुख्य नदियों में से एक है, जो अब अदृश्य है। वैदिक सभ्यता में सरस्वती नदी ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी। सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे परम पवित्र नदी माना जाता था, क्योंकि इसके तट के पास रहकर तथा इसी नदी के पानी का सेवन करते हुए ऋषियों ने वेदों को रचा और वैदिक ज्ञान का विस्तार किया। ऋग्वेद में सरस्वती को नदीतमा की उपाधि दी गई है। उसकी एक शाखा 2.41.16. में इसे सर्वश्रेष्ठ मां, सर्वश्रेष्ठ नदी सर्वश्रेष्ठ देवी कहकर सम्बोधित किया गया है। यही प्रशंसा ऋग्वेद के अन्य छंदों में भी की गई है। ऋग्वेद के श्लोक में 7.36.6 में सरस्वती को सप्तसिंधु नदियों की जननी बताया गया है।
डाॅ धर्मवीर शर्मा ने आगे बताया कि सरस्वती एक वैदिक नदी है। पुरातात्विक स्रोतों से भी पता चलता है कि सरस्वती नदी के किनारे हजारों गांव, नगर और बस्तियां बसे हुए थे। सरस्वती की एक धारा बद्रीनाथ के ऊपर बंदरपूंछ ग्लेशियर से बद्रीनाथ की व्यास गुफा से होते हुए यह अलकनंदा में मिल जाती है। जबकि दूसरी धारा हरियाणा में शिवालिक पहाड़ियों से नीचे आदिबद्री से होते हुए हरियाणा, पंजाब से बहते हुए अरब सागर में जाकर मिलती थी। डाॅ शर्मा ने सरस्वती नदी के लुप्त होने के लिए टेक्टाॅनिक कारणों की तरफ संकेत किया। कहा कि हिमालय टेक्टाॅनिकली काफी सक्रिय है। शायद इसी कारण नदी लुप्त हो गई हो। बताते हैं कि, सरस्वती नदी भले ही भौतिक रूप में विद्यमान ना हो लेकिन आज भी इसके मायने हैं। सरस्वती नदी आज भी विरासत के तौर पर मौजूद है।
श्री बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल का कहना है कि बदरीनाथ धाम में सरस्वती देवी और नदी दो रूपों में विद्यमान है। विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि बद्रीनाथ धाम से 3 किलोमीटर की दूरी पर व्यास गुफा के निकट सरस्वती नदी निकलकर अलकनंदा में मिल जाती है। इसके साथ ही बड़ी बात यह भी है कि व्यास गुफा में भगवान शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणेश ने वेदव्यास के मुख से पुराण और महाभारत के रूप में निकली सरस्वती रूपी ज्ञान को लिखा था। सरस्वती ज्ञान की देवी के रूप में प्रतिष्ठित है और वैदिक सभ्यता में ही सबसे पहले लिखित ज्ञान रूप में ज्ञान का सबसे प्राचीन साक्ष्य मिलता है। कहा कि ऋग्वेद, श्रीमद्भागवत, रामायण और महाभारत में सरस्वती नदी का उल्लेख किया गया है।