सुप्रभातम्: ज्ञानी व्यक्ति सलाह दे तो बहुत ध्यान से उसकी बातें सुननी चाहिए

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

रामायण में वनवास के समय श्रीराम ने अलग-अलग ऋषियों से अलग-अलग प्रश्न पूछे थे। भरद्वाज मुनि से रास्ता पूछा था, वाल्मीकि जी से रहने के स्थान के बारे में पूछा था। श्रीराम ने विचार किया था कि वे भारद्वाज मुनि से पूछेंगे कि राक्षसों का संहार कैसे किया जाए? क्योंकि उस समय दक्षिण दिशा से सभी ऋषि रावण के आतंक से डर कर भाग चुके थे। उस दिशा में सिर्फ अगस्त्य मुनि ही रह रहे थे।

सीता हरण के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम पहुंच चुके थे। श्रीराम को देखकर अगस्त्य ने उनका स्वागत किया। श्रीराम ने अगस्त्य मुनि से पूछा, ‘किस तरह रावण और उसके राक्षसों का विनाश किया जा सकता है?’

अगस्त्य मुनि ने मुस्कान के साथ कहा, ‘राम, आप सर्वज्ञ हैं, समर्थ हैं, लेकिन फिर भी आप मुझसे मार्गदर्शन ले रहे हैं। ये आपका बड़प्पन है, लेकिन एक बाद ध्यान रखें कि रावण जैसी ताकत से लड़ने के लिए सैन्य बल तो चाहिए, लेकिन आत्मबल की भी आवश्यकता है। आपके अंदर और लक्ष्मण के अंदर आत्मबल बहुत है, लेकिन थोड़ा बहुत सैन्य बल भी चाहिए। ये वानर सेना, ये रीछ कब तक आपका साथ दे पाएंगे।’

अगस्त्य मुनि की बातें सुनकर लक्ष्मण ने कहा, ‘श्रीराम के साथ मैं अकेला ही काफी हूं।’

श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा, ‘लक्ष्मण धैर्य के साथ सुनो, ये क्या कह रहे हैं।’

अगस्त्य मुनि ने आगे कहा, ‘जिस जन समूह वानर और रीछ के भरोसे आप ये युद्ध करने जा रहे हैं, ध्यान रखना कि जन समाज का मन होता है कि कोई उसका नेतृत्व करे और उसकी सारी जिन्मेदारियां उठा ले। अगर प्रहार आप पर हुआ तो हो सकता है कि ये जन समुदाय आपके साथ खड़ा न रहे। आम जनता का मन ही ऐसा होता है, वह अंतिम समय पर भाग जाती है। बस मैं यही इशारा आपको देना चाहता हूं कि सबसे अधिक बोझ तुम्हारे कंधों पर ही आएगा।’

श्रीराम ने कहा, ‘मैं आपकी बातें अच्छी तरह समझ गया हूं।’

सीख

इस घटना में श्रीराम ने हमें संदेश दिया है कि सफलता प्राप्त करने के सूत्र किसी से भी मिल सकते हैं। जब कोई बुद्धिमान व्यक्ति हमें सलाह दे रहा हो तो बहुत ध्यान से उसकी बातें सुननी चाहिए। लक्ष्मण की तरह बात के बीच में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। ध्यान रखें अनुभवी व्यक्ति की बातें महत्वपूर्ण होती हैं।

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