हिमशिखर खबर ब्यूरो
श्रीराम कथा में हनुमान जी का प्रवेश किष्किंधाकांड से होता है। इसके बाद शुरू होता है सुंदरकांड। सुंदरकांड में हनुमान जी और देवी सीता की भेंट होती है। जब सीता जी ने अशोक वाटिका में पहली बार हनुमान जी को देखा तो उन्हें भरोसा नहीं हुआ था कि राम वानर सेना के साथ राक्षसों का मुकाबला कैसे करेंगे?
ये है सीता जी और हनुमान जी की पहले भेंट का प्रसंग
हनुमान जी जब लंका में पहुंचे तो वे सीता की खोज करते हुए अशोक वाटिका में पहुंच गए थे। अशोक वाटिका में देवी सीता जी उन्हें मिल गईं। सीता से मिलकर हनुमान जी ने बताया कि श्रीराम जल्दी ही वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण करेंगे और आपको रावण की कैद से मुक्त कराएंगे।
हनुमान जी सीता जी को भरोसा दिला रहे थे कि श्रीराम रावण को पराजित करेंगे, लेकिन सीता को हनुमान जी की बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था।
हनुमान जी ने देवी सीता से कहा था कि आप भरोसा करें। श्रीराम आपको लेने जरूर आएंगे। मैं भी आपको यहां से ले जा सकता हूं, लेकिन मुझे श्रीराम ने ऐसी आज्ञा नहीं दी है।
सीता जी ने ये बातें सुनकर कहा था कि राक्षस तो बहुत बलवान हैं और वानर तुम्हारी तरह छोटे-छोटे ही होंगे, तुम इन शक्तिशाली राक्षसों से युद्ध में जीत नहीं पाओगे।
सीता जी की ये बातें सुनकर हनुमान जी तुरंत ही अपना आकार बहुत बड़ा कर लिया। हनुमान जी का ऐसा रूप देखकर सीता को भरोसा हो गया था कि श्रीराम और वानर सेना लंका पर आक्रमण करके रावण को पराजित कर देंगे।
हनुमान जी ने कहा था कि माता, वैसे तो वानरों में बहुत अधिक बल और बुद्धि नहीं होती, लेकिन प्रभु श्रीराम के प्रताप से बहुत छोटा सांप भी गरुड़ को खा सकता है। इसलिए आप वानर सेना पर संदेह न करें।
जब सीता को हनुमान पर भरोसा हो गया तो उन्होंने हनुमान जी को अजर-अमर रहने का वरदान दिया था।
ये है इस प्रसंग की सीख
इस प्रसंग में हनुमान जी ने अपनी शक्ति दिखाई, लेकिन उसे श्रीराम से जोड़ दिया। यहां हनुमान जी संदेश दिया है कि अगर हम अपनी शक्तियों को परमात्मा की कृपा से जोड़ देते हैं तो हमारे मन में अहंकार नहीं आता है। यही बात हनुमान जी से हमें सीखनी चाहिए कि हम भले ही कितने भी शक्तिशाली हैं, लेकिन घमंड नहीं करना चाहिए।