हिमशिखर खबर ब्यूरो
उपनिषदों में कई ऐसी कथाएं हैं, जिनमें राजाओं ने अपनी तपस्या से काल पर विजय पाने की कोशिश की है, लेकिन बचा कोई नहीं। ऐसे ही एक राजा ने भी काल को जीतने का प्रयास किया और उसने काल को अपना मित्र बना लिया।
राजा और काल की दोस्ती हो गई। राजा ने काल से कहा, ‘तुम मेरे मित्र हो तो तुम मुझे मृत्यु से मुक्त कर सकते हो।’
काल ने कहा, ‘ये तो संभव नहीं है।’
राजा ने पूछा, ‘तो फिर तुम मेरी क्या मदद कर सकते हो?’
काल ने कहा, ‘मैं तुम्हें सात बार अलग-अलग ढंग से सूचना दूंगा। तुम राजा हो, बहुत व्यस्त रहते हो तो इन संकतों को ध्यान रखना और आठवीं बार मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा।’
राजा इस बात के लिए मान गया।
कुछ समय बाद काल राजा के सामने अचानक आ गया। राजा ने कहा, ‘तुम मेरे मित्र हो और तुमने मुझे वचन दिया था कि तुम मुझे सात बार सूचना दोगे, लेकिन तुमने तो कोई सूचना नहीं दी और तुम मुझे लेने आ गए।’
काल ने कहा, ‘मैंने तुम्हें सूचनाएं दी थीं, लेकिन तुम अपने राजकाज में भूल गए। मैंने पहला संकेत तुम्हारे बालों के माध्यम से दिया था, जब ये सफेद होने लगे थे। दूसरा संकेत आंखों के माध्यम से दिया था, जब तुम्हारी दृष्टि कमजोर हो गई। तीसरा संकेत कानों के माध्यम से दिया, जब तुम्हें सुनाई देना कम हो गया।
चौथी बार में तुम्हारे दांत कमजोर हो गए। पांचवीं सूचना में तुम्हारी आंतें कमजोरी हो गईं। छठी सूचना तुम्हें तब दी, जब तुम्हारी हड्डियां कमजोर हो गईं। सातवें संकेत में तुम्हारी शक्तियां कम हो गईं। ये सब मेरी ही सूचनाएं थीं, लेकिन तुमने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। आठवीं बार मैं खुद तुम्हें लेने आया हूं।’
राजा को समझ आ गया कि काल किसी को छोड़ता नहीं है, लेकिन ऐसी सूचनाएं जरूर देता है।
सीख
इस कथा में बताए गए सात संकेत हमें भी ध्यान रखना चाहिए। जब ये संकेत मिलने लगे तो हमें अपने अधूरे कामों को तेजी से पूरा करना चाहिए। मृत्यु तो सभी की होगी, लेकिन जब अंतिम समय निकट आ रहा हो तो हमें तैयारी कर लेनी चाहिए। जीवन की तैयारियां तो सभी करते हैं, समझदार वही है जो मृत्यु की भी तैयारियां कर लेता है।