हिमशिखर खबर ब्यूरो
दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के किनारे एक छोटा सा कस्बा श्रीरंग पुरम है। वहां भक्त वैंकट रमन बहुत प्रसिद्ध थे। दूर-दूर से लोग उनसे मिलने आते थे। उनके लिए कहा जाता था कि हनुमान जी ने साक्षात दर्शन दिए थे।
लोग जब उनके पास बैठते थे तो लोगों को लगता था कि रमन जी के अंदर से ऊर्जा का स्रोत निकल उनके अंदर प्रवेश कर रहा है। एक दिन रमन जी से किसी ने पूछा, ‘आप हमेशा हनुमान जी और श्रीराम की भक्ति में लीन रहते हैं। उनकी शक्ति आपके भीतर से निकल रही है, ऐसा महसूस भी होता है। आपको ये सब कैसे मिला?’
वैंकट रमन ने कहा, ‘अभी मैं युवा हो गया हूं, मेरे ऊपर परमात्मा की कृपा है। मुझे ऐसा लगता है, जैसे मुझ पर हनुमान जी की कृपा है, वे सदैव मेरे साथ हैं, लेकिन ये सब अचानक नहीं हुआ है। मेरी तैयारी मेरे माता-पिता ने बचपन में ही कर दी थी। हमारे घर के आंगन में तुलसी का पौधा था। हनुमान जी की एक मूर्ति थी। हर मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी की विशेष पूजा हमारे यहां होती थी। मेरी मां मुझे चार वर्ष की उम्र में ही तोतली भाषा में भजन सिखाती थीं। मैं बहुत ही अच्छी तरह कीर्तन करता था। मेरे पिता आसन पर बैठकर सभी को हनुमान जी की कथा सुनाते थे और मुझसे भी कहते थे कि ध्यान से सुनो। मैं देर रात तक हनुमान जी की कथा सुनता था। मेरे माता-पिता ने मेरे बचपन के एक-एक पल को संस्कारों से जोड़ा तो उसका परिणाम आज मिला है। जिस वैंकट रमन को आप सभी जानते हैं, वह अपने माता-पिता की कृति है।’
सीख
समय रहते हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार, अच्छी शिक्षा देनी चाहिए। बच्चों को सदाचार सिखाना चाहिए। भगवान आत्म विश्वास का नाम है, अगर समय रहते बच्चे भगवान से जुड़ जाएं तो उनका आत्म विश्वास बड़ा रहेगा और उन्हें सफलता मिलती रहती है।