हिमशिखर खबर ब्यूरो
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह दो बार प्रदोष व्रत रखा जाता है पहला कृष्ण पक्ष में पड़ता है और दूसरा शुक्ल पक्ष में किया जाता है। इस बार गुरुवार के दिन पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने का विधान है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से साधक और व्रत करने वालों के जीवन का दोष मिट जाता है।
कैसे करें प्रदोष व्रत
भगवान शिव की आराधना करने के लिए इस दिन व्रत किया जाता है। पूरे दिन व्रत का पालन करते हुए शाम को प्रदोष काल में पुनः शिव शंकर और माता पार्वती की विधि-विधान पूर्वक पूजा-उपासना करनी चाहिए। कहते हैं प्रदोष काल में पूजन से पहले एक बार पुनः स्नान कर लेना चाहिए। पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
1. सुबह स्नान आदि के बाद भगवान शिव का अभिषेक करें। पूजा में पंचामृत का उपयोग करना चाहिए। भगवान शिव की धूप व दीपक से आरती करें।
2. महादेव को भोग लगाएं और फिर प्रदोष व्रत का संकल्प लें।
3. शाम को महादेव की पूजा करने के बाद आरती उतारें व नैवैद्य अर्पित करें।
4. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व शुरू होकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है। अत: प्रदोष काल में पूजा करते समय इसका विशेष ख्याल रखें।