सुप्रभातम्: आत्महत्या करना है घोर महापाप, ईश्वर के बनाए नियम को तोड़ने पर मिलता है दंड

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

जिंदगी में ऊंच-नीच, उतार -चढ़ाव का होना बहुत जरूरी है क्योंकि बिना संघर्ष के जिंदगी की असली कीमत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। हर किसी को इन सारी चीजों का सामना करना पड़ता है, लेकिन जिंदगी की इस जद्दोजहत में कुछ लोग हार जाते हैं और आत्महत्या कर इससे मुंह मोड़ लेते हैं। संसार में दुखों की मुक्ति का मार्ग आत्मचिंतन है न कि आत्महत्या। आत्महत्या महापाप है।

आत्महत्या

पुराणों में ऐसा कहा गया है कि आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति तभी होती है जब वह अपने कर्मफल को पूरा कर लेता है। अपने कर्मफल को अधूरा छोड़कर जाना संभव नहीं है। जितना दुख दर्द इंसान के हिस्से में लिखा होता है उसे उसका भुगतान हर हाल में करना पड़ता है। जो इनसे भागने या बचने का प्रयास करता है उसे कठिन परिणामों का सामना करना पड़ता है।

आत्महत्या करना वीरता नहीं कायरता है

आत्महत्या महापाप है घिनौना कार्य है। आत्महत्या समाधान नहीं बल्कि समस्याओं का घर है। साहस की नाव में बैठकर विश्वास और विवेक की पतवार से खेने पर समस्या के सागर से पार हो जाते हैं। आत्महत्या करना वीरता नहीं, कायरता है बुद्धिमानी नहीं, पागलपन है। आत्महत्या करने वाले को पश्चाताप ही हाथ लगता है। मरना आसान है, लेकिन शान से जीवन जीना कठिन है। कठिनाइयों का सामना करने वाला महान बनता है प्रसिद्धि को प्राप्त होता है। जिंदगी से हारने वाला आत्महत्या की सोचता है।

मृत्यु के बादः क्या कहता है गरुड़ पुराण: 

गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को जीवन मृत्यु का रहस्य बताया है। इस पुराण में मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार मिलने वाले दंडों के बारे में भी बताया गया है। यह पुराण कहता है कि अपने कर्मों का परिणाम हर हाल में भोगना पड़ता है। जीवन से भगाने का प्रयास करने पर भी इनसे बच नहीं सकते बल्कि आत्मघात के परिणाम और कष्टकारी होते हैं। आत्मघात किसी भी तरह से मोक्ष नहीं दिला सकता है। विष्णु पुराण में श्रीकृष्ण ने मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना करने का ज्ञान दिया है ना कि आत्मघात का।

आत्महत्या के बाद न स्वर्ग मिलता है न नरक:

आत्महत्या का दंड क्या होता है इस विषय में गरुड़ पुराण में बताया गया है कि ऐसे लोगों की आत्मा को घोर यातनाओं से गुजरना पड़ता है। ये ऐसे लोक में जाते हैं जहां ना रोशनी होती है ना जल। आत्मा जल के लिए तड़पती रहती है और अपने किए कर्मों को याद करके रोती रहती है।

आत्महत्या के बाद का कष्ट:

वैदिक ग्रंथों में आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के लिए एक श्लोक लिखा गया है, जो इस प्रकार है…
असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता।
तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।

इसका अर्थ है कि ”आत्महत्या हत्या करने वाला मनुष्य अज्ञान और अंधकार से भरे, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को जाते हैं।”

आत्महत्या से भी पीछा नहीं छोड़ती समस्याएं:

धर्मग्रंथों के अनुसार जिन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति आत्महत्या करता है, उनका हल उसे जिंदा रहने पर तो मिल सकता है लेकिन आत्महत्या करके अंतहीन कष्टों वाले जीवन की शुरुआत हो जाती है। इन्हें बार-बार ईश्वर के बनाए नियम को तोड़ने का दंड भोगना पड़ता है।

आत्महत्या के बाद ऐसा जीवन:

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आत्महत्या के बाद आत्मा को भूत-प्रेत-पिशाच जैसी कई योनियों में भटकना पड़ता है। यदि आत्महत्या से पहले व्यक्ति की कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो उसकी पूर्ति के लिए उसे फिर से जन्म लेना होता है। इस बीच आत्मा को कई प्रकार के नरक से गुजरना पड़ता है।

तब तक नहीं मिलती है आत्मा को मुक्ति:

पुराणों के अनुसार, जन्म और मृत्यु प्रकृति के द्वारा चलाया जाने वाला चक्र है, जिसे प्रकृति मनुष्य के कर्मों के आधार पर निर्धारित करती है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति की उम्र 80 साल निर्धारित की गई हो और वह 50 साल की उम्र में आत्महत्या कर ले तो उसकी आत्मा को 30 वर्षों तक मुक्ति नहीं मिलेगी, जब तक उसकी निर्धारित आयु पूरी नहीं हो जाती।

इस तरह तड़पती रहती है आत्मा:

धार्मिक मान्यताएं हैं कि जो व्यक्ति आत्महत्या करता है, उसकी आत्मा न तो स्वर्ग जा सकती है, न नरक और न ही वह वापस अपने खोए हुए जीवन में आ सकती है। ऐसे में वह आत्मा अधर में लटक जाती है और अंधकार में भटकते हुए छटपटाहट भरा जीवन जीती है, तब तक जब तक कि उसकी असल उम्र पूरी नहीं हो जाती।

दर-दर भटकने को मजबूर

हिंदू धर्म में मान्यता है कि आत्‍महत्‍या करने के बाद जो जीवन होता है वह इस जीवन से ज्‍यादा कष्‍टकारी होता है। आत्मा अधूरेपन की भावना के साथ दर-दर भटकती है। क्योंकि आत्महत्या से उसका जीवन चक्र अधूरा रह जाता है। व्यक्ति की आत्मा को जब नया शरीर मिलता है तब फिर से उन कर्मों को भोगना पड़ता जिससे भागकर उसने आत्मघात किया होता है। यानी कर्मों से भागकर कहीं नहीं जा सकते हैं। जो भी कर्मफल है उसको तो भोगना ही पड़ता है। आत्मघात से कर्मों से मुक्ति नहीं मिलती है बल्कि और भी कष्ट भोगना पड़ता है।

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