…जब बाबा केदारनाथ को अर्पित ‘चावल’ बन जाता है ‘विष’, जानिए रहस्य

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

भगवान आशुतोष के 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ में भतूज (अन्नकूट) मेले की परंपरा सदियों पुरानी है। भतूज मेला रक्षाबंधन के एक दिन पूर्व लगता है। इसमें शिवलिंग को पके चावलों (भात) से अलंकृत कर श्रृंगार किया जाता है। भात के एक-एक दाने की शिवलिंग के चारों ओर लाइन लगाई जाती है।  यह पर्व केदारपुरी में रक्षाबंधन से एक दिन पहले 10 अगस्त को  मनाया जाएगा।

चावल से किया जाता है केदारनाथ का श्रृंगार
केदारनाथ का भतूज मेला भगवान शिव शंकर के चमत्कारों को दिखाता है। केदारपुरी में रक्षाबंधन के पूर्व बड़ी मात्रा में चावल का भात पकाया जाता है। फिर  इस भात को केदारेश्वर के स्वंभू लिंग पर लेपन किया जाता है। भात से ही भगवान भोले शंकर का श्रृंगार किए जाने से यह मेला भतूज मेला कहलाता है। श्रृंगार हो जाने के बाद श्रद्धालु इसका दर्शन करते हैं। केदारनाथ के मुख्य पुजारी टी गंगाधर लिंंग ने बताया कि इसके लिए तैयारी शुुरू कर दी गई है।

भात लेपन का अर्थ है अन्नकूट देना
रक्षाबंधन पर यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु व स्थानीय लोग भगवान केदार के भात से अद्भुत श्रृंगार का दर्शन करते हैं। जिसे भतूज दर्शन कहा जाता है। भात लेपन का अर्थ भगवान को अन्नकूट देने से भी है। इसलिए इस परम्परा को अन्नकूट दर्शन भी कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग का प्रसाद लगाने के बाद यह भक्तों में बांट दिया जाता है। लेकिन महाकाल शिव के प्रसाद को इस दिन ग्रहण करना निषेध बताया गया है।

जब भात बन जाता है ‘विष’
केदारनाथ में भतूज मेले में भगवान को लेप किए गए भात को लेने की उत्सुकता कई श्रद्धालुओं में होती है। लेकिन यह किसी को नहीं दिया जाता है। यह अन्नकूट का भात रूपी प्रसाद विष के समान हो जाता है। मनुष्य क्या यह किसी पशु-पक्षी तक को भी नहीं दिया जाता। यह भगवान शिव की महिमा का चमत्कार ही कहा जा सकता है कि नीलकंठ महादेव स्वयं इसे किसी के ग्रहण योग्य रहने नहीं देते। इस विषमय भात के लिए भतूज मेले के एक दिन पूर्व ही गहरा गड्ढा खोद दिया जाता है। गड्ढे में सारा भात उड़ेलकर उसे पूरी तरह बंद कर दिया जाता है। इस तरह भगवान शिव के प्रसाद का भतूज मेले में दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को धन्य मानते हैं।

यह है मान्यता
इस परम्परा के पीछे यह मान्यता प्रचलित है कि जब भगवान शिव ने विश्व के कल्याण के लिए हलाहल विष का पान किया था, तो विष अग्नि को शांत करने के लिए विभिन्न औषधियों और अन्न रस का उन्होंने सेवन किया था। प्रतीक रूप में भात को शिवलिंग के चारों ओर लगाया जाता है। इसी कारण भगवान को अर्पित पके चावलों को प्रसाद रूप में वितरित नहीं किया जाता है। वही यह भी मान्यता है कि भगवान शिव नए अनाज के विष का शमन कर देते हैं।

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