हिमशिखर धर्म डेस्क
आज रक्षाबंधन पर्व है। ज्योतिषियों के मुताबिक भद्रा के चलते आज राखी बांधने के लिए एक ही शुभ मुहूर्त है। जो रात में 8.53 से 9.21 तक रहेगा। इस शुभ समय में भगवान गणेश या श्रीकृष्ण को राखी बांधकर या चढ़ाने के बाद पर्व की शुरुआत करनी चाहिए। इसके बाद घर के बड़े, फिर छोटे लोग रक्षाबंधन करें। जिन बहनों के भाई न हो या दूर हो तो वो भगवान को राखी बांधकर ये पर्व मना सकती हैं।
काशी विद्वत परिषद, बनारस, उज्जैन, हरिद्वार, पुरी और तिरुपति के विद्वानों का कहना है कि जब तक भद्रा काल पूरी तरह खत्म न हो जाए तब तक रक्षाबंधन न करें।
श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण माह की पूर्णिमा की तिथि आज 11 अगस्त को सुबह 10 बजकर 39 मिनट से शुरू हो जाएगी। पूर्णिमा तिथि का समापन 12 अगस्त, शुक्रवार को सुबह 7 बजकर 6 मिनट पर होगा। पंचांग के अनुसार 11 अगस्त को पूर्णिमा तिथि लगने के साथ ही भद्रा काल शुरू हो जाएगी, जो शाम को 8 बजकर 52 मिनट तक रहेगी। रक्षाबंधन का एक आवश्यक नियम यह है कि भद्रा काल में राखी नहीं बांधी जाती है। 11 अगस्त को भ्रदा के दौरान चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे, इस कारण से भ्रदा का वास पाताल लोक में माना जाएगा। लेकिन इसका असर पृथ्वीवासियों पर भी पड़ेगा। ऐसे में ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि 11 अगस्त को भ्रदा की समाप्ति होने पर यानी रात 08 बजकर 53 मिनट से 9 बजकर 21 मिनट के बीच राखी बांधने का शुभ मुहूर्त है। इसके साथ ही 12 अगस्त को सुबह सूर्योदय से 7 बजकर 7 मिनट तक भी राखी बांधी जा सकेगी। 12 अगस्त को पूर्णिमा सूर्योदय व्यापिनी तो है पर 3 मुहूर्त से कम है। इसलिए पूरे दिन रक्षाबंधन नहीं मनाया जा सकता।
श्रीकृष्ण को बांध सकते हैं राखी
गणेशजी को राखी चढ़ाकर पर्व की शुरुआत करने का विधान ग्रंथों में बताया है। ऐसा करने से त्योहार के दौरान आने वाले तिथि दोष या अशुभ योगों का असर खत्म हो जाता है। इस पर्व पर भाई-बहन दूर हैं या किसी का भाई नहीं है तो बहन अपने भाई की लंबी उम्र की कामना से भगवान गणेश या श्रीकृष्ण की मूर्ति को राखी बांध सकती हैं। श्रीकृष्ण ने भाई बनकर जिस तरह द्रोपदी की रक्षा की उसी भाव से श्रीकृष्ण को रक्षा सूत्र चढ़ाया जाता है।
विप्र रक्षा सूत्र: रक्षाबंधन के दिन किसी तीर्थ या जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान के बाद सिद्ध रक्षा सूत्र को विद्वान पुरोहित ब्राह्मण द्वारा स्वस्ति वाचन करते हुए यजमान के दाहिने हाथ मे बांधना शास्त्रों में सर्वोच्च रक्षा सूत्र माना गया है।
गुरु रक्षा सूत्र: गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए इसे अपने शिष्य के दाहिने हाथ में बांधते है।
मातृ-पितृ रक्षा सूत्र: अपनी संतान की रक्षा के लिए माता-पिता द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र शास्त्रों में करंडक कहा जाता है।
स्वसृ-रक्षा सूत्र: कुल पुरोहित या वेदपाठी ब्राह्मण के रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहन भाई की दाईं कलाई पर मुसीबतों से बचाने के लिए रक्षा सूत्र बांधती है। भविष्य पुराण में भी इस बारे में बताया गया है। इससे भाई की उम्र और समृद्धि बढ़ती है।
गौ रक्षा सूत्र: अगस्त संहिता के अनुसार गौ माता को राखी बांधने से हर तरह के रोग- शोक और दोष दूर होते हैं। यह विधान भी प्राचीन काल से चला आ रहा है।
वृक्ष रक्षा सूत्र: किसी का कोई भाई ना हो तो उसे बरगद, पीपल, गूलर के पेड़ को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए। पुराणों में ये बात खासतौर से बताई गई है।
अश्वरक्षा सूत्र: ज्योतिष ग्रंथ बृहत्संहिता के अनुसार पहले घोड़ों को भी रक्षा सूत्र बांधा जाता था। इससे सेना की भी रक्षा होती थी। आजकल घोड़ों की जगह गाड़ियों को भी ये सूत्र बांधा जाता है।