हिमशिखर धर्म डेस्क
सही सलाह किसी का भी जीवन बदल सकती है। इसलिए किसी को सलाह देनी हो तो बहुत सोच-समझकर देनी चाहिए। सलाह देते समय सामने वाले व्यक्ति की अच्छी-बुरी हर एक बात पर गौर करना चाहिए, तभी उसके लिए जो सही हो, वह सलाह दें।
कुबेरदेव ने शिव जी पूरे परिवार के साथ भोजन के लिए अपने महल आने का न्योता दिया। शिव जी समझ गए कि कुबेरदेव को घमंड हो गया है। उन्होंने कहा, हमसे अच्छा है कि आप जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं।
कुबेरदेव ने जवाब दिया, मैं तो सभी को खाना खिलाते रहता है, आज मेरी इच्छा है कि मैं आपके परिवार को भी खाना खिलाऊं। इसलिए आप मेरे महल में आइए और राजसी भोजन करिए।
शिव जी ने सोचा, कुबेरदेव का घमंड दूर करना होगा। उन्होंने कहा, मैं तो नहीं, लेकिन आप गणेश को ले जाइए। ध्यान रखिएगा कि गणेश बहुत जल्दी तृप्त नहीं होता है।
कुबेरदेर को अहंकार था ही तो उन्होंने कहा, ‘मैं तो सभी को भोजन करा सकता हूं तो गणेश जी को भी तृप्त कर सकता हूं।
आमंत्रण मिलते ही गणेश जी कुबेरदेव के महल में पहुंच गए। कुबेरदेव ने गणेश जी के लिए बहुत सारा खाना बनवाया और गणेश जी को खाना परोसना शुरू किया।
बहुत देर तक खाना खाने के बाद भी गणेश जी तृप्त नहीं हुए। कुबेरदेव के यहां का अन्न का भंडार ही खाली हो गया, लेकिन गणेश जी को और भूख लग रही थी।
थक-हारकर कुबेरदेव तुरंत ही शिव जी के पास पहुंचे और पूरी बात बता दी। कुछ ही देर में गणेश जी भी वहीं पहुंच गए। शिव जी ने देवी पार्वती से गणेश जी के खाने के लिए कुछ लाने के लिए कहा।
पार्वती जी तुरंत ही खाना ले आईं। देवी पार्वती के हाथ का बना खाना खाकर गणेश जी भूख शांत हो गई।
ये देखकर कुबेरदेव को अपनी गलती का एहसास हो गया। कुबेरदेव ने शिव जी से क्षमा मांगी और घमंड न करने का संकल्प लिया।
इस कथा से हमें सीख मिल रही है कि हमें कभी भी अपनी धन-संपत्ति का घमंड नहीं करना चाहिए।