हिमशिखर धर्म डेस्क
जो शक्ति से रहित है वही निष्क्रिय है, असफल है, आलसी है और यूं कहें कि मृत है। अगर आप जरा भी शक्तिहीन हो रहे हों तो इन नौ दिनों में जुट जाइए शक्ति संचय के लिए। महाशक्ति पग-पग, पल-पल, घट-घट अपनी शक्ति वितरित करने के लिए निकली हैं। ध्रुव और प्रहलाद के भीतर जो उतरा था वो भक्ति इसी शक्ति का रूप थी। जब ये शक्ति प्रेम में परिवर्तित हुई तो गोपिकाएं भी पूजित हो गईं।
ये वही शक्ति है जो ब्रह्मचर्य बनी तो भीष्म पूरे जग में सम्मानित हुए। हनुमान तो सेवा-शक्ति के प्रतीक बन गए। जब ये शक्ति कवित्व में उतरी तो वाल्मीकि और व्यास जैसे रचनाकारों ने धरती को धन्य कर दिया। भीम और अर्जुन का यशगान इसीलिए होता है कि उनके पराक्रम में यही शक्ति उतरी थी। ये शक्ति जब सत्य से जुड़ी तो हरिश्चंद्र और युधिष्ठिर जैसे लोग धरती पर आए।
यही शक्ति जब वीरता बनी तो शिवाजी और महाराणा प्रताप हमें आज तक याद आते हैं। इसी शक्ति ने ध्यान में उतरकर बुद्ध दिए। इसी शक्ति ने तप में उतरकर महावीर सौंंपे। हमारे पास इस शक्ति के सदुपयोग के अनेकों उदाहरण हैं। तो क्यों न हम भी उस उदाहरण में अपने आपको शामिल कर लें।