मां धारी देवी की मूर्ति नए मंदिर में शिफ्टिंग को लेकर शतचंडी यज्ञ शुरू

मां धारी देवी नौ साल बाद अपने स्थायी भवन में विराजमान होंगी। मां को 28 जनवरी को उनके स्थायी मंदिर में स्थापित किया जाएगा। आज से महा अनुष्ठान भी शुरू हो गया है।


हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

श्रीनगर: आखिरकार लंंबे इंतज़ार के बाद सिद्धपीठ मां धारी देवी की प्रतिमा शिफ्टिंग की प्रक्रिया शुरू हो गई है। आज यानी 24 जनवरी से 28 जनवरी तक महा अनुष्ठान भी शुरू हो गया है। दरअसल, उत्तराखंडवासी लंबे समय से धारी देवी की प्रतिमा को नए मंदिर में स्थापित करने का इंतजार कर रहे थे। शिफ्टिंग की प्रक्रिया शुरू होने से देवभूमि के लोगों में भी खुशी की लहर है।

देवभूमि की रक्षक मां धारी देवी की मूर्ति जल्द अपने नए मंदिर में स्थापित होने जा रही है। इसको लेकर आज 22 जनवरी से नवनिर्मित मंदिर में धारी देवी के नाम से पाठ शुरू कर दिया गया है। जबकि मंदिर में मूर्ति 28 जनवरी को शिफ्ट की जाएगी।

बता दें कि श्रीनगर से 14 किमी दूर कल्यासौड़ स्थित सिद्धपीठ मां धारी देवी की मूर्ति आगामी 28 जनवरी को करीब नौ साल बाद अपने मूल स्थान पर विराजमान होंगी। जिसे लेकर मंदिर समिति ने मूर्ति स्थापना से पहले मंगलवार से शतचंडी यज्ञ का शुभारंभ किया। आगामी 28 जनवरी को शुभ मुहूर्त पर मां धारी देवी की मूर्ति समेत अन्य प्रतिमाओं को नए मंदिर में शिफ्ट किया जाना है।

श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के बाद यह डूब क्षेत्र में आ रहा था। इसके लिए इसी स्थान पर परियोजना संचालन कर रही कंपनी की ओर से पिलर खड़े कर मंदिर का निर्माण कराया जा रहा था, लेकिन जून 2013 में केदारनाथ जलप्रलय के कारण अलकनंदा नदी का जलस्तर बढ़ने की वजह से प्रतिमाओं को अपलिफ्ट कर दिया गया था और पिछले नौ साल से प्रतिमा इसी अस्थायी स्थान में विराजमान हैं।

गौर हो कि श्रीनगर इलाके में एक प्राचीन सिद्धपीठ मौजूद है, जिसे ‘धारी देवी’ के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धपीठ को ‘दक्षिण काली माता’ के रूप में भी पूजा जाता है। मान्यता है कि चारों धाम सहित देवभूमि की रक्षा धारी देवी ही करती हैं।

दिन में तीन बार रूप बदलती है प्रतिमा

धारी देवी की प्रतिमा को लेकर मान्यता है कि यह प्रतिमा दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। कहा जाता है कि मां की मूर्ति सुबह के समय एक कन्या के रूप में नजर आती है तो दिन के समय यह एक युवती का रूप धारण कर लेती है, जबकि शाम के समय यह प्रतिमा वृद्धा का रूप ले लेती है।

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