6 या 7 मार्च कब है ‘होलिका दहन’? दूर कीजिए कन्फ्यूजन, जानिए कब खेली जाएगी रंगों की होली

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

होलिका दहन और धुलेंडी पर्व को लेकर अलग-अलग स्थिति निर्मित हो रही है। पंचांग में 6-7 मार्च को होलिका दहन और धुलेंडी तथा कई कैलेंडर में 7-8 मार्च को होलिका दहन और धुलेंडी पर्व मनाया जाना बताया गया है। ऐसे में जनमानस में इन दोनों पर्व को लेकर अलग-अलग स्थिति निर्मित होने के साथ ही तय नहीं कर पा रहे हैं पर्व कब मनाएं। ज्योतिषियों के अनुसार 6 मार्च को होलिका दहन किया जाना और धुलेंडी पर्व 7 मार्च का करना शास्त्र सम्मत है। हालांकि शासकीय व गैर शासकीय संस्थानों सहित अन्य विभागों में 8 मार्च को धुलेंडी पर्व का अवकाश है। ऐसे में विद्वत सभा ने मुख्यमंत्री से भी निवेदन किया है कि धुलेंडी की छुट्टी 7 तारीख को घोषित की जाए ताकि सभी लोग अपने त्योहारों को तिथि अनुसार शास्त्र सम्मत तरीके से मना सकें।

रंगों का त्योहार होली बस आने ही वाला है। इसे देश के साथ-साथ विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। रंगों का त्योहार होली हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है और फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। वहीं इस वर्ष होली की तारीख को लेकर लोगों के बीच थोड़ा कंफ्यूजन देखने को मिल रहै है। लोग जानना चाहते हैं कि इस साल होली का त्योहार 6 मार्च या 7 मार्च कब मनाया जाएगा। होली के त्योहार की तारीख को लेकर उत्तराखण्ड विद्वत सभा ने निर्णय लिया है कि इस वर्ष होलिका दहन 6 मार्च को यानी कि सोमवार को होगा, धुलेंडी 7 मार्च को रहेगी।

उत्तराखण्ड विद्वत सभा ने सर्वानुमति से एक होकर यह निर्णय लिया है कि होलिका दहन 6 मार्च को होगा, धुलेंडी 7 मार्च को और रंग पंचमी 12 मार्च को रहेगी। इस संबंध में विद्वत सभा ने मुख्यमंत्री से भी निवेदन किया है कि धुलेंडी की छुट्टी 7 तारीख को घोषित की जाए ताकि सभी लोग अपने त्योहारों को तिथि अनुसार शास्त्र सम्मत तरीके से मना सकें।

जानिए, होलिका दहन कब करें..

सवाल: होलिका दहन की तिथि को लेकर मतभेद क्यों?

जवाब: हर साल फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर होली जलती है और अगले दिन रंग लगाकर त्योहार मनाते हैं, लेकिन इस बार पूर्णिमा तिथि दो दिन तक रहेगी। इसलिए कन्फ्यूजन हुआ है। साथ ही अशुभ भद्रा काल भी रहेगा। इसी कारण किसी पंचांग में होलिका दहन 6 तो किसी में 7 मार्च को बताया है।

सवाल: पूर्णिमा और भद्रा कब से कब तक रहेगी?

जवाब: पूर्णिमा 6 मार्च की शाम तकरीबन साढ़े 4 बजे शुरू होगी और 7 की शाम लगभग 6.10 तक रहेगी। साथ ही भद्रा 6 मार्च की शाम करीब 4:18 से 7 मार्च की सुबह सूर्योदय तक रहेगी। इसमें भद्रा का पुच्छ काल 6 और 7 मार्च की दरमियानी रात 2:30 से 4 बजे तक रहेगा। ऐसे में भद्रा के पुच्छ काल में ही होलिका दहन किया जाना शुभ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है। यह होलिका दहन का दोष है। माना जाता है कि भद्रा के स्वामी यमराज होने के कारण इस योग में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है। होलिका दहन भद्रा पुच्छ में किया जा सकता है। इस समय भद्रा का प्रभाव कम होता है।

सवाल: होलिका दहन कब करें?

जवाब: होलिका दहन 6 और 7 मार्च के बीच की रात 2.40 से 4 बजे के बीच करना शुभ रहेगा, क्योंकि 7 मार्च की शाम को पूर्णिमा तिथि 6.10 तक ही रहेगी। चूंकि होलिका दहन सूर्यास्त के बाद किया जाता है और इस दिन पूर्णिमा सूर्यास्त से पहले ही खत्म हो जाएगी।

सवाल: कैसे तय होता है होलिका दहन का मुहूर्त?

जवाब: होलिका दहन का मुहूर्त तीन बातों से तय होता है। जिसमें पूर्णिमा तिथि और सूर्यास्त के बाद का समय जिसे प्रदोष काल कहते हैं। ये दोनों होना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि भद्रा काल न हो।

उत्तराखंड विद्वत सभा के पूर्व अध्यक्ष पंडित उदय शंकर भट्ट कहना है कि बहुत ही कम ऐसा होता है जब ये तीनों योग एक साथ बने। इसलिए सबसे जरूरी बात पूर्णिमा तिथि में होलिका दहन होना चाहिए। पूर्णिमा के साथ भद्रा भी हो तो पूर्णिमा के रहते हुए पुच्छ काल में यानी भद्रा के आखिरी समय में होलिका दहन कर सकते हैं।

पंडित हरषमणि बहुगुणा कहते हैं कि होली और रक्षा बन्धन दो ऐसे त्योहार है जिन पर भद्रा का साया सदैव रहता है। पंचांगों में जो निर्धारण किया गया है तदनुरूप मानना श्रेयस्कर है। यह विवाद / चर्चा सदैव रहती है कि भद्रा में होलिका दहन व रक्षा बन्धन नहीं करना चाहिए। सही है परन्तु हम स्वयं विचार करें कि पण्डित जी ने जो विवाह लग्न बना रखा है क्या हम उसके अनुसार चलते हैं। विवाह नक्षत्र के समाप्त होने के बाद विवाह की रश्म क्या पूरी नहीं करते हैं? अपितु “सब चलता है” का वाक्य बोल कर काम करते हैं। कितनी ही जगह बारात घर जिस दिन खाली है, उस दिन वैवाहिक रश्म पूरी करते हैं। यह आलोचना नहीं अपितु एक सच्चाई है। आश्चर्य तो तब होता है जब कोई व्यक्ति सही तर्क देता है तो उसके विरोध में कितने ही लोग खड़े हो जाते हैं। पर आज चर्चा का विषय होलिका दहन का है। कब होगा होलिका दहन इस पर कुछ लोगों ने प्रेक्षा की।

इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा छ: मार्च को सायं 4/19 बजे से प्रारम्भ हो रही है जो अगले दिन सात मार्च को 6/11 बजे तक है। पूर्णिमा प्रारम्भ होने पर भद्रा भी प्रारम्भ हो जाती है, और पूर्णिमा के मान के आधे समय तक रहती है। अर्थात् इस पूर्णिमा का मान 25 घण्टे/52 मिनट है अतः भद्रा 12 घण्टे/56 मिनट तक रह कर रात (सुबह) पांच बजकर पन्द्रह मिनट तक रहेगी ( 5/15 बजे प्रातः तक)। सूर्यास्त का समय दोनों दिन 6/14 है और होलिका दहन प्रदोषकाल में किया जाता है। जो केवल छ: मार्च को ही है। परन्तु भद्रा में होलिका दहन नहीं होगा तो फिर कब किया जाय? यह प्रश्न हर किसी के जहन में रहेगा ही। अतः मुहूर्त कार मनीषियों की बात को मान कर यह निर्णय लिया जा सकता है कि यदि दिन की भद्रा रात्रि में हो और रात की भद्रा दिन में हो तो उसे प्रतिकूल काल वाली भद्रा माना जाता है। यहां यह कहना समीचीन है कि कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी तथा शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा की भद्रा दिन की भद्रा होती हैं यह भद्रा तिथि के पूर्वार्द्ध में होती हैं। भद्रा में अपरिहार्य परिस्थितियों में शुभ कर्म किए जा सकते हैं इसके लिए शास्त्र कारों ने परिहार भी बताया है।
विष्टिरंगारकश्चैव व्यतीपातश्च वैधृति:।
प्रत्यरि जन्म नक्षत्रं मध्याह्यत् परत: शुभम्।।’
अर्थात् जो भद्रा मध्याह्न से पहले प्रारम्भ हो जाती है उसे अशुभ और जो मध्याह्न के बाद प्रारम्भ होती है वह शुभ होती है। भद्रा के पुच्छ काल को शुभ माना गया: है । परन्तु अति आवश्यकता की स्थिति में भद्रा का मुख काल छोड़ कर शेष भाग में होलिका दहन किया जा सकता है।
कार्येsत्यावश्यके विष्टे:मुखमात्रं परित्यजेत् ।
यदि प्रतिपदा का मान पूर्णिमा से अधिक हो तो अगले दिन भी होलिका दहन किया जा सकता था, पर इस बार प्रतिपदा का मान पूर्णिमा से कम है। अर्थात् पूर्णिमा का मान 25घण्टे 52 मिनट है तथा प्रतिपदा का मान 25 घण्टे 31मिनट है। अतः सात मार्च को होलिका दहन का प्रश्न हो ही नहीं सकता।

मुहूर्त संहिता, मुहूर्त चिंतामणि, पीयूष धारा, निर्णय सिंधु आदि ग्रन्थों में कहा गया है कि अपरिहार्य परिस्थितियों में परिहार का प्रयोग किया जा सकता है। अतः अधिक संशय को त्याग कर छ: मार्च को प्रदोषकाल के बाद होलिका दहन किया जाएगा। और रंग, धूलिवंदन, धूलिधारण सात मार्च को होगा। कहीं भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ऐसे में पंचांगों में जो निर्णय दे रखा है वही सर्व मान्य है। यह सम्भव हो सकता है कि पूर्वांचल में कहीं सात मार्च को सूर्यास्त पूर्णिमा समापन से पहले हो रहा होगा तो प्रदोषकाल सात मार्च को होने से होलिका दहन सात मार्च को दिखाया गया होगा, ऐसा अपवाद भी हो सकता है। परन्तु इलाहाबाद से पश्चिमी भागों में यह स्थिति नहीं हो सकती है। अतः होलिका दहन 06 मार्च को बाद होगा व धूलिवंदन सात मार्च को होगा। शेष अपने विवेक से निर्णय लिया जा सकता है।

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