इस ब्रह्माण्ड में आदि शक्ति के अनंत रूप अपने अपने सुनिश्चित कार्यों को गति प्रदान करने के लिए तथा ब्रह्माण्ड के योग्य संचालन के लिए अपने नियत क्रम के अनुसार वेगवान है। यही ब्रह्मांडीय शक्ति के मूल तिन द्रश्य्मान स्वरुप को हम महासरस्वती, महालक्ष्मी तथा महाकाली के रूप में देखते है। यही तीन शक्तियां सर्जन, पालन तथा संहार क्रम की मूल शक्तियां है जो की त्रिदेव की सर्वकार्य क्षमता का आधार है। यही त्रिदेवी ब्रह्माण्ड की सभी क्रियाओ में सूक्ष्म या स्थूल रूप से अपना कार्य करती ही रहती है। तथा यही शक्ति मनुष्य के अंदर तथा बाह्य दोनों रूप में विद्यमान है। मनुष्य के जीवन में होने वाली सभी घटनाओ का मुख्य कारण इन्ही त्रिशक्ति के सूक्ष्म रूप है ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति और क्रियाशक्ति। ज्ञान, इच्छा तथा क्रिया के माध्यम से ही हमारा पूर्ण अस्तित्व बनता है, चाहे वह हमारे रोज जीवन की शुरूआत से ले कर अंत हो या फिर हमारे सूक्ष्म से सूक्ष्म या वृहद से वृहद क्रियाकलाप। हमारे जीवन के सभी क्षण इन्ही त्रिशक्ति के अनुरूप गतिशील रहते है। वस्तुतः जैसा की शास्त्रो में कहा गया है मनुष्य शरीर ब्रह्माण्ड की एक अत्यंत ही अद्भुत रचना है। लेकिन मनुष्य को अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं है, उसकी अनंत क्षमताएं सुप्त रूप में उसके भीतर ही विद्यमान होती है। इसी प्रकार यह त्रिशक्ति का नियंत्रण वस्तुतः हमारे हाथ में नहीं है और हमें इसका कोई ज्ञान भी नहीं होता है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा करने के साथ ही देवी कथाएं सुनने और पढ़ने का महत्व काफी अधिक है। मान्यता है कि ऐसा करने से अक्षय पुण्य मिलता है और सकारात्मकता बढ़ती है। देवी दुर्गा ने समय-समय पर अपने भक्तों के कष्ट दूर करने के लिए अलग-अलग अवतार लिए हैं। प्राचीन समय में महिषासुर को ब्रह्मा जी से वरदान मिल गया था कि कोई भी देवता-दानव उसका वध नहीं कर पाएंगे, तब देवी दुर्गा अवतरित हुई थीं और उन्होंने महिषासुर का वध किया था।
श्रीकृष्ण से पहले हुआ था देवी योगमाया का अवतार
द्वापर युग में भगवान विष्णु श्रीकृष्ण (श्री कृष्ण के 1000 नाम) के रूप में प्रकट होने वाले थे। कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और दूसरी ओर गोकुल में नंद बाबा के यहां यशोदा जी के गर्भ से देवी मां ने योगमाया के रूप में यशोदा जी के गर्भ से जन्म लिया था। उस समय यशोदा जी गहरी नींद में थीं। वसुदेव कंस के कारागार से बालक कृष्ण को लेकर गोकुल पहुंचे और कृष्ण को यशोदा जी के पास रख दिया और वहां से नन्हीं बालिका को उठाकर मथुरा के कारागार में वापस आ गए थे और बालिका को देवकी के पास रख दिया।
कंस को जब देवकी की आठवीं संतान के बारे में खबर मिली तो वह तुरंत ही कारागार में पहुंच गया। कंस ने देवकी के पास उस नन्ही बालिका को उठा लिया और जैसे ही कंस ने उसे मारने की कोशिश की तो बालिका उसके हाथ से छूटकर आकाश की ओर चली गईं। देवी ने जाने से पहले कंस के सामने आकाशवाणी की थी कि तुम्हारा वध करने वाला जन्म ले चुका है। योगमाया देवी का एक नाम मां विंध्यवासिनी भी है।
माता दुर्गा ने तोड़ा देवताओं का घमंड
एक बार देवताओं को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। जब माता दुर्गा ने देवताओं का घमंड देखा तो वे एक तेजपुंज के रूप में प्रकट हुईं। विराट तेजपुंज का रहस्य जानने के लिए इंद्र ने पवनदेव को भेजा।
पवनदेव ने खुद को सबसे शक्तिशाली देवता बताया। तब तेजपुंज ने वायुदेव के सामने एक तिनका रखा और तिनके को उड़ाने की चुनौती दी। पूरी ताकत लगाने के बाद भी पवनदेव उस तिनके को हिला न सके। इनके बाद अग्निदेव पहुंचे तो उन्हें चुनौती दी की इस तिनके को जलाकर दिखाएं, लेकिन अग्निदेव की असफल हो गए।
इन दोनों देवताओं की हार के बाद देवराज इंद्र का घमंड टूट गया और उन्होंने तेजपुंज की उपासना की। देवी मां वहां प्रकट हुईं और घमंड न करने की सलाह दी।
असंख्य आंखों के साथ प्रकट हुई थीं शाकंभरी
एक बार असुरों के आतंक की वजह से धरती पर कई वर्षों तक सूखा और अकाल पड़ गया था। तब भक्तों के दुख दूर करने के लिए असंख्य आंखों वाली देवी शाकंभरी प्रकट हुईं।
देवी ने लगातार नौ दिनों तक अपनी हजारों से आंसुओं की बारिश की थी, जिससे पृथ्वी पर फिर से हरियाली छा गई थी। शाकंभरी को ही शताक्षी नाम से भी जाना जाता है। इस स्वरूप में देवी फल और वनस्पतियों के प्रकट हुई थीं।
आज करें मां कुष्मांडा की पूजा
चैत्र नवरात्रि का आज चौथा दिन है। कहते हैं देवी ने अपनी मंद मुस्कुराहट और अपने उदर से इस ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था जिसके चलते इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। .इनकी उपासना शांत मन के साथ करनी चाहिए। मां कुष्मांडा की पूजा से अजेय रहने का वरदान मिलता है। कहते हैं जब संसार में चारों ओर अंधियारा छाया था, तब मां कुष्मांडा ने ही अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा और आदिशक्ति भी कहते हैं।
मां कुष्मांडा का स्वरूप
माना जाता है कि देवी भगवती के कूष्मांडा स्वरूप ने अपनी मंद मुस्कुराहट से ही सृष्टि की रचना की थी इसलिए देवी कुष्मांडा को सृष्टि की आदि स्वरूपा और आदि शक्ति माना गया है. देवी कुष्मांडा को समर्पित इस दिन का संबंध हरे रंग से जाना जाता है. माता रानी की आठ भुजाएं हैं जिसमें से सात में उन्होंने कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत का कलश, चक्र, और गदा लिया हुआ है। माता के आठवें हाथ में जप माला है और माँ सिंह के वाहन पर सवार हैं। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।