हिमशिखर धर्म डेस्क
सूतजी कहते हैं– भगवान की भक्ति का बड़ा माहात्म्य हैं। सुनकर नारदजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने ज्ञान-विज्ञान के पारगामी सनक मुनि से इस प्रकार प्रश्न किया।
नारदजी बोले—मुने ! आप शास्त्रों के विद्वान् हैं। मुझ पर बड़ी भारी दया करके यह ठीक-ठीक बताइये कि क्षेत्रों में उत्तम क्षेत्र तथा तीथों में उत्तम तीर्थ कौन है ?
सनकजी ने कहा– ब्रह्मन्! यह परम गोपनीय प्रसङ्ग है, सुनो। उत्तम क्षेत्रों का यह वर्णन सब प्रकार की सम्पत्तियों- को देने वाला, श्रेष्ठ, बुरे स्वप्नों का नाशक, पवित्र, धर्मानुकूल, देव पापहारी तथा शुभ है। मुनियों को नित्य-निरन्तर इसका श्रवण करना चाहिये। गङ्गा और यमुना का जो सङ्गम है, अप उसी को महर्षि लोग शास्त्रों में उत्तम क्षेत्र तथा तीर्थों में उत्तम तीर्थ कहते हैं। ब्रह्मा आदि समस्त देवता, मुनि तथा पुण्य की इच्छा रखने वाले सब मनुष्य श्वेत और श्याम जल से भरे हुए उस सङ्गम-तीर्थ का सेवन करते हैं। गङ्गा को परम पवित्र नदी समझना चाहिये; क्योंकि वह भगवान् विष्णु के चरणों से प्रकट हुई है। इसी प्रकार यमुना भी साक्षात् सूर्य की पुत्री हैं। ब्रह्मन् ! इन दोनों का समागम परम कल्याणकारी है। मुने ! नदियों में श्रेष्ठ गङ्गा स्मरण-मात्र से समस्त क्लेशों का नाश करने वाली, सम्पूर्ण पाप को दूर करने वाली तथा सारे उपद्रवों को मिटा देने वाली है। महामुने! समुद्रपर्यन्त पृथ्वी पर जो-जो पुण्यक्षेत्र है, उन सबसे अधिक पुण्यतम क्षेत्र प्रयाग को ही जानना चाहिये। जहाँ ब्रह्माजी ने यज्ञ द्वारा भगवान् लक्ष्मीपति का यजन किया है तथा सब महर्षियों ने भी वहाँ नाना प्रकार के यज्ञ किये हैं। सब तीर्थों में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होते हैं, वे सब मिलकर गङ्गाजी के एक बूँद जल से किये हुए अभिषेक की सोलहवीं कला की भी समता नहीं कर सकते। जो गङ्गा से सौ योजन दूर खड़ा होकर भी गङ्गा गङ्गा’ का उच्चारण करता है, वह भी पापों से मुक्त हो जाता है; फिर जो गङ्गा में स्नान करता है, उसके लिये तो कहना ही क्या है! भगवान् विष्णु के चरणकमलों से प्रकट होकर भगवान् शिव के मस्तक पर विराजमान होने वाली भगवती गङ्गा मुनियों और देवताओं के द्वारा भी भली भाँति सेवन करने योग्य हैं, फिर साधारण मनुष्यों के लिये तो बात ही क्या है? श्रेष्ठ मनुष्य अपने ललाट में जहाँ गङ्गाजी की बालूका तिलक लगाते हैं, वहीं अर्धचन्द्र के नीचे प्रकाशित होने वाला तृतीय नेत्र समझना चाहिये। गङ्गा में किया हुआ स्नान महान् पुण्य-दायक तथा देवताओंके लिये भी दुर्लभ है; वह भगवान् विष्णु का सारूप्य देने वाला होता है-इससे बढ़कर उसकी महिमा के विषय में और क्या कहा जा सकता है। गङ्गा में स्नान करने वाले पापी भी पापों से मुक्त हो श्रेष्ठ विमान पर बैठकर परम धाम वैकुण्ठ को चले जाते हैं। जिन्होंने गङ्गा में स्नान किया है, वे महात्मा पुरुष पिता और माता के कुलकी बहुत-सी पीढ़ियों का उद्धार करके भगवान् विष्णु के धाम में चले जाते हैं। जो गंगा जी का स्मरण करता है, उसने सब तीर्थों में निवास कर लिया है-ऐसा जानना चाहिए। गंगा, तुलसी, भगवान के चरणों में अविचल भक्ति तथा धर्मोपदेशक सद्गुरु श्रद्धा-ये सब मनुष्योंके लिये अत्यन्त दुर्लभ हैं। गङ्गाजी की मृत्तिका तथा तुलसी वृक्ष के मूल की मिट्टी को जो मनुष्य भक्तिपूर्वक अपने मस्तक पर धारण करता है, वह बैकुण्ठ धाम को जाता है। जो मनुष्य मन-ही-मन यह अभिलाषा करता है कि मैं कब गङ्गाजी के समीप जाऊँगा और कब उनका दर्शन करूँगा, वह भी बैकुण्ठ धाम को जाता है । ब्रह्मन् ! दूसरी बातें बहुत कहने से क्या लाभ, साक्षात् भगवान् विष्णु भी सैकड़ों वर्षों में गंगाजी की महिमा का वर्णन नहीं कर सकते । अहो ! माया सारे जगत् को मोह में डाले हुए है, यह कितनी अद्भुत बात है? क्योंकि गङ्गा और उसके नाम के रहते हुए भी लोग नरक में जाते हैं। गङ्गाजी का नाम संसार-दुःख का नाश करने वाला बताया गया है। तुलसी के नाम तथा भगवान्की कथा कहने वाले साधु पुरुष के प्रति की हुई मुक्ति का भी यही फल है। जो एक बार भी ‘गङ्गा’ इस दो अक्षर का उच्चारण कर लेता है, वह सब पापों से मुक्त हो भगवान् विष्णु के लोक में जाता है ।। परम पुण्यमयी इस गङ्गा नदी का शेष, तुला और मकर की संक्रान्तिियों में (अर्थात् वैशाख, कार्तिक और माघ के महीनों में) भक्तिपूर्वक सेवन किया जाना चाहिए। परम पावन गङ्गा स्नान-पान आदि के द्वारा सम्पूर्ण संसार को पवित्र कर रही है, फिर भी इनका सेवन क्यों नहीं करते !