पुण्य तिथि पर विशेष: प्रकृति के चितेरे थे : गंगा प्रसाद बहुगुणा

हर्षमणि बहुगुणा

Uttarakhand

हमारे देश की मिट्टी बहुत पवित्र है और यदि वह तप जाती है तो निश्चित रूप से महापुरुषों को जन्म देती है। उत्तराखंड को ऐसे ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, केवल चार धामों में ख्यात भगवान नर नारायण की पवित्र भूमि बदरी नारायण जहां अलकनंदा का उद्गम होता है, गंङ्गा जैसी पवित्र ‘पतित पावनी’ अकाल कवलितों को तारने वाली मातृतुल्य जल वाहिनी का उद्गम यहीं गंगोत्री में ही तो है। उसी उत्तराखण्ड में हमारा वह गांव जो ‘छोटी काशी’ के नाम से भी जाना जाता है में भी महान विभूतियों का सर्जन करने से अछूता नहीं है।

आज सात वर्ष पूर्व सात मई को शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन सन् 2016 में महाप्रयाण किया था, आज भी द्वितीया तिथि ही है। आज सकारण ऐसे महान व्यक्तित्व की याद आ रही है, आज कल जब गोवंश को सड़कों पर भटकता हुआ देख रहा था, वानरों के आतंक का वर्णन सुन रहा हूं, यदि आज वह होते तो गोवंश की रक्षा हेतु एक गौशाला अवश्य बन गई होती, विकास खण्ड व जनपद स्तर से गौशाला हेतु प्रस्ताव मांगे जा रहे हैं पर? बन्दरों को छोड़ने के लिए ठोस नीति बन गई होती। लगभग बीस वर्गमील से अधिक क्षेत्र में फैले साबली गांव के हर जगह जाने के लिए समुचित मार्ग का निर्माण हो गया होता, हम कितने लोगों से मिन्नतें करते रहें पर परिणाम शून्य। गांव के हर गली मुहल्लों में स्कूल होते, गांव की अनगिनत समस्याएं प्राय: समाप्त हो गई होती। यहां तक कि पर्वतीय परिसर रानी चौंरी में अन्य विषयों/फैक्टियों का समावेश हो गया होता। तो ऐसे स्वयंसेवी की याद अवश्य आनी है, जो यदि स्कूल खोलने की बात हो तो चन्दा एकत्रित करने में सबसे आगे, किसी का प्रचार प्रसार करना हो तो सबसे आगे, शान्ति दूत की तरह। क्या नहीं था उनके पास पर ! ?मन में समाज सेवा का भाव था। लाख प्रयास करो किन्तु अपने कृत्य से पीछे नहीं हटते थे। हम तो किसी ने दबी जुबान से भी यदि विरोध किया तो उस तरफ आगे बढ़ते ही नहीं हैं, कदम पीछे खींच लेते हैं। पर जिनके प्रत्येक कृत्य में राष्ट्रीय स्वाभिमान की छाप थी तभी तो निर्मल ग्राम बनाने का संकल्प वर्ष 1985 से ही प्रारम्भ किया था। पारिवारिक जीवन में स्वदेशी का प्रयोग था, केवल खादी का पहनावा, मोटे अनाज का भोजन, कंडाली का साग, पर आत्म निर्भर बनने का शुभ संकल्प सदैव रहा। सबको ईश्वर की एक सन्तान मान कर काम किया, अतः सुख दु:ख को आपस में बांटकर ही जीवन यापन किया ।

आपके जीवन का आदर्श था
न त्वं कामये राज्यं , न स्वर्गं न पुनर्भवम्* ।
कामये दु:ख तप्तानां ,प्राणिनामार्ति नाशनम्* ।।

इस तरह के व्यक्तित्व के धनी प्रात: स्मरणीय “श्री गंगा प्रसाद बहुगुणा जी” ने इस गांव की पवित्र माटी में स्व० अम्बिका नन्द बहुगुणा जी के घर सन् 1928 को जन्म लेकर समाज सेवी जीवन को समाज के लिए समर्पित किया। धर्म के दस लक्षण आप में दिखाई देते थे – यथा
धृति क्षमा दमोsस्तेयं , शौचमिन्द्रिय निग्रह।
धी विद्या सत्यमक्रोधं दशकं धर्म लक्षण:।।

निस्वार्थ , निर्विकार, निरहंकार , निर्लोभता, पर काम – वह भी केवल समाज सेवा का। चिपको आन्दोलन के अग्रणी नेता , सर्वोदय के नायक , निर्धूम चूल्हा निर्माता , विद्यालय स्थापना हेतु अथक प्रयास , समाज सेवी संस्थाओं की स्थापना कर क्षेत्र के विकास हेतु प्रयास करने में योगदान देते रहते थे, रानी चौंरी में जितनी भी संस्थाएं आई उनको लाने व पोषित करने का श्रेय आपको ही है ।

समाज की उन्नति हो, व्यक्ति की उन्नति हो, बस यही संकल्प था अपने लिए कुछ भी नहीं। पर दुःख कातर, कभी क्रोध भी नहीं देखा, इतने सात्त्विक होकर भी असह्य दु:ख सहन किया, विधि का विधान। अपने सम्मुख अपने तीन अनुजों का प्रयाण , पुत्र व पुत्रवधू का महाप्रयाण न जाने कौन से जन्म का पाप था ? जिसका प्रायश्चित करना पड़ा होगा। कभी कभी लगता है कि श्रीकृष्ण की तरह दु:ख भोगा फिर भी ईश्वर इच्छा मान कर सहन किया व वेदना को मन में छिपा कर आज ही के दिन 07 -05 – 2016 को रात के अंधेरे में ( जिससे पीड़ा उजागर न हो ) अपनी आत्मा परमात्मा में विलीन कर यश शरीर को हमारे मध्य छोड़ कर अन्तिम प्रयाण किया इस उत्कृष्ट मनीषी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अश्रुपूरित नेत्रों से समस्त क्षेत्रीय समाज की ओर से श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं ।

ॐ शान्ति, ॐ शान्ति , ॐ शान्ति ॐ।

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