सुप्रभातम्: :भक्ति को विज्ञान के नजरिए से नहीं, भावनात्मक रूप से महसूस करने से ज्यादा लाभ मिलेगा

आध्यात्मिक रास्ते पर चलकर संसार के अस्तित्व संबंधी परम तत्व (परमात्मा) का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले को ‘परमहंस’ कहा जाता है। भारत के महान संत और आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस की गिनती ऐसे ही महात्माओं में होती है, इसीलिए उनके नाम के साथ परमहंस लगाया जाता है। रामकृष्ण परमहंस का मानना था कि ईश्वर का दर्शन किया जा सकता है। ईश्वर का दर्शन करने के लिए वह आध्यात्मिक चेतना की तरक्की पर जोर देते थे। आध्यात्मिक चेतना ईश्वर तक पहुंचे, इसके लिए वह धर्म को साधन मात्र समझते थे, इसलिए संसार के सभी धर्मों में उनका विश्वास था और वे उन्हें परस्पर अलग-अलग नहीं मानते थे। उनके आचरण और उपदेशों ने एक बड़ी आबादी के मन को छुआ, जिनमें उनके परम शिष्य भारत के एक और विख्यास आध्यात्मिक गुरु, प्रणेता और विचारक स्वामी विवेकानंद भी शामिल थे।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस से जुड़ा प्रसंग है। परमहंस जी के पास देवी काली की एक छोटी सी प्रतिमा थी। वे सभी से कहा करते थे कि इस काली माता की इस मूर्ति में पूरे ब्रह्मांड का वास है। एक दिन ये बात एक विदेशी ने भी सुनी तो उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से कहा कि दुनिया तो बहुत बड़ी है, इतनी बड़ी दुनिया एक छोटी सी मूर्ति में कैसे समा सकती है। दुनिया के सामने ये मूर्ति तो बहुत छोटी है। आप ऐसा क्यों कहते हैं कि इसमें पूरे ब्रह्मांड का वास है?

परमहंस जी ने उनसे एक प्रश्न पूछा कि एक बात बताइए, सूर्य बड़ा है या पृथ्वी?

विदेशी ने कहा कि सूर्य तो पृथ्वी से कई गुना बड़ा है।

परमहंस जी ने पूछा कि अब आप बताइए कि सूर्य बड़ा है तो हमें छोटा क्यों दिखाई देता है?

विदेशी ने कहा कि सूर्य पृथ्वी से करीब 15 करोड़ किलोमीटर दूर है। इस वजह से ये हमें बहुत छोटा दिखता है।

परमहंस जी ने कहा कि आपकी बात सही है। सूर्य हमसे दूर है, इसीलिए इतना छोटा दिखाई देता है, जबकि असलियत में सूर्य तो बहुत बड़ा है। ठीक इसी तरह मेरी काली माई से आप भी बहुत दूर हैं। इस वजह से आपको ये मूर्ति बहुत छोटी दिख रही है। मैं मेरी मां के करीब हूं, इसलिए मुझे ये बड़ी दिखाई देती हैं। आपको इस मूर्ति में पत्थर दिखता है और मुझे इसमें शक्ति दिखती है। भक्ति के मामले में वैज्ञानिक नहीं, भावनात्मक रूप से महसूस करेंगे तो ज्यादा लाभ मिलता है।

परमहंस जी ने आगे कहा कि हम इंसानों के अंदर जो शक्ति है, उससे अलग एक और शक्ति है, जिसे हम कॉस्मिक एनर्जी कहते हैं। जब हम इसे महसूस करते हैं, तब ही आप इसे हासिल कर सकते हैं।

परमहंस जी की सीख

भक्ति एक ऐसा मामला है, जिसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं सोचना नहीं चाहिए। भक्ति को भावनात्मक रूप से महसूस करेंगे तो ज्यादा लाभ मिल सकता है।

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