श्रीदेव सुमन बलिदान दिवस पर विशेष: टिहरी राजशाही के खिलाफ 84 दिन भूखे-प्यासे रहकर लड़ी थी लड़ाई

श्रीदेव सुमन ने टिहरी राजशाही के खिलाफ 84 दिन की ऐतिहासिक भूख हड़ताल करके 25 जुलाई के दिन अपने प्राणों की आहूति दी थी। उनके इस बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उन्हें टिहरी राजशाही से आजादी के लिए 84 दिनों तक तिल-तिल करके मरना पड़ा, लेकिन श्रीदेव सुमन की आवाज को टिहरी रियासत दबा न सका। 

Uttarakhand

हर्षमणि बहुगुणा

25 मई सन् 1916 (कुछ लोग 1915 मानते हैं) को टिहरी गढ़वाल के (चम्बा) जौल गांव में पं० हरि दत्त बडोनी जी व तारा देवी जी के यहां अवतरित श्रीदेव सुमन बहुमुखी प्रतिभा के धनी युवक की शहादत हुई थी। जिन्हें शिक्षा की भूख व देश प्रेम की भावना थी,जो गरीब व कमजोर वर्ग के हितैषी, मानवता के पुजारी, टिहरी राज्य की पीड़ा को महसूस करने वाले अलौकिक व्यक्तित्व के बादशाह श्रीदेव ‘सुमन’ जिन्होंने चौदह वर्ष की अवस्था में सन् 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लिया।

22 मार्च सन् 1936 में दिल्ली में “गढ़ देश सेवा संघ ” की स्थापना की व उसके सक्रिय कार्यकर्ता बने। 17 जून 1937 में अपनी कविता संग्रह सुमन सौरभ प्रकाशित की, मई 1938 में श्रीनगर में गढ़वाल राजनैतिक सम्मेलन आयोजित करवाया, 23 जनवरी सन् 1939 में देहरादून में ‘टिहरी राज्य प्रजा मण्डल’ की स्थापना के बाद सक्रिय कार्यकर्ता, मई 1940 में भाषण पर पहला प्रतिबन्ध, 11 मई 1941 में दो महीने के लिए निर्वासित, 29 अगस्त 1942 को देवप्रयाग में गिरफ्तार, 19 नवम्बर 1943 को आगरा सेन्ट्रल जेल से रिहा, इससे पहले कई बार गिरफ्तार कर हतोत्साहित करने का प्रयास किया गया। कई बार गिरफ्तार व रिहा किया जाता रहा। और अन्तिम जेल यात्रा 30 दिसंबर सन् 1943 को हुई, पाशविक अत्याचार किए गए, पैंतीस सेर की बेड़ियों से पैर जकड़ दिए, आपका मानना था कि हमारी इस टिहरी रियासत में जंगल अपने, जमीन अपनी, गङ्गा अपनी, हिमालय अपना पर जुबान अपनी नहीं, जीवन अपना नहीं और जीने का हक अपना नहीं। फिर स्वराज्य किसे कहते हैं? नागरिक स्वाधीनता क्या है? इसके लिए ही प्रयास करना होगा ! और वही किया, जिसकी सजा भुगतनी पड़ी और आखिरकार तीन मई सन् 1944 से आमरण अनशन 84 दिन तक चला व 25 जुलाई को सायं चार बजे आपका शरीर शान्त हो गया। पर न घर, न ससुराल, न विनय लक्ष्मी सुमन (उनकी धर्मपत्नी) को विधिवत मृत्यु की सूचना दी गई।

मरने के बाद उनके शरीर को भिलंगना में बोरे में बंद कर बहा दिया। 28 वर्ष 2 माह ही इस धरा को कृतार्थ किया। देश प्रेम की बयार बांटने वाले, ऐसे अमर बलिदानी को उनके शहादत दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ कोटि-कोटि नमन व अपने श्रद्धासुमन सादर समर्पित करता हूं। ॐ शान्ति ॐ शान्ति ॐ शान्ति ॐ।

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