सुप्रभातम्: बिना धड़ के सिर ने देखा पूरा महाभारत और युद्घ का निर्णायक बना

  • बर्बरीक महाबली भीम के पौत्र थे एवं घटोत्कच के पुत्र थे

  • वह अपने दादाजी की ही तरह अति बलशाली थे और उनका शरीर भी विशालकाय था

  • बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण को दान किया था अपना शीश

‘महाभारत’ में एक बेहद शक्तिशाली योद्धा था वो था बर्बरीक। हालांकि कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध में बर्बरीक ने हिस्सा नहीं लिया था। बर्बरीक को वरदान प्राप्त था कि वह तीन बाणों से तीनों लोक जीत सकते हैं। जिसकी वजह से युद्ध से पहले कौरव बर्बरीक को लेकर डरे हुए थे। बर्बरीक को उनकी मां ने बचपन से यही सिखाया था कि हमेशा हारने वाले की ओर से युद्ध लड़ना। बर्बरीक का कटा सिर श्रीकृष्ण के वरदान से अंत तक ‘महाभारत’ का युद्ध देखता रहा। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में पूजित होने का वर दिया था। वर्तमान में बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

बात उस समय कि है जब महाभारत का युद्घ आरंभ होने वाला था। भगवान श्री कृष्ण युद्घ में पाण्डवों के साथ थे जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है लेकिन जीत पाण्डवों की होगी।

ऐसे समय में भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया कि युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे। भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वह ब्राह्मण का वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में आ गये।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक का मजाक उड़ाया कि, वह तीन बाण से भला क्या युद्घ लड़ेगा। कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है। वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है। सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा।
इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं अपने बाण से उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्घ का परिणाम बदल सकते हो। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके, भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया। पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया।
इसके बाद बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि एक पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था। भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि युद्घ में विजय पाण्डवों की होगी और माता को दिये वचन के अनुसार बर्बरीक कौरावों की ओर से लड़ेगा जिससे अधर्म की जीत हो जाएगी।
इसलिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की। बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है। बर्बरीक ने ब्राह्मण से कहा कि आप अपना वास्तविक परिचय दीजिए। इस पर श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं।
सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है तथा महाभारत युद्घ को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है। भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी कि, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया। यहां से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा।
युद्घ समाप्त होने के बाद जब पाण्डवों में यह विवाद होने लगा कि किसका योगदान अधिक है तब श्री कृष्ण ने कहा कि इसका निर्णय बर्बरीक करेगा जिसने पूरा युद्घ देखा है। बर्बरीक ने कहा कि इस युद्घ में सबसे बड़ी भूमिका श्री कृष्ण की है। पूरे युद्घ भूमि में मैंने सुदर्शन चक्र को घूमते देखा। श्री कृष्ण ही युद्घ कर रहे थे और श्री कृष्ण ही सेना का संहार कर रहे थे। श्री कृष्ण ने युद्ध की समाप्ति के बाद बर्बरीक के शीश को पुनः प्रणाम करते हुए कहा -”हे वीर बर्बरीक! आप कलयुग में मेरे नाम से सर्वत्र पूजित होकर अपने भक्तों के अभीष्ट कार्यों को पूर्ण करोगे ।” ऐसा कहने पर समस्त नभमंडल उल्लसित हो उठा एवं श्याम बाबा के देवस्वरूप शीश पर पुष्प वर्षा होने लगी।

हर साल लगता है खाटूश्याम मेला

प्रत्येक वर्ष खाटू श्यामजी का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटूश्याम जी, मोर्विनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी इन सभी नामों से खाटू श्याम को उनके भक्त पुकारते हैं। खाटूश्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। बड़े से बड़े घराने के लोग आम आदमी की तरह यहां आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं। कहा जाता है ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

खाटूश्याम जी के चमत्कार

भक्तों की इस मंदिर में इतनी आस्था है कि वह अपने सुखों का श्रेय उन्हीं को देते हैं। भक्त बताते हैं कि बाबा खाटू श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं। मान्यता है कि खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं।

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