हिमशिखर धर्म डेस्क
भारत भूमि महान साधकों की जन्म और शरण स्थली रही है। यहीं शिव की नगरी काशी को एक महान संत और योगी श्यामाचरण लाहिड़ी ने अपनी लीला स्थली बनाया था। उन्हें आध्यात्मिक जगत में लाहिड़ी महाशय के नाम से जाना जाता है। वह आधुनिक वैज्ञानिक युग में प्राचीन भारत की महान साधना पद्धति ‘क्रिया योग’, जो काल के थपेड़ों में विस्मृत हो चुकी थी, को पुन: स्थापित करने वाले पहले मानव बने।
आज 26 सितंबर को योगावतार श्यामा चरण लाहिड़ी का महासमाधि दिवस है जिसने गृहस्थ जीवन में रहते हुए, जीवन यापन के लिए नौकरी करते हुए साधना के पथ पर अग्रसर हो आत्म साक्षात्कार किया। ईश्वर को प्राप्त किया। साथ ही करोड़ों मानवों के लिए ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया। अध्यात्म की दुनिया में उनका नाम लाहिड़ी महाशय के नाम से जाना जाता है। शिव की नगरी काशी में ईश्वर सदृश्य शरीर धारी आत्मा ने आध्यात्म की जो अलख क्रिया योग विज्ञान के माध्यम से जाग्रत की वह आज पूरे विश्व में फैल चुकी है। क्रिया योग विज्ञान अमेरिका से होता हुआ मानव को आत्मा की नश्वरता का बोध कराने की लिए अब उस हर साधक के लिए उपलब्ध है जो इस मार्ग पर चल कर ईश्वर को प्राप्त करने के अपने लक्ष्य को पाना चाहता है।
श्यामा चरण लाहिड़ी का जन्म 30 सितंबर 1828 को पश्चिम बंगाल के नदिया अब के कृष्णनगर के घुरणी ग्राम में हुआ था। पिता थे गौर मोहन लाहिड़ी और मां मुक्तकेशी देवी। बाद में यह परिवार काशी में आ बसा था। यहीं श्यामा चरण लाहिड़ी की शिक्षा गवर्मेंट संस्कृत कालेज में हुई। 1848 में विवाह हो गया काशी मणि देवी के साथ। 1851 में गाजीपुर में सेना के इंजियारिग कोर के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में उनको नौकरी मिल गई। इसके बाद अचानक उनका तबादला रानीखेत हो गया जहां द्रोणागिरी पहाड़ी पर उनके गुरु महावतार बाबाजी जी से उनकी भेंट हुई और उनको क्रिया योग विज्ञान की दीक्षा मिली। कुछ दिनों बाद ही उनका तबादला मिर्जापुर हो गया।
क्रिया योग विज्ञान के माध्यम से लाहिड़ी महाशय ने कई लोगों को दीक्षा दी। कालांतर में काशी के गरुड़ेश्वर मोहल्ले में अपने मकान में रहने लगे और अपनी साधना के साथ क्रिया योग विज्ञान की दीक्षा भी देने लगे। उनके शिष्यों में काशी नरेश, नेपाल नरेश भी शामिल थे। उस काल में काशी में सचल विश्वनाथ नाम से पहचाने जाने वाले 300 से अधिक उम्र वाले संत तैलंग स्वामी ने भी श्यामा चरण लाहिड़ी के लिए कहा था कि जिस ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हम संन्यासियों को अपना कोपीन याने वस्त्र भी त्याग देना पड़ता है उसे इसमें गृहस्थ में रहते हुए पा लिया है।
लाहिड़ी महाशय के शिष्य युक्तेश्वर गिरी थे। जिन्होंने अपने पुत्र समान शिष्य परम हंस योगानंद को क्रिया योग विज्ञान की दीक्षा दी थी। युक्तेश्वर गिरी जी ने ही योगानंद जी को अमेरिका जाकर क्रिया योग विज्ञान और भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को प्रसारित करने के लिए तैयार किया था। आज विश्व की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली और 50 से अधिक भाषाओं में अनूदित परमहंस योगानंद जी की आत्मकथा ऑटो बायोग्राफी ऑफ ए योगी में भी लाहिड़ी महाशय के संबंध में काफी जानकारियां हैं।
सवाल – श्यामाचरण लाहिड़ी का जन्म कहां हुआ था?
जवाब – लाहिड़ी महाशय का जन्म 30 सितंबर, 1828 को भारत के बंगाल में घुरणी गांव में हुआ था।
सवाल – लाहिड़ी महाशय अपने गुरु को कैसे मिले?
जवाब- तैंतीस साल की उम्र में, एक दिन रानीखेत के पास हिमालय की तलहटी में घूमते हुए वह अपने गुरु, महावतार बाबाजी से मिले। जिन्हें वह बाबाजी, महामुनि बाबाजी, महाराज, महायोगी, त्र्यंबक बाबा और शिव बाबा भी कहकर बुलाया करते थे