रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है बल्कि यह मनुष्य को जीवन की सीख देता है। आज मंगलवार के दिन रामायण के ऐसे ही अद्भुत चरित्र के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका नाम लक्ष्मण है। भगवान लक्ष्मण रामायण के एक आदर्श पात्र हैं। इनको शेषनाग का अवतार माना जाता है। अगले जन्म में लक्ष्मण ही श्री राम के अगले जन्म श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम थे।
हिमशिखर धर्म डेस्क
लंका के युद्ध के कुछ वर्षों बाद एक बार अगस्त्य मुनि अयोध्या आए। श्रीराम ने उनकी अभ्यर्थना की और आसन दिया। राजसभा में श्रीराम अपने भ्राता भरत, शत्रुघ्न और देवी सीता के साथ उपस्थित थे। बात करते-करते लंका युद्ध का प्रसंग आया। भरत ने बताया कि उनके भ्राता श्रीराम ने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा।
अगस्त्य मुनि बोले – “हे भरत! रावण और कुंभकर्ण निःसंदेह प्रचंड वीर थे, किन्तु इन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाद ही था। उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और उन्हें पराजित कर लंका ले आया था। तब स्वयं ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब जाकर इंद्र मुक्त हुए थे। लक्ष्मण ने उसका वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए। और ये भी सत्य है कि इस पूरे संसार में मेघनाद को लक्ष्मण के अतिरिक्त कोई और मार भी नहीं सकता था, यहाँ तक कि स्वयं श्रीराम भी नहीं।” भरत को बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे।
उन्होंने श्रीराम से पूछ कि क्या ये बात सत्य है और जब राम ने इसकी पुष्टि की तो भी भरत के मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था? उन्होंने पूछा “हे महर्षि! अगर आप और भैया ऐसा कह रहे हैं तो ये बात अवश्य ही सत्य होगी और मुझे इस बात की प्रसन्नता भी है कि मेरा भाई विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है किन्तु फिर भी मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर ऐसा क्या रहस्य है कि मेघनाद को लक्षमण के अतिरिक्त कोई और नहीं मार सकता था?”
अगस्त्य मुनि ने कहा – “हे भरत! मेघनाद ही विश्व का एकलौता ऐसा योद्धा था जिसके पास विश्व के समस्त दिव्यास्त्र थे। उसके पास तीनों महास्त्र – ब्रम्हा का ब्रम्हास्त्र, नारायण का नारायणास्त्र एवं महादेव का पाशुपतास्त्र भी था और उसे ये वरदान था कि उसके रथ पर रहते हुए कोई उसे परास्त नहीं कर सकता था इसी कारण वो अजेय था। उस समय संसार में केवल वही एक योद्धा था जिसने अतिमहारथी योद्धा का स्तर प्राप्त किया था।
ये सत्य है कि उसके सामान योद्धा वास्तव में कोई और नहीं था। उसने स्वयं भगवान रूद्र से युद्ध की शिक्षा ली और समस्त दिव्यास्त्र प्राप्त किये। भगवान रूद्र ने स्वयं ही उसे रावण से भी महान योद्धा बताया था और उसकी शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात कहा था कि वो एक सम्पूर्ण योद्धा बन चुका है और इस संसार में तो उसे कोई और परास्त नहीं कर सकता। उन्होंने यहाँ तक कहा कि उन्हें संदेह है कि स्वयं वीरभद्र भी मेघनाद को परास्त कर सके। इसके अतिरिक्त उसकी परम पवित्र पत्नी सुलोचना का सतीत्व भी उसकी रक्षा करता था।”
इसपर भरत ने कहा “हे महर्षि! आपके मुख से मेघनाद की शक्ति का ऐसा वर्णन सुनकर विश्वास हो गया कि वो वास्तव में महान योद्धा था किन्तु बात अगर केवल दिव्यास्त्र की है तो श्रीराम के पास भी सारे दिव्यास्त्र थे। उन्होंने भी त्रिदेवों के महास्त्र प्राप्त किये। साथ ही साथ महाबली हनुमान को भी ये वरदान था कि उनपर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं होगा और उनके बल और पराक्रम का कहना ही क्या?
लक्ष्मण निःसंदेह महा-प्रचंड योद्धा थे और उनके पास भी विश्व के सारे दिव्यास्त्र थे किन्तु उसे पाशुपतास्त्र का ज्ञान नहीं था जिसका ज्ञान मेघनाद को था। फिर भी लक्षमण किस प्रकार मेघनाद का वध करने में सफल हुए। और आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि केवल लक्ष्मण ही उसका वध कर सकते थे?”
इसपर अगस्त्य मुनि ने कहा “आपका कथन सत्य है। जितने दिव्यास्त्र मेघनाद के पास थे उतने लक्ष्मण के पास नहीं थे किन्तु इंद्रजीत को ये वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जिसने:
चौदह वर्षों तक ब्रम्हचर्य का पालन किया हो।
चौदह वर्षों तक जो सोया ना हो।
चौदह वर्षों तक जिसने भोजन ना किया हो।
चौदह वर्षों तक किसी स्त्री का मुख ना देखा हो।
पूरे विश्व में केवल लक्ष्मण ही ऐसे थे जिन्होंने मेघनाद के वरदान की इन शर्तों को पूरा किया था इसी कारण केवल वही मेघनाद का वध कर सकते थे।”
तब श्रीराम बोले “हे गुरुदेव! मेघनाद और लक्ष्मण दोनों के बल और पराक्रम से मैं अवगत हूँ। अगर शक्ति की बात की जाये तो निःसंदेह इन दोनों की कोई तुलना नहीं थी। लक्ष्मण के ब्रम्हचारी होने की बात मैं समझ सकता हूँ किन्तु मैं वनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल उसे देता रहा। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था और बगल की कुटी में लक्ष्मण थे।
मैं, सीता और लक्ष्मण अधिकतर समय साथ ही रहते थे फिर भी उसने सीता का मुख भी न देखा हो, भोजन ना किया हो और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है?” अगस्त्य मुनि सारी बात समझ कर मुस्कुराए। वे समझ गए कि श्रीराम क्या चाहते हैं। दरअसल सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे लेकिन वे चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो तभी ऐसा पूछ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि “क्यों ना स्वयं लक्ष्मण से इस विषय में पूछा जाये।” लक्ष्मण को बुलाया गया। सभा में आने पर उन्होंने सबको प्रणाम किया फिर श्रीराम ने कहा “प्रिय भाई! तुमसे जो भी पूछा जाये उसका सत्य उत्तर दो। हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा? फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे? और १४ वर्ष तक कैसे सोए नहीं?
लक्ष्मण ने कहा “भैया! जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखा कर पहचानने को कहा तो आपको स्मरण होगा कि मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था, क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं था। मैं तो भाभी को केवल उनके चरणों से पहचानता हूँ। उनके अतिरिक्त मैंने वनवास के समय शूर्पणखा एवं बालि की भार्या देवी तारा को ही देखा था किन्तु एक तो वे अनायास ही मेरे समक्ष आ गयी थी और दूसरे वे दोनों पूर्ण मनुष्य नहीं थी। शूर्पणखा राक्षसी थी और तारा वानर जाति की।”
“रही बात निद्रा की तो जब आप और माता एक कुटिया में सोते थे, मैं रात भर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था। निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने का प्रयास किया तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था। तब निद्रा देवी ने हार कर स्वीकार करते हुए मुझे वचन दिया कि वह चौदह वर्ष तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी किन्तु जब आपका अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा तब वो मुझे घेरेगी।
आपको याद होगा, राज्याभिषेक के समय जब मैं आपके पीछे छत्र लेकर खड़ा था तब निद्रा के कारण मेरे हाथ से छत्र गिर गया था। निद्रा देवी को दिया वचन के कारण ही मैं आपका राजतिलक भी नहीं देख सका था क्यूंकि मैं सो गया था।”
अब निराहारी रहने की बात भी सुनिए। मैं जो फल-फूल लाता था, माता उसके तीन भाग करती थीं। आप सदैव एक भाग मुझे देकर कहते थे लक्ष्मण फल रख लो। आपने कभी फल खाने को नहीं कहा फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे? मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया। सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे। गुरु विश्वामित्र से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था – बिना आहार किए जीने की विद्या। उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका।”
श्रीराम ने आश्चर्य में पड़ते हुए कहा तो क्या सारे वनवास काल के फल वही हैं?” तब लक्ष्मण ने कहा “नहीं भैया, उनमे सात दिन के फल कम होंगे।” तब श्रीराम ने कहा “इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?” इसपर लक्ष्मण ने कहा “भैया सात दिन के फल कम इस कारण है क्योंकि उन सात दिनों में फल आए ही नहीं।”
जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहें।
जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता?
जिस दिन समुद्र की साधना कर आप निराहारी रह उससे राह मांग रहे थे।
जिस दिन हम इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे।
जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता का शीश काटा था और हम शोक में रहें।
जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी और मैं पूरा दिन मरणासन्न रहा।
जिस दिन आपने रावण-वध किया उस दिन हमें भोजन की सुध कहां थी।
लक्ष्मण के जीवन का ऐसा त्याग और सत्चरित्र देख कर वहाँ उपस्थित सभी लोग साधु-साधु कह उठे। भरत ने भरे कंठ से कहा “तुम धन्य हो लक्ष्मण। वास्तव में ऐसा कठिन तप केवल तुम्ही कर सकते थे और केवल तुम्ही इंद्रजीत का वध करने के योग्य थे।
कदाचित इसी कारण मुझे या शत्रुघ्न को भैया के साथ वन जाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ क्यूंकि ऐसा संयम केवल तुम्हारे लिए ही संभव है।” श्रीराम ने गदगद होकर लक्ष्मण को अपने गले से लगा लिया और कहा “प्रिय लक्ष्मण। वास्तव में तुम जैसा भाई मिलना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है।
तुम्हारा ये आत्म-नियंत्रण किसी तपस्या से कम नहीं। तुम्हारे इसी तपस्या के कारण हम रावण को पराजित करने में सफल हो पाए। वास्तव में तुम्ही इस विश्व के सर्वश्रेष्ठ योद्धा हो। जब तक ये विश्व रहेगा, तुम्हारी सत्चरित्रता सबका मार्गदर्शन करती रहेगी।