दूर कीजिए कन्फ्यूजन : गोवर्धन पूजा कल, जानिए इस दिन भगवान कृष्ण को क्यों लगाए जाते हैं 56 प्रकार के भोग

अमावस्या तिथि दो दिन की होने की वजह से इस बार गोवर्धन पूजा को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। हर साल दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए आखिर कब है गोवर्धन पूजा और शुभ मुहूर्त व पूजा विधि।


हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

इस साल 14 नवंबर को गोवर्धन पूजा है। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। पंचांग के अनुसार इस  साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 13 नवंबर, दिन सोमवार को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 14 नवंबर दिन मंगलवार को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट तक है। हिंदू धर्म में उदया तिथि को विशेष महत्व दिया जाता है, इसलिए गोवर्धन पूजा का पर्व 14 नवंबर को मनाया जा रहा है। ब्रज से शुरू हुई गोवर्धन पूजा पूरे देश में उत्सव की तरह मनाई जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन भक्त भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें संकटों से उबारें। इस दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाया जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं इस दिन श्री कृष्ण को 56 भोग क्यों लगाए जाते हैं…

भोग का महत्व
कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र देव के प्रकोप से बचाया था, इसलिए सभी ब्रजवासियों द्वारा श्री कृष्ण के लिए 56 प्रकार के भोग तैयार किए गए थे। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज भी गोवर्धन पूजा के दिन भगवान को 56 भोग लगाए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस दिन श्री कृष्ण को 56 भोग लगाते हैं, उनके जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है।

गोवर्धन पूजन विधि
गोवर्धन पूजा करने के लिए घर के आंगन में गाय के गोबर से भगवान कृष्ण की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके साथ ही गाय, बछड़े व ब्रज आदि की भी प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद उसको फूलों से सजाया जाता है। फिर शुभ मुहूर्त में गोवर्धन महाराज को रोली, अक्षत, चंदन लगाएं। फिर दूध, पान, खील बताशे, अन्नकूट अर्पित किए जाते हैं और विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इसके बाद पूरे परिवार के साथ पानी में दूध मिलाकर गोवर्धन महाराज की परिक्रमा की जाती है और फिर आरती की जाती है। इसके बाद गोवर्धन महाराज के जयाकरे लगाए जाते हैं और घर के बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है।

गोवर्धन पूजा की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि को देवराज इंद्र की पूजा हुआ करती थी लेकिन भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा कि पूजा का कोई लाभ नहीं मिल रहा है इसलिए देवराज इंद्र की पूजा ना करें। भगवान कृष्ण की बात मानकर ब्रजवासियों ने पूजा नहीं की। जब यह जानकारी इंद्र को मिली तो इंद्रदेव ने अपने घमंड के चलते पूरे ब्रज में तूफान और बारिश का कहर मचाया। तब भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की था और इंद्र के घमंड को तोड़ा था। साथ ही भगवान को सभी तरह की मौसमी सब्जियों से तैयार अन्नकूट को भोग लगाया था। तब से हर साल इस तिथि पर गोवर्धन पूजा की जाती है और अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

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