गीता श्लोक एवं भावार्थ : गीता प्रथम अध्याय का ग्यारहवां श्लोक

गीता दुःखों को हरने वाली कामधेनु जैसी है। संत विनोबा भावे कहते थे- हर कष्ट, हर दुःख के लिए गीता की शरण जाओ। महात्मा गाँधी कहते थे- जब मुझे समस्याएं सताती हैं, तो मैं गीता माता की गोद में चला जाता हूँ। जहाँ मुझे सारी समस्याओं का समाधान मिल जाते हैं।  गीता हिन्दू ही नहीं, अन्यान्य संप्रदाय के लिए भी माता के समान है, जो अपनी शरण में आए हुए हर पुत्र की समस्याओं का समाधान करती है। माता सर्वापरि होती है-गुरु से भी ऊपर। वह न कोई शास्त्र है, न ग्रन्थ है। वह तो सबको छाया देने वाली, ज्ञान का प्रकाश देने वाली माता है।

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अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥11॥

अयनेषु–निश्चित स्थान पर; -भी; सर्वेषु सर्वत्र; यथा-भागम्-अपने अपने निश्चित स्थान पर; अवस्थित:-स्थित; भीष्मम्-भीष्म पितामह की; एव-निश्चय ही; अभिरक्षन्तु–सुरक्षा करना; भवंत:-आप; सर्वे-सब के सब; एव हि-जब भी।

अनुवाद

विभिन्न मोर्चों पर अपने-अपने स्थान पर स्थित रहते हुए आप सब लोग भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें।

टीका – (स्वामी रामसुख दास जी)

जिनजिन मोर्चों पर आपकी नियुक्ति कर दी गयी है आप सभी योद्धा लोग उन्हीं मोर्चों पर दृढ़तासे स्थित रहते हुए सब तरफ से सब प्रकारसे भीष्मजी की रक्षा करें। भीष्मजी की सब ओरसे रक्षा करें यह कहकर दुर्योधन भीष्मजी को भीतर से अपने पक्षमें लाना चाहता है। ऐसा कहनेका दूसरा भाव यह है कि जब भीष्मजी युद्ध करें तब किसी भी व्यूहद्वारसे शिखण्डी उनके सामने न आ जाय इसका आपलोग खयाल रखें। अगर शिखण्डी उनके सामने आ जायगा तो भीष्मजी उस पर शस्त्रास्त्र नहीं चलायेंगे। कारण कि शिखण्डी पहले जन्म में स्त्री था। इसलिये भीष्मजी इसको स्त्री ही समझते हैं और उन्होंने शिखण्डी से युद्ध न करने की प्रतिज्ञा कर रखी है। अतः जब शिखण्डी से भीष्मजीकी रक्षा हो जायगी तो फिर वे सबको मार देंगे जिससे निश्चित ही हमारी विजय होगी। इस बातको लेकर दुर्योधन सभी महारथियों से भीष्मजी की रक्षा करनेके लिये कह रहा है।

टीका – (स्वामी चिन्मयानंद जी)

इतने समय निरन्तर अकेले ही बोलने और उभय पक्ष की सार्मथ्य को तौलने के पश्चात युद्धतत्पर दुर्योधन में स्थित राजा अपने मन की सघन निराशा के मेघखण्डों को भेदकर सेना को आदेश देना प्रारम्भ करता है। उसका आदेश है कि सभी योद्धा एवं नायक स्वस्थान पर रहकर अनुशासनपूर्वक युद्ध करें और साथ ही भीष्म पितामह को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करें। उसे इस बात की आशंका है कि सुदूर राज्यों से आये हुये राजा एवं जनजातियों के नायक यदि इधर उधर बिखर गये तो विजय मिलना कठिन है। संगठित रूप से सब मोर्चों पर एक ही समय आक्रमण करना किसी भी सेना की सफलता का मेरुदण्ड है। इसलिये एक सही प्रकार की रणनीति अपनाते हुये वह सबको आदेश देता है कि विभिन्न स्थानों पर रहते हुये भी सब भीष्माचार्य का रक्षण करें।

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