पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का विवाह आज ही के दिन जनकपुरी में सम्पन्न हुआ। सीता स्वयंवर में भगवान श्रीराम के द्वारा धनुष भंग (तोड़ने) के बाद विदेह राज जनक के द्वारा अवध में दूत भेजने पर महाराज दशरथ बारात लेकर जनक पुरी पहुंचते हैं। इसके बाद विवाह की रश्म आज की तिथि को सम्पन्न करवाई जाती है।
आज के दिन को श्रीपञ्चमी भी कहते हैं, यूं तो हर पञ्चमी नाग पञ्चमी के रूप में भी मनाई जाती है। आज के दिन श्री लक्ष्मी जी को कमलासन पर विराजमान कर कमल पुष्प धारिणी लक्ष्मी की स्वर्ण, रजत या ताम्र पत्र की मूर्ति को सुवर्णादि कलश पर स्थापित कर गणेश भगवान, षोडश मातृकाएं एवं अन्य पंचाग संज्ञक देवताओं की यथायोग्य उपचारों से पूजन कर तदनन्तर श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त का पाठ, ब्राह्मण भोजन, दान आदि करने से सौभाग्य एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
यही कारण रहा कि दक्षिणायण में भी विवाह आदि शुभ कर्म इस महीने पहले केवल एक ही दिन इस तिथि विशेष को किए जाते थे। लेकिन धीरे-धीरे पूरे महीने शुभ दिन देख कर विवाहोत्सव किए जा रहे हैं।आज भी अवध तथा जनकपुरी में विवाह पञ्चमी का महोत्सव बहुत बड़े समारोह के रूप में प्रत्येक मन्दिर में मनाया जाता है।
भक्त गण भगवान श्रीराम की बारात निकालते हैं तथा भगवान की मूर्तियों को रात में विधि-विधान से संस्कार सप्तपदी भंवरा (फेरे) कन्या दान आदि करवाते हैं। तथा परम्परानुसार विवाह की सम्पूर्ण विधियां सम्पन्न करवाते हैं। विवाह लीला कई स्थानों पर होती है। देश के अन्य भागों में भी राम भक्त यह उत्सव अपने अपने तरीके से मनाते हैं। श्रद्धालु तो आज भी अपने बालक या बालिका का विवाह इस दिन तय कर स्वयं दशरथ या जनक की भूमिका का निर्वहन करते हैं। भरत की तरह हम सबकी मन इच्छा हो तो उद्धार निश्चित है।
“जो भक्त मेरे जिस स्वरूप की अर्चना करना चाहता है, मैं उसकी श्रद्धा को उसी रूप के प्रति स्थिर कर देता हूं।
आज के इस शुभ दिवस पर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि जिस प्रकार सियाराम के विवाह महोत्सव को देख कर सभी देव, मानव गण आनन्द विभोर हुए वही परमानन्द हमें भी प्राप्त हो ।
विवाह स्वयं में एक प्रकार का व्रत ग्रहण है, जिसमें वधू पातिव्रत का और वर एक पत्नी व्रत का संकल्प करते हैं । दोनों एक दूसरे के पूरक बनते हैं। श्री राम सीता ने इस व्रत का पूर्णतः पालन किया। श्रीराम विवाह में जैसा उत्सव हुआ उसका वर्णन न सरस्वती, न शेषनाग कोई नहीं कर सकता है।
हमारी भारतीय संस्कृति में विविध पक्ष हैं उनमें अनुकरणीय है राम विवाह का यह शुभ दिन, लोक हितकारी है अतः अपने जीवन को अनुकरणीय बनाने में समय को चूकना नहीं है।
विवाह पंचमी की कथा
भगवान राम विष्णु के अवतार हैं। उनका जन्म अयोध्या नगरी के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ था। वहीं सीता राजा जनक की पुत्री थीं। कहा जाता है कि सीता जी का जन्म धरती से हुआ था। राजा जनक हल चला रहे थे उस समय उन्हें एक नन्ही सी बच्ची मिली थी, जिसका नाम उन्होंने सीता रखा था। यही वजह है कि सीता जी को जनक नंदिनी के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि एक बार माता सीता ने शिव जी का धनुष उठा लिया था, जिसे परशुराम के अलावा और कोई नहीं उठा सकता था। ऐसे में राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो भी शिव जी का धनुष उठा पाएगा सीता का विवाह उसी से होगा।
वहां पर आए तमाम वीरों ने अपनी ताकत लगाई पर धनुष को जगह से हिला भी नहीं पाए, जिसके बाद गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से भगवान राम ने ऐसा कर दिखाया। जैसे ही उन्होंने शिव का धनुष उठाया उसके दो टुकड़े हो गए और वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया। इसके बाद विधि के अनुसार मां सीता का विवाह मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के साथ से हुआ। जिस दिन माता सीता और प्रभु राम का विवाह हुआ था, उस दिन मार्गशीर्ष माह की पंचमी तिथि थी, इसलिए हर साल इस दिन विवाह पंचमी मनाई जाती है।