गंगा के किनारे बसे उत्तर प्रदेश का शहर काशी (वाराणसी) सबसे पुराने शहरों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से बनारस में है। काशी में बसे भगवान शिव और माता पार्वती के महत्व के बारे में तो हर कोई जानता है लेकिन काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव का भी महत्व उतना ही खास और अहम है। काशी में एक बहुत ही पुरानी कहावत है कि ”पहले ‘काशी कोतवाल’ की पूजा फिर काम दूजा…”। जी हां, धार्मिक मान्यता है कि इस शहर में कोई भी शुभ काम करने से पहले ‘काशी कोतवाल’ यानी बाबा काल भैरव की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है। भगवान शिव की पूजा करने से भी पहले इनको यहां पूजा जाता है। आइए जानें क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी और काल भैरव बाबा को काशी का कोतवाल क्यों कहते हैं?
भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए। भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है – असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।
सनातन धर्म में भगवान भैरव का एक विशेष ही स्थान है। भगवान भैरव शिव के ही स्वरुप है इस लिए उनमे शिव प्रेरित सभी गुण का समावेश है ही। तमस भाव की प्रधानता से प्रायः ही लोग भगवान के इस रूप से भय खा कर उनकी उपेक्षा कर बैठते है, जब की ऐसा बिलकुल नहीं है। भगवान भैरव का जो विकराल और भयप्रद स्वरुप ही वह तो मात्र उनके तमस भाव की प्रधानता के कारण है, और वह भी साधको के लिए नहीं वरन साधक के आतंरिक तथा बाह्य शत्रुओ के लिए है। भगवान भैरव के भी कई स्वरुप है, वैसे उनके ५२ स्वरुप प्रचलित है ही। लेकिन आठ मुख्य रूप बताए गए हैं।
कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी १ . महाभैरव, २ . संहार भैरव, ३. असितांग भैरव, ४ . रुद्र भैरव, ५ . कालभैरव, ६ . क्रोध भैरव, ७ . ताम्रचूड़ भैरव तथा ८ . चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है –
भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥
बाबा विश्वनाथ हैं काशी के राजा और कोतवाल हैं काल भैरव
भगवान शंकर की नगरी कही जाने वाली काशी को लेकर धार्मिक मान्यता है कि इस शहर के राजा बाबा विश्वनाथ हैं। वहीं काशी का कोतवाल काल भैरव को कहा जाता है। मान्यता है कि इस शहर में भैरव बाबा की मर्जी के बिना कुछ भी नहीं होता है और पूरी नगरी की देखरेख उन्ही के हाथों में है। काशी के रहने वाले लोगों का ये भी कहना है कि बाबा विश्वनाथ के मंदिर के पास एक कोतवाली भी है, जिसकी रक्षा खुद काल भैरव करते हैं। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है।
त्रिदेवों ने मिलकर दी है काल भैरव को काशी की जिम्मेदारी
बाबा कालभैरव काशी के रक्षक है। काशी ने राजा बाबा विश्वनाथ ने यह अधिकार बाबा भैरव को दिया है। इन पर काशी की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। यही वजह है कि काशी में भैरव के आठ रूप है काशी के अलग – हिस्से में विराजमान है। धर्म की इस नगरी में भैरव के दण्डपाणी भैरव, क्षेत्रपाल भैरव, लाट भैरव जैसे कुल आठ रूप है। जैसा प्रशासनिक सिस्टम में होता है। सभी स्थलों की अर्जी यहां आती है और बाबा कालभैरव बाबा विश्वनाथ तक पहुँचाते है। यहां न्याय तक बाबा विश्वनाथ नही बल्कि काल भैरव करते है।
काशी में कोई भी अधिकारी या बड़ा शख्श आता है पहले बाबा का दर्शन करता है। लोगों का मानना है कि यह काशी जो चलती है, बाबा के रहमो करम पर चलती है। मान्यताओं के कारण जब कोई भी अधिकारी या बड़ा शख्श आता है उसके पीछे वजह है कि यहां शहर के कोतवाल बाबा कालभैरव है जब वह सीधे बाबा विश्वनाथ के पास जायेगा तो उसे क्या न्याय मिलेगा, जबकि अधिकार बाबा के पास है। बाबा काल भैरव को यह अधिकार ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनो ने मिल कर दिया है आप काशी में रहकर भक्तो का कल्याण करिए और यही वजह है कि पहले काशी में आप का दर्शन होता है फिर अन्य मंदिरों में ।
कैसे बने भैरव बाबा काशी के कोतवाल?
काल भैरव के काशी के कोतवाल यानी काशी में स्थापित होने के पीछे एक पौराणिक कथा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच चर्चा छिड़ गई कि उन दोनों में से आखिर कौन बड़ा और शक्तिशाली है। इस विवाद के बीच भगवान शिव की चर्चा हुई। इसी चर्चा के दौरान ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने भगवान शिव की आलोचना कर दी। ये सुनकर बाबा भोलेनाथ बहुत अधिक क्रोधित हो गए। कहा जाता है कि भगवान शिव के इसी गुस्से से काल भैरव का जन्म हुआ। यही वजह है कि काल भैरव को शिव का अंश भी माना जाता है। काल भैरव ने शिव के आलोचन करने वाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को अपने नाखुनों से काट दिया था।
ब्रह्म हत्या के दोष ने भैरव बाबा को पहुंचाया काशी
काल भैरव ने गुस्से में ब्रह्माजी के पांचवें मुख को काट तो दिया लेकिन वो मुख काल भैरव के हाथ से अलग ही नहीं हो रहा था। इस वक्त वहां शिव जी प्रक्रट हुए। शिव ने काल भैरव से कहा, तुमने ये क्या किया… तुम्हे तो ब्रह्म हत्या का दोष लग गया है। इस दोष को मिटाने का एक ही तरीका है कि तुम एक आम व्यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करो। जिस स्थान पर ये ब्रह्मा का ये पांचवां मुख तुम्हारे हाथ से छूट जाएगा, वहीं पर तुम इस पाप से मुक्ती पाओगे।
जब काशी में पहुंचे भैरव तो छूटा ब्रह्म हत्या का दोष
पौराणिक कथा के मुताबिक तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए जब भैरव बाबा काशी पहुंचे तो उनका पीछा कर रही कन्या छूट गई। शिवजी की आज्ञा के मुताबिक काशी में इस कन्या का प्रवेश करना मना था। काशी में जैसे ही भैरव बाबा गंगा के तट पर पहुंचे तो यहां भैरव बाबा के हाथ से ब्रह्माजी का शीश अलग हो गया। इसी के साथ भैरव बाबा को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। काल भैरव को पाप से मुक्ति मिलते ही भगवान शिव वहां प्रक्रट हुए और उन्होंने काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया। उसके बाद से कहा जाता है कि काल भैरव इस नगरी में बस गए।
‘तुम कहलाओगे काशी के कोतवाल’
पौराणिक कथा के मुताबिक काशी में काल भैरव को तप करने का आदेश देते हुए बाबा विश्ववनाश ने काल भैरव को आशीर्वाद भी दिया था। भगवान शिव ने काल भैरव को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर के कोतवाल कहे जाओगे और युगो-युगो तक तुम्हारी इसी रूप में पूजा की जाएगी। कहा जाता है कि शिव का आशीर्वाद पाकर काल भैरव काशी में ही बस गए और वो जिस स्थान पर रहते थे वहीं काल भैरव का मंदिर स्थापित है।