भाई कमलानंद
पूर्व सचिव भारत सरकार
व्यक्ति का आचरण एक दर्पण के समान होता है। उसमें हर व्यक्ति अपना प्रतिविम्ब दिखाता है। यदि नेता की सोच परिपक्व नहीं है, विवेक दृष्टि धूमिल है तो वह अपने पीछे चलने वाले लोगों को गुमराह ही करेगा। प्रजातंत्र में किसी तरह यदि वह पद पा भी जाता है तो आचरण की कसौटी पर कुछ ही दिन में उसकी पात्रता अपात्रता सिद्ध हो जाती है। यह बात सही है कि पद पर आते ही कैसे सत्ता का नशा चढ़ जाता है, इसका एक उदाहरण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आया है।
मैं इन दिनों अन्ना हजारे जी के जीवन पर एक किताब लिख रहा हूं। क्या पाया और क्या खोया। इसकी कुछ विचारधारा मैंने विश्वगुरु की रणनीति में भी लिखी है। हम चाहते हैं कि हमारा नेतृत्व अच्छा हो। राजनेता बनने का हकदार वही है जिसके व्यक्तित्व में विवेक, सहनशीलता, निष्ठा, समदर्शिता और सम्यक वाणी हो। रामराज्य की स्थापना ऐसे नेता ही कर सकते हैं जो निष्कलंक हो।
तुलसीदास जी ने कहा, सब ते कठिन राजपद भाई। केहिन राजमद दीन्ह कलंकू। कई सब शासक होने के मद से बच नहीं पाए और कलंकित हुए। इन दिनों पूरे देश में चुनाव की सरगर्मियां चल रही हैं। तो हमारा कर्तव्य बनता है कि अच्छे लोग चुनाव जीतकर आगे आएं और समाज के लिए कुछ नया करें। आइए! इस दिशा में कुछ करते हैं।शुभकामनाएं।