सुप्रभातम्: आज यहां लगेगा सूर्य ग्रहण, दिन में कुछ मिनटों के लिए छा जाएगा अंधेरा, जानें भारत में नजर आएगा कि नहीं

आज 8 अप्रैल को उत्तरी अमेरिका के देशों में सूर्य ग्रहण को बेहद ही साफ देखा जा सकेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये पिछले 50 साल का सबसे लंबा पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा। इस दौरान दिन में ही रात की तरह अंधेरा छा जाएगा। हालांकि, राहत भरी बात यह है कि यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा।


हिमशिखर धर्म डेस्क

रात में सितारों भरा आकाश इंसानों को हमेशा से अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। लेकिन दिन के दौरान भी एक ऐसी खगोलीय घटना होती है, जिसमें हमेशा से इंसानों को दिलचस्पी रही है। यह घटना सूर्य ग्रहण है, जो बेहद दुर्लभ होती है। दुनिया की अलग-अलग परंपराओं में इसका महत्व है। सूर्य ग्रहण एक बार फिर होने वाला है। आज 8 अप्रैल को सूर्य ग्रहण लगेगा। लेकिन यह भारत में दिखाई नहीं देगा। सूर्य ग्रहण मैक्सिको, अमेरिका और कनाडा में दिखाई देगा।

Uttarakhand

ऐसे में आज का दिन खगोलविदों के लिए बेहद ही खास होने जा रहा है, क्योंकि इस दिन पूर्ण सूर्य ग्रहण लगेगा। यह ऐसी खगोलीय घटना है, जिसका वैज्ञानिक वर्षों इंतजार करते हैं। वैसे तो वैज्ञानिकों के लिए हर ग्रहण खास होता है, लेकिन आज का ग्रहण विशेष है। सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं। जिसके चलते सूर्य की किरणें पृथ्वी तक पहुंचना बंद कर देती हैं और दिन में अंधेरा छा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 2024 का पूर्ण सूर्य ग्रहण 50 सालों में सबसे लंबा ग्रहण होगा, यानी इस बार पृथ्वी पर दिन के दौरान लंबे समय तक रात जैसा नजारा हो जाएगा।

चैत्र नवरात्रि की शुरूआत से ठीक एक दिन पहले आज सोमवती अमावस्या पर सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। यह साल का पहला सूर्य ग्रहण है, इसलिए इस पर हर किसी की नजर टिकी हुई है। सोमवार को अमावस्या पड़ने के कारण सोमवती अमावस्या पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में गंगा स्नान को जाते हैं। ऐसे में लोगों के मन में जिज्ञासा है कि आज स्नान दान किया जाए या नहीं। भारत में यह सूर्य ग्रहण नहीं दिखाई देगा। ऐसे में इसके सूतक काल को भारत में नहीं माना जाएगा।

सूर्य ग्रहण को जानने से पहले अंतरिक्ष को थोड़ा समझ लीजिए। सौरमंडल में सूर्य स्थिर है। पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। वहीं चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है और साथ ही साथ सूर्य का भी चक्कर लगाता है। इस दौरान कई बार एक ऐसा मौका आता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाए। इससे सूर्य से धरती पर आने वाला प्रकाश कुछ समय के लिए बाधित हो जाता है। इसे ही सूर्य ग्रहण कहते हैं। अंतरिक्ष से अगर इस घटना को देखा जाए तो धरती पर एक विशाल परछाई दिखेगी, जो चंद्रमा की होगी।

चंद्र‌ग्रहण के बाद सूर्य ग्रहण आज लग रहा है। यूं तो यह खगोलीय घटना है लेकिन आध्यात्मिक जगत में इसका बहुत लेना देना होता है। इस बार सौभाग्य यह है कि सूर्य ग्रहण का सूतक भारत में नहीं है। लेकिन पृथ्वी के गोलार्ध पर उसका कुछ असर तो आता ही है। दूसरी बात, आज अमावस्या है, तभी तो सूर्य ग्रहण है। तो यह सूर्य ग्रहण के साथ सोमवती अमावस्या है। सूर्य ग्रहण एक आए तो ठीक है। लेकिन इतिहास इसका गवाह है कि महाभारत के समय तीन ग्रहण आ गए थे। अमावस्या पर तीर्थ स्नान का बहुत महत्व है। यदि इस दिन मौन व्रत धारण किया जाए, तो अश्वत्थ वृक्ष की 108 प्रदक्षिणा का फल मिलता है। पूरे साल में ज्यादा से ज्यादा दो ही सोमवती अमावस्या आती है। यानी 2 बार ही सोमवार को अमावस्या आती है। इस दिन भगवान शिव के साथ ही भगवान विष्णु और तुलसी पूजन भी किया जाना चाहिए।

वेदों में सूर्यग्रहण

ऋषि-मुनियों को ग्रह नक्षत्रों की इस घटना का ज्ञान बहुत पहले से ही है। महर्षि अत्रि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य माने गए हैं। ऋग्वेद के एक मन्त्र में यह चमत्कारी वर्णन मिलता है कि “हे सूर्य ! असुर राहु ने आप पर आक्रमण कर अन्धकार से आपको विद्ध (ढंक) कर दिया, उससे मनुष्य आपके रूप को पूर्ण रूप से देख नहीं पाए और हतप्रभ हो गए। तब महर्षि अत्रि ने अपने अर्जित ज्ञान की सामर्थ्य से छाया का दूरीकरण कर सूर्य का उद्धार किया।”

पुराणों में सूर्यग्रहण

मत्स्य पुराण अनुसार, सूर्य ग्रहण का संबंध राहु-केतु और उनके द्वारा अमृत पाने की कथा से है। एक बार स्वरभानु नाम का राक्षस अमृत पीने की लालसा में रूप बदलकर सूर्य और चंद्र के बीच बैठ गया लेकिन भगवान विष्णु ने उसे पहचान लिया, लेकिन तब तक स्वरभानु अमृत पी चुका था और अमृत उसके गले तक आ गया था। तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन यह राक्षस अमृत पी चुका था इसलिए मरकर भी जीवित रहा। इसका सिर राहु कहलाया और धड़ केतु। कथा के अनुसार, उस दिन से जब भी सूर्य और चंद्रमा पास आते हैं राहु-केतु के प्रभाव से ग्रहण लग जाता है।

महाभारत में सूर्यग्रहण

महाभारत युद्ध की शुरुआत ग्रहण के समय हुई थी। वहीं युद्ध के आखिरी दिन भी ग्रहण था। इसके साथ ही युद्ध के बीच में एक सूर्यग्रहण और हुआ था। इस तरह 3 ग्रहण होने से महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। महाभारत में अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली थी कि वो सूर्यास्त के पहले जयद्रथ को मार देंगे वरना खुद अग्निसमाधि ले लेंगे। कौरवों जयद्रथ को बचाने के लिए सुरक्षा घेरा बना लिया था, लेकिन उस दिन सूर्यग्रहण होने से सभी जगह अंधेरा हो गया। तभी जयद्रथ अर्जुन के सामने यह कहते हुआ आ गया कि सूर्यास्त हो गया है अब अग्निसमाधि लो। इसी बीच ग्रहण खत्म हो गया और सूर्य चमकने लगा। तभी अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया।

सूर्यग्रहण का ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक साल में तीन या उससे अधिक ग्रहण शुभ नहीं माने जाते हैं। बताया जाता है, कि अगर ऐसा होता है तो प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिल सकती है। ग्रहण से देश की आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव आते हैं।

सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक पहलू

विज्ञान के अनुसार, सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य की चमकती रोशनी चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती। चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढकने लगता है और इसी को सूर्यग्रहण कहा जाता है।

पूर्ण ग्रहण का क्षेत्र 177 Miles तक होता है। प्रत्येक साल में 2 से 5 आंशिक ग्रहण हो सकते हैं। लेकिन पूर्ण ग्रहण लगभग, 18 महीने में आ सकता है। यह ईश्वर की कपा है कि आने वाले महीने में पड़ने वाले ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं देंगे। हमारे ऋषि मुनियों ने ग्रहण के दौरान पूजा पाठ करने की बात कही है। सूर्य ग्रहण आज रात 9 बजकर 12 मिनट से शुरू हो जाएगा और इसका समापन रात 2 बजकर 22 मिनट पर होगा। इस सूर्यग्रहण का मध्य समय रात 11 बजकर 47 मिनट पर होगा।

पूर्ण सूर्य ग्रहण क्यों है खास?

पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के बेहद करीब होता है। बेहद पास होने के चलते चंद्रमा का आकार बड़ा दिखाई देता है और यह संपूर्ण सौर डिस्क को ढंक लेता है। सूर्य की किरणें उस समय पृथ्वी पर नहीं पहुंचती हैं, परिणामस्वरूप पृथ्वी पर अंधेरा छा जाता है। इसके पहले पूर्ण सूर्य ग्रहण 2017 में हुआ था। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस बार का सूर्य ग्रहण आधी सदी का सबसे लंबा सूर्य ग्रहण होगा। इसकी वजह है कि ग्रहण के एक दिन पहले ही चंद्रमा पृथ्वी के अपने सबसे निकटतम बिंदु पर आएगा। 8 अप्रैल को चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी 3.60 लाख किलोमीटर होगी, जो पृथ्वी से चंद्रमा की औसत दूरी 3.84 लाख किलोमीटर से काफी कम है।

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