स्वागत नव संवत्सर: विश्व की महान संस्कृति का ध्वजवाहक है हिन्दू नववर्ष

नव संवत्सर 2081 का आरंभ आज मंगलवार 9 अप्रैल से हो गया है। हम कामना करते हैं कि देवी के नौ रूपों के समान नूतन संवत्सर भी दिव्य हो। हिंदू नववर्ष आपके जीवन में सफलता, सौभाग्य और खुशियां लेकर आए, यह साल बीते हुए साल से भी ज्यादा समृद्ध हो। आइए! हम सब हर्षोल्लास के साथ विक्रम संवत 2081 का स्वागत करें। मां भगवती महामाया हम सभी का कल्याण करे।

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

धरती से लेकर गगन तक, चहुंओर नव पल्लव की सुगंध फैल रही है। प्रकृति की प्रसन्नता बूटे-बूटे में फैली है और मन उत्सुकता भरी प्रतीक्षा समाप्त हो गई है। आज आ गया है नवसंवत्सर यानी विक्रम संवत 2081। हमारी भारतीय संस्कृति का पावन पुनीत पर्व हिंदू नववर्ष आज मंगलवार 9 अप्रैल मंगलवार को चैत्र नवरात्रि की शुरूआत के साथ प्रारंभ हो गया है। खेत-खलिहानों ने मानो सुनहरे वस्त्र धारण कर लिए हैं। आंगन-ओसारे नवधान्य से आच्छादित होने को उतावले हैं। प्रकृति ने कैसा अद्भुत शृंगार रचाया है। आम के बौर प्रौढ़ हो टिकोरे का आकार ले रहे हैं। सेमल के पुष्पों ने धरा पर जैसे मनभावन रंगोली बना दी है। हवा कैसी मंद-सुगंधित है! यह तैयारी है नववर्ष यानी नवसंवत्सर विक्रम संवत 2081 के स्वागत की।

भारत का अतीत गौरवशाली है। यहां की सांस्कृतिक धरोहरों ने पूरे विश्व को वैज्ञानिकता, सहृदयता और करुणा की प्रेरणा दी है। हिंदू नव वर्ष यानी नव संवत्सर भी वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है।

चूंकि दुनिया के बड़े हिस्से पर कभी यूरोपीय देशों का कब्जा रहा, इसलिए इसाई कैलेंडर को मान लिया गया। हम धीरे-धीरे अपनी संस्कृति और जड़ों के कटते चले जा रहे हैं और खुद को पश्चिमी बनाने और दिखलाने में गर्व का अनुभव करते हैं। जो दुनिया भर के ‘डे’ मनाये जा रहे हैं, वे सब पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार नहीं तो और क्या हैं?

भारत देश त्योहारों का देश है। सनातन धर्म में हर त्योहार जीवन में खुशियां लेकर आता है। खास बात यह है कि हर त्योहार को मनाने के पीछे कुछ न कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हुए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 1 जनवरी को नए साल पर प्रकृति में कुछ भी खास बदलाव देखने को नहीं मिलते। जबकि चैत्र माह में चारों तरफ फूल खिल जाते हैं और पेड़ों पर नए पत्ते आ जाते हैं। ऐसा लगता है कि मानो प्रकृति भी नया साल मना रही हो। 31 मार्च को बैंकों की क्लोजिंग होती है और नया वित्तीय वर्ष शुरू होता है। अंग्रेजी नववर्ष की रात को लोग शराब पीकर जश्न मनाते हैं। शराब पीकर वाहन चलाने से वाहन दुर्घटना की संभावना और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश होता है। वहीं हिंदू नववर्ष की शुरूआत माता दुर्गा की पूजा-आराधना के साथ शुरू होता है। घर-घर में माता रानी की पूजा, गरीबों को जीवनपयोगी सामग्री बांटी जाती है। हवन-यज्ञ और पूजा-पाठ से शुद्ध सात्विक वातावरण बन जाता है।

हम भारतीयों का यह प्रथम कर्तव्य है कि पश्चिमी अंधानुकरण के भ्रमजाल से निकलकर अपनी जड़ों की ओर लौटें और महान सभ्यता के नववर्ष को बढ़-चढ़कर मनाएं, जिससे भारतवर्ष का गौरव पुनः विश्वपटल पर स्थापित हो सके। जिसमें सभी प्रकार की उन्नति का सार छिपा हुआ है। तो इस साल हम उम्मीद करते हैं कि शायद बहुत कुछ बदलेगा।

हिंदू कैलेंडर के इस पहले दिन को बहुत शुभ माना जाता है। इसी पंचांग के आधार पर  तमाम त्योहार मनाए जाते हैं। हमने संविधान में अपना राष्ट्रीय कैलेंडर शालिवाहन शक को अंगीकृत किया है, लेकिन सरकारी कैलेंडर के अलावा हम उसे नहीं जानते। या शादी-व्याह या पूजा-पाठ के लिए ही हमें अपने स्वदेशी कैलेंडर की याद आती है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे देश की राजभाषा तो हिन्दी है लेकिन कामकाज होता है अंग्रेज़ी में। सवाल सिर्फ एक नए साल के दिन का नहीं है। सवाल यह है कि इसके साथ ही आप के ऊपर एक अलग संस्कृति थोपी जाती है।

भारतीय नव वर्ष का स्वागत देवी पूजन और व्रत से होता है

यूरोपीय ईसाई सम्राज्य के प्रभावकाल में यह ईसाई कालगणना हम पर थोपी गई थी। उस समय की मानसिक दासता के कारण हम ईसाई वर्ष को मनाते चले आ रहे हैं। यह हमारे लिए लज्जा का विषय नहीं है क्या? आइये हम इसका परित्याग कर अपना भारतीय नववर्ष हषोल्लास से मनायें। यह भी ध्यान रखें कि इस ईसाई नववर्ष के आगमन का स्वागत नाच- गाने, उच्छंखलता, रात-रात भर होटलों में शराब के नशे में मौज मस्ती करना इत्यादि के साथ होता है। परन्तु भारतीय नववर्ष का स्वागत नवरात्र पूजन, देवी पूजन और व्रत इत्यादि के साथ प्रारम्भ होता है।

हिन्दू नववर्ष का धार्मिक महत्व

पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी ने पृथ्वी की रचना चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन की थी। इसी के चलते पंचांग के अनुसार, हर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नववर्ष शुरू हो जाता है।

भारत में मासों का नामकरण

भारत में मासों का नामकरण प्रकृति पर आधारित है। चित्रा नक्षत्र वाली पूर्णिमा के मास का नाम चैत्र है। विशाखा का वैखाख है। ज्येष्ठा का ज्येष्ठ है। श्रवण का श्रावण है। उत्तराभद्रपद का भाद्रपद है। अश्विनी का अश्विन है। कृतिका का कार्तिक है। मृगशिरा का मार्गशीर्ष। पुष्य का पौष। मघा का माघ और उत्तरा फाल्गुनी का फाल्गुन मास होता है।

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