पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज भगवान भास्कर मेष राशि में सायं काल ठीक आठ बजकर छब्बीस मिनट पर प्रवेश कर रहे हैं। विषुवत संक्रान्ति, पुण्य काल प्रातः उदयकाल से ही। काल युक्त सम्वत्सर का प्रारम्भ। ‘मेषसंक्रमे प्रागपरा दश घटिका: पुण्यकाल:।’ आज से सौर वैशाख मास का शुभारम्भ हो जाएगा। विगत वर्ष भी लिखा था कि महीनों का वजूद सूर्य के संक्रमण से होता है, जब भी हम संकल्प लेते हैं तो सौर मानेन कह कर उस माह का नाम लेते हैं।
हर दिन का अपना महत्व है, बचपन की एक घटना आज भी याद है जब मैं इस विषय में सामान्य जानकारी भी नहीं रखता था तो अचानक एक सुयोग्य मनीषी से पूछा कि सौर मास का अभिप्राय क्या है, परन्तु उनका कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला, इतना ही नहीं भगवान श्रीराम की जन्म कुण्डली में सूर्य मेष राशि का लिखा होने पर यह जिज्ञासा प्रबल थी कि जब भगवान श्रीराम का जन्म ” नौमी तिथि मथु मास पुनीता” मधु मास में हुआ तो सूर्य मेष राशि में क्यों? लिखा गया है। यह जिज्ञासा भी शान्त नहीं हुई बाद में जब कुछ गुरुजनों ने ज्योतिष के विषयक जानकारी दी तब चान्द्र मास व सौर मास का अन्तर समझ में आया, आज तो मास, नाक्षत्र मास अनेक प्रकार के महीने हैं जो सरलता से पहचाने जाते हैं। आज भी इस तरह की बहुत जिज्ञासाएं कतिपय महानुभावों की हो सकती हैं, जिन्हें शान्त करने का कुछ प्रयास किया जा सकता है।”
“आज से वैशाख मास प्रारम्भ हो रहा है, इस माह के विषयक स्कन्द पुराण में लिखा है कि — न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम् । न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम् ।। वैशाख का महीना मां की तरह सब प्राणियों को अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है। मां तो मां ही होती है, भले ही आज हम उन्हें वृद्धाश्रमों में भेज दें। धर्म और यज्ञ का सार, भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला है, और इस महीने जिस किसी व्यक्ति ने सूर्योदय से पूर्व स्नान किया उसके समस्त पाप शान्त हो जाते हैं। और यह विशेषता है इस महीने की – कि सब प्रकार के दान से जो पुण्य मिलता है, सब तीर्थों से जो फल मिलता है इस महीने वही फल केवल जल दान से प्राप्त होता है। यदि स्वयं जल दान न कर सकें तो अन्य लोगों को जल दान हेतु प्रेरित करें। दस हजार राजसूय यज्ञ के बराबर फल प्राप्त किया जा सकता है केवल जल दान से। छाता, पंखा, पादुका, आराम की व्यवस्था करने से अनन्त कोटि फल की उपलब्धि मिलती है। कुछ निषेध भी हैं यथा — तेल लगाना, दिन में सोना, कांसी के पात्र में भोजन करना, घर में नहाना, निषिद्ध पदार्थ खाना, दुबारा भोजन करना आदि। इस माह का नाम माधव है अर्थात् इस माह के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण हैं, अतः यह प्रार्थना भगवान से करनी चाहिए – ‘मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ। प्रातः स्नान करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव: ।।’ आज के दिन सत्तू दान का अपना विशेष महत्व है। तो आइए पुण्य अर्जित किया जाय। “
“उत्तराखंड में इस माह का विशेष महत्व है, प्राचीन काल से ही यह पूरा महीना मेलों (थौल) का रहता था। यद्यपि आज हर दिन मेला है पर तब जब मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे तब थौल की परम्परा को योजित कर बेटी बहुओं को भ्रमण की खुली छूट दी गई थी, तब हर मां, बहिन व बहु अपने माइके वालों से मिलने थौल जाती थी उसका कारण भी था कि बहुधा बेटी बहु माघ के महीने अपने ससुराल में आ जाती हैं, चैत्र मास माइके जाने हेतु प्रतिबंधित था अतः वैशाख में मेले के साथ अपने भाई बहनों से मिलने का सुअवसर मिल जाता था। तो आइए इस महीने मेलों का आनन्द भी लिया जाय। ऐसे सुविचारक देव भूमि के मनस्वी मनीषियों का हार्दिक धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करते हुए, माधव मास की सुमधुर बेला का हार्दिक अभिनन्दन एवं सुमधुर स्वागत।”