शास्त्रों में इंसान की जीवन को नियमों के सूत्रों में पिरोया गया है। विज्ञान के साथ शास्त्र का संयोग कर जिंदगी को चुस्त-दुरुस्त और सहज और सरल बनाने की कवायद की गई है। सनातन धर्म में ग्रहण, जन्म, मृत्यु इत्यादि कुछ ऐसी घटनाएँ हैं, जिससे कई नियम ऐसे जुड़े हुए हैं जो बहुत सारी चीजों को नहीं करने के लिए कहते हैं क्योंकि उस वक्त मनुष्य की ऊर्जा बहुत ही अधिक अशुद्ध रहती है। उस समयकाल के लिए सूतक और पातक जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है लेकिन बहुत से लोग इनके बारे में ठीक से नहीं जानते, ना ही इनके बीच का अंतर नहीं समझ पाते हैं और ना ही इससे जुड़े नियमों के पीछे का कारण जानते हैं। तो, समझाने का प्रयास करते हैं इन्हें…
घर में जब कोई शिशु जन्म लेता है, तो उस समय पूरे परिवार को सूतक लग जाता है। आप कह सकते हैं कि परिवार ‘छुतके’ से गुजर रहा होता है, मतलब वो अशुद्ध होते हैं, खासकर बच्चा और माँ। इस दौरान घर पर कोई धार्मिक कार्य करना या परिवार का किसी भी अवसर या धार्मिक कार्यों में भाग लेना वर्जित माना जाता है। इसे सूतक काल कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, जन्म की प्रक्रिया के दौरान नाल काटा जाता है, इसी से जुड़ी होती है यह अशुद्धि और इसलिए सूतक लगता है। प्रसूति स्थानको भी अशुद्ध माना जाता है और यही कारण है कि कई लोग अस्पताल से घर आकर स्नान करते हैं। सूतक काल हर जगह पर अलग-अलग दिनों का लगता है। कहीं 11 दिन और कहीं एक महीने का सूतक लगता है। इस दौरान माँ बनने वाली औरत को किचन अथवा किसी कार्य में लगाया जाता और उन्हें और बच्चे को बिलकुल अलग रखा जाता है। सूतक की अवधि हवन और पूजन के बाद ही समाप्त होती है। सूतक के पीछे वैज्ञानिक कारण यह भी माना गया है कि जन्म लेने के बाद माँ और बच्चे के संक्रमित होने की आशंका रहती है। इसलिए, उन्हें बाहरी वातावरण और लोगों से दूर रखा जाता है। साथ ही माँ को आराम भी मिल सके, इसलिए उन्हें घर के कामों से भी अलग रखा जाता है।
पातक काल क्या होता है? गरुड़ पुराण के अनुसार, परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर ‘पातक’ लगता है। पातक, दाह-संस्कार से जुड़ी अशुद्धियों के कारण माना जाता है। जिस दिन दाह-संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक की गणना शुरू होती है और यह 12 से 13 दिनों के लिए लगता है। यह भी कहा जाता है कि अगर परिवार की किसी स्त्री का यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए। इसके अलावा किसी दूसरे की शवयात्रा में जाने वाले को 1 दिन का, शव छूने वाले को 3 दिन और शव को कन्धा देने वाले को 8 दिन का पातक लगता है। घर में कोई आत्महत्या कर ले, तो 6 महीने का पातक माना जाता है। इस समय के दौरान सभी सगा-संबंधी अछूत माने जाते हैं और उन्हें किसी भी धार्मिक कार्य, घर के सदस्यों को रसोई में जाने, पूजा-पाठ, सामाजिक और मांगलिक कार्य करने की मनाही होती है। उन्हें दान पेटी या गुल्लक में रुपया डालना भी मना होता है। ब्राह्मण भोजन कराने के बाद ही पातक काल समाप्त होता है। पातक काल के पीछे भी वैज्ञानिक कारण मृतक से संक्रमत न फैलना माना जाता है। यही कारण है कि पातक काल के बाद घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है।