सुप्रभातम्: कलियुग में मुक्ति का साधन श्रीमद्भागवत कथा

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

श्रीमद्भागवत कल्पवृक्ष की ही तरह है, यह हमें सत्य से परिचय कराता है, कलयुग में तो श्रीमद्भागवत कथा की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि मृत्यु जैसे सत्य से हमें भागवत ही अवगत कराती है।

राजा परीक्षित बहुत ही धर्मात्मा राजा थे, उनके राज्य में कभी भी प्रजा को किसी भी चीज की कमी नहीं थी, एक बार राजा परीक्षित आखेट के लिए गए, वहाँ उन्हें कलयुग मिल गया, कलयुग ने उनसे राज्य में आश्रय माँगा, लेकिन उन्होंने देने से इनकार कर दिया, बहुत आग्रह करने पर राजा ने कलयुग को तीन स्थानों पर रहने की छूट दी।

पहला वह स्थान है जहाँ जुआ खेला जाता हो, दूसरा वह स्थान है जहाँ पराई स्त्रियों पर नजर डाली जाती हो और तीसरा वह स्थान है जहाँ झूठ बोला जाता हो, लेकिन राजा परीक्षित के राज्य में ये तीनों स्थान कहीं भी नहीं थे, तब कलयुग ने राजा से सोने में रहने के लिए जगह माँगी, जैसे ही राजा ने सोने में रहने की अनुमति दी, वे राजा के स्वर्णमुकुट में जाकर बैठ गए, राजा के सोने के मुकुट में जैसे ही कलयुग ने स्थान ग्रहण किया, वैसे ही उनकी मति भ्रष्ट हो गई।

कलयुग के प्रवेश करते ही धर्म केवल एक ही पैर पर चलने लगा, लोगों ने सत्य बोलना बंद कर दिया, तपस्या और दया करना छोड़ दिया, अब धर्म केवल दान रूपी पैर पर टिका हुआ है, यही कारण है कि आखेट से लौटते समय राजा परीक्षित श्रृंगी ऋषि के आश्रम पहुँच कर पानी की माँग करते हैं, उस समय श्रृंगी ऋषि ध्यान में लीन थे, उन्होंने राजा की बात नहीं सुनी, इतने में राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया।

जैसे ही उनके पुत्र को ज्ञात हुआ उन्होंने राजा परीक्षित को सर्पदंश से मृत्यु का श्राप दे दिया, सज्जनों! हम सब कलयुग के राजा परीक्षित हैं, हम सभी को कालरूपी सर्प एक दिन डस लेगा, राजा परीक्षित श्राप मिलते ही मरने की तैयारी करने लगते हैं, इस बीच उन्हें शुकदेवजी मिलते हैं और उनकी मुक्ति के लिए श्रीमद्भागवत्‌ कथा सुनाते हैं, शुकदेवजी उन्हें बताते हैं कि मृत्यु ही इस संसार का एकमात्र सत्य है, श्रीमद्भागवत की कथा हमें इसी सत्य से अवगत कराता है, भागवत कथा जीवन जीने के सार के साथ मोक्ष का मार्ग दिखाती है, भागवत श्रवण के बाद विचारों की शक्ति मानव को अच्छे काम के लिए प्रेरित करती है।

भागवत के विचारों को मानव मन में धारण करें तो मानव अपने जीवन को सरल बना सकता हैं, भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण ने सत्य के मार्ग का अनुसरण करने की बात कहीं है, जिस तरह से द्वारिका पहुंचे अपने निर्धन मित्र सुदामा को राजपाट छोडक़र प्रजा के सामने सम्मान दिया उसने मित्रता की मिसाल कायम की है, मित्रता में सत्य का काफी महत्व है, असत्य के कारण ही द्वारिकाधीश के मित्र सुदामा को कष्ट सहन करना पड़ा, सत्य से बड़ा कोई धर्म व झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं होता।

सच बोलने वाले को परमात्मा का साक्षात्कार होता है, हर चीज हमारे मन पर निर्भर करती है, मन मनुष्य की जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण कारक है, यही पुण्य और पाप का धरातल है, मन की पृष्ठभूमि पर ही सर्वप्रथम अच्छे या बुरे विचार उदभुत होते हैं, ये ही विचार क्रियात्मक बनकर अच्छे-बुरे कार्य करवाते है।

इसीलिए हमारी गति-प्रगति-दुर्गति सब मन में हैं, मन की वजह से हैं, मन को साफ-सुथरा रखना ही साधना है, अच्छे विचारों और शुभ कार्यों में इसे जोडक़र हम जीवन की उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, श्रीमद्भागवत साक्षात भगवान का स्वरूप है इसीलिए श्रद्धापूर्वक इसकी पूजा-अर्चना की जाती है, इसके पठन एवं श्रवण से भोग और मोक्ष दोनों सुलभ हो जाते हैं, मन की शुद्धि के लिए इससे बड़ा कोई साधन नहीं है।

सिंह की गर्जना सुनकर जैसे भेड़िये भाग जाते हैं, वैसे ही भागवत के पाठ से कलियुग के समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं, इसके श्रवण मात्र से श्रीहरि अपने हृदय में आ विराजते हैं।

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