सुप्रभातम्: क्या है नक्षत्रों का किस्मत से कनेक्शन? जानिए राशियों में नक्षत्र वितरण की वैज्ञानिकता

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

अक्सर सुनते हैं कि ‘ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं चल रहे’ या फिर ‘सारा खेल तो ग्रह नक्षत्रों का है’… यानी किस्मत को मानने वालों के लिए ग्रह-नक्षत्र बहुत मायने रखते हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र तो पूरी तरह ग्रह नक्षत्रों पर ही आधारित है। आखिर ये ग्रह नक्षत्र हैं क्या और कैसे इनसे जुड़ा है हमारी किस्मत का कनेक्शन। आज जानने की कोशिश करते हैं नक्षत्रों के बारे में।

क्या होते हैं नक्षत्र

दरअसल हम जब अंतरिक्ष विज्ञान या अंतरिक्ष शास्त्र की बात करते हैं तो चंद्रमा या तमाम ग्रहों की गति या चाल से बनने वाले समीकरणों की बात होती है। अंतरिक्ष में चंद्रमा की गति और पृथ्वी के चारों ओर घूमने की या परिक्रमा करने की प्रक्रिया अनवरत चलती है। चंद्रमा पृथ्वी की पूरी परिक्रमा 27.3 दिनों में करता है और 360 डिग्री की इस परिक्रमा के दौरान सितारों के 27 समूहों के बीच से गुजरता है। चंद्रमा और सितारों के समूहों के इसी तालमेल और संयोग को नक्षत्र कहा जाता है।

जिन 27 सितारों के समूह के बीच से चंद्रमा गुजरता है वही अलग अलग 27 नक्षत्र के नाम से जाने जाते हैं। यानी हमारा पूरा तारामंडल इन्हीं 27 समूहों में बंटा हुआ है। और चंद्रमा का हर एक राशिचक्र 27 नक्षत्रों में विभाजित है। किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होगा या सितारों के जिस समूह से होकर गुजर रहा होगा वही उसका जन्म नक्षत्र माना जाता है। और यही आपकी किस्मत की चाभी होती है।

कौन-कौन से हैं 27 नक्षत्र

अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र।

इन 27 नक्षत्रों को भी तीन हिस्सों में बांटा गया है – शुभ नक्षत्र, मध्यम नक्षत्र और अशुभ नक्षत्र।

शुभ नक्षत्र
शुभ नक्षत्र वो होते हैं जिनमें किए गए सभी काम सिद्ध और सफल होते हैं। इनमें 15 नक्षत्रों को माना जाता है – रोहिणी, अश्विन, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, रेवती, श्रवण, स्वाति, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा, उत्तरा फाल्गुनी, घनिष्ठा, पुनर्वसु।

मध्यम नक्षत्र
मध्यम नक्षत्र के तहत वह नक्षत्र आते हैं जिसमें आम तौर पर कोई विशेष या बड़ा काम करना उचित नहीं, लेकिन सामान्य कामकाज के लिहाज से कोई नुकसान नहीं होता। इनमें जो नक्षत्र आते हैं वो हैं पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूला और शतभिषा।

अशुभ नक्षत्र
अशुभ नक्षत्र में तो कभी कोई शुभ काम करना ही नहीं चाहिए। इसके हमेशा बुरे नतीजे होते हैं या कामकाज में बाधा जरूर आती है। इसके तहत जो नक्षत्र आते हैं वो हैं- भरणी, कृतिका, मघा और आश्लेषा। ये नक्षत्र आम तौर पर बड़े और विध्वंसक कामकाज के लिए ठीक माने जाते हैं जैसे – कोई बिल्डिंग गिराना, कब्ज़े हटाना, आग लगाना, पहाड़ काटने के लिए विस्फोट करना या फिर कोई सैन्य या परमाणु परीक्षण करना आदि। लेकिन एक आम आदमी या जातक के लिए ये चारों ही नक्षत्र बेहद घातक और नुकसानदेह माने जाते हैं।

क्या है पंचक और गंडमूल

पंचक
आपने पंचक और गंडमूल नक्षत्रों के बारे में भी अक्सर सुना होगा। हमारे घर के बुजुर्ग अक्सर ये कहते हैं कि पंचक लग गया, या पंचक में कोई काम नहीं करना चाहिए या फिर इस बच्चे में गंडमूल दोष है या गंडमूल की पूजा करानी है आदि-इत्यादि। आखिर ये पंचक और गंडमूल या मूल है क्या। पहले जानते हैं पंचक के बारे में।

जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि पर होता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। इसे शुभ नहीं माना जाता। इस दौराना घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती) होते हैं, उन्हें पंचक कहते हैं। इस दौरान आग लगने का खतरा होता है, इस दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, घर की छत नहीं बनवानी चाहिए, पलंग या कोई फर्नीचर भी नहीं बनवाना चाहिए। पंचक में अंतिम संस्कार भी वर्जित है।

गंडमूल
उसी तरह गंडमूल या मूल नक्षत्र को भी बेहद अशुभ माना जाता है। दरअसल नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और मूल नक्षत्र के तहत आने वाले आश्विन, आश्लेषा, मघा, मूला और रेवती नक्षत्रों को उग्र श्रेणी का माना जाता है। इन्हें ही मूल, गंडात या सतैसा भी कहा जाता है। जो लोग इसमें पैदा होते हैं, उनका जीवन बेहद उथल पुथल और तनावों से भरा होता है, इसीलिए बच्चों के जन्म के 27 दिन के बाद इसकी पूजा करवाई जाती है और इसके बुरे प्रभावों को खत्म किया जाता है।

वैदिक ज्योतिष में जब भी हम नक्षत्रों की बात करते हैं, हमें इन पहलुओं को जानना जरूरी होता है। साथ ही आपके व्यक्तित्व और स्वभाव का आईना होते हैं ये नक्षत्र। आप मानें या न मानें लेकिन जिस नक्षत्र में आपका जन्म हुआ है, उसका असर कहीं न कहीं आपके व्यवहार, जीवन शैली और व्यक्तित्व पर जरूर पड़ता है।

राशियों में नक्षत्रों का विभाजन वैज्ञानिक – आधार पर किया गया है। भचक्र के 360° अंशों को 120°-120° अंशों के तीन तृतीयांशों (Trines) में बांटा गया है। प्रत्येक तृतीयांश में 9 नक्षत्र (36 चरण) या चार राशियां हैं। प्रत्येक तृतीयांश अग्नि तत्व प्रधान राशि (मेष, सिंह, धनु) से प्रारम्भ होता है तथा जल तत्व प्रधान राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) पर समाप्त होता है। नक्षत्रों के स्वामियों का क्रम भी तीनों तृतीयांशों में समान है तथा एक ही स्वामी के तीनों नक्षत्रों का अंशात्मक मान भी सम्बन्धित तृतीयांश की सम्बन्धित राशि में समान है।

राशियों में नक्षत्रों के उपरोक्त वितरण से निम्न बातें स्पष्ट होती हैं-

(1) कुल 18 नक्षत्र पूरे-पूरे तथा 9 नक्षत्र टुकड़ों में मिलकर 12 राशियां बनाते है।

(2) (i) सूर्य के नक्षत्रों (कृतिका, पू. फाल्गुनी व पू. आषाढ़) का प्रथम चरण पिछली राशि में तथा अन्तिम 3 चरण अगली राशि में हैं।

(ii) मंगल के नक्षत्रों (मृगशिर, चित्रा व धनिष्ठा) के प्रथम दो चरण पिछली राशि में तथा अगले दो चरण अगली राशि में हैं।

(iii) गुरु के नक्षत्रों (पुनर्वसु, विशाखा व पूर्वा भाद्रपद) के प्रथम तीन चरण पिछली राशि में तथा अन्तिम एक चरण अगली राशि में है। इस प्रकार सूर्य, मंगल व गुरु के 9 नक्षत्रों का टुकड़ों में वितरण राशियों में क्रमशः 1:3, 2:2 तथा 3:1 के अनुपात में है।

(3) सूर्य के नक्षत्र 26° अंश 40° कला से, मंगल के नक्षत्र 23° अंश 20′ कला से तथा गुरु के नक्षत्र 20° अंश 0′ कला से प्रारम्भ होते हैं।

(4) शेष 6 ग्रहों के 18 नक्षत्र पूरे-पूरे राशियों में हैं।

(5) केतू के नक्षत्र 0° अंश 0′ कला से, शुक्र के नक्षत्र 13° अंश 20′ कला से, चन्द्रमा के नक्षत्र 10° अंश 0′ कला से, राहू के नक्षत्र 6° अंश 40′ कला से, शनि के नक्षत्र 3° अंश 20′ कला से तथा बुध के नक्षत्र 16° अंश 40′ कला से प्रारम्भ होते हैं।

(6) जहां दो तृतीयांश (Trines) मिलते हैं वे ऐसे स्थान हैं जहां राशि व नक्षत्र एक साथ समाप्त व प्रारम्भ होते हैं। ये बिन्दु हैं ०° अंश, 120° अंश तथा 240° अंश। प्रत्येक के अन्त में जल तत्व प्रधान राशि में बुध के नक्षत्र तथा प्रारम्भ में अग्नि तत्व प्रधान राशि में केतु के नक्षत्र हैं। इन बिन्दुओं पर जल व अग्नि की संयुक्ति होती है। अतः ये संधि स्थान हैं। इसीलिए बुध व केतू के नक्षत्रों के तीन जोड़े रेवती+अश्विनी, आश्लेषा +मघा तथा ज्येष्ठा+मूल नक्षत्र गण्ड मूल नक्षत्र कहलाते हैं।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राशियों के स्वामित्व तथा राशियों में नक्षत्र विभाजन की व्यवस्था वैज्ञानिक आधार पर की गई है। पश्चिमी देशों में नक्षत्रों को मान्यता नहीं दी गई है— केवल राशियां ही मानी जाती हैं।

कोणात्मक मापन इकाई : जैसा कि ऊपर बताया गया है भचक्र में 360° अंश होते हैं।

एक अंश (degree) में 60′ कला (Minutes) व एक कला में 60″ विकला (seconds) होते हैं।

अंश(°) चिन्ह कला(‘) का चिन्ह तथा विकला(“) का चिन्ह होता है।

एक राशि में 30° अंश या 1800 कलाएं या 108000 विकलाएं होती है एक नक्षत्र में 800 कलाएं या 48000 विकलाएं होती हैं।

इसी प्रकार एक चरण में 200 कलाएं या 12000 विकलाएं होती हैं। गणितीय क्रिया करते समय विशेष सावधानी की आवश्यकता है ।

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