इस साल आषाढ़ कृष्ण पक्ष सिर्फ 13 दिन का होगा। महाभारत के पहले 13 दिन का पक्ष निर्मित हुआ था। ज्योतिष शास्त्र में इसे शुभकारी नहीं माना जाता है।
पंडित हर्षमणि बहुगुण
इस वर्ष भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिथियों की सूक्ष्म गणना से जून माह अर्थात् आषाढ़ कृष्ण पक्ष में तेरह दिन का पक्ष घटित हो रहा है। यह पक्ष 23 जून से शुरू होकर 05 जुलाई तक है। ऐसे पक्ष को विश्व घस्र पक्ष कहा जाता है। प्राय: ऐसे पक्ष को शुभकारी नहीं माना जाता है। सामान्य रूप से कोई भी पक्ष 14/15/16 दिन का होता है यदि तिथि क्षय होती है तो 14 दिन का पक्ष व तिथि की वृद्धि होती है तो 16 दिन का पक्ष होता है। तिथि की गणना चन्द्रमा की गति पर आधारित है। परन्तु कई बार किसी पक्ष में दो तिथियों का क्षय होता है अतः पक्ष तेरह दिन का हो जाता है। इस तरह 13 दिन के पक्ष होने के कारण शास्त्रज्ञों ने इसे अशुभ माना है। जैसे कि कहा गया है कि —
अनेकयुग साहस्रयाद् दैवयोगात् प्रजायते।
त्रयोदशदिने पक्ष: तदा संहरते जगत् ।।
ऐसे में विश्व में किसी देश का विघटन या भूगोल परिवर्तन हो सकता है, समाज में अशान्ति का वातावरण, राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियां अस्थिर, अनेक प्रकार की असुविधाएं, प्राकृतिक आपदाएं आ सकती हैं। यह एक सामान्य विश्लेषण है। शास्त्र कारों का मत है जिसे हम नकार भी नहीं सकते हैं, परन्तु एक आंकलन यह भी है कि दिनांक 22 जून को पूर्णिमा तिथि अलग-अलग पंचागानुसार कमोवेश तीन घड़ी तक या साढ़े तीन घड़ी तक है। उसी दिन प्रतिपदा तिथि 59 घड़ी 25 पल या 59 घड़ी 48 पल या 59 घड़ी 58 पल गिनी गई है। अर्थात् अगले दिन 23 जून को प्रतिपदा है ही नहीं इससे यह आंकलन किया जा सकता है कि पक्ष 22 जून से ही प्रारम्भ हो गया है और तेरह दिन का न होकर चौदह दिन का पक्ष बन रहा है। यदि 23 जून को प्रतिपदा तिथि कुछ घड़ी पल भी होती तो अनहोनी सम्भव थी, (महाभारत काल में भी ऐसा ही था) यदि प्रतिपदा तिथि का क्षय न होकर द्वितीया तिथि का क्षय होता तो अनहोनी की सम्भावना बढ़ जाती, अतः भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है! फिर भी हम शास्त्रज्ञों के कथन को नकार भी नहीं सकते हैं व सावधान रहने की आवश्यकता महसूस करते हुए सावधान रहने की सलाह देते हैं।
वैसे इस पक्ष में सूर्य शनि का नव पंचम योग, मंगल केतु का षडाष्टक, मंगल पर शनि की नीच दृष्टि, यह सब आपसी कलह का कारक बनता है अतः संयम की सलाह भी दी जाती है। 22 जून को सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश कर रहे हैं इससे भूस्खलन की सम्भावना बढ़ सकती है। परन्तु दो जुलाई को योगिनी एकादशी है अतः विष्णु भगवान का पूजन अर्चन लाभदायक होगा, जो सभी दोषों का निवारण करेगा। ऐसी स्थिति मानव को असंतुलित करती है व अनावश्यक वाद- विवाद होने का भय बनता है। जब कभी अपने से बड़ों का अपमान होता है तभी प्रकृति अपना कोप प्रकट करती है। ग्रहों की अनुकूलता के लिए देवताओं व ब्राह्मणों की वन्दना करनी चाहिए, गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए, प्रतिदिन सज्जनों के साथ वार्ता करनी चाहिए, वेदों व कल्याणकारी कथाओं का श्रवण करना चाहिए, यज्ञ हवन करना, अन्त:करण की पवित्रता भगवन्नाम जप, दान से ग्रह दुर्भिक्ष पीड़ा कारक नहीं हो सकते हैं। निर्माण दायी संस्थान यदि ईमानदारी से कार्य करें तो असंतुलन से बचा जा सकता है।
देवब्राह्मणवन्दनाद् गुरु वच:सम्पादनात्
प्रत्यहं साधूनामभिभाषणाच्छ्रुतिरव-श्रेयस्कथाकर्णनात् ।
होमादध्वरदर्शनाच्छुचिमनोभावाज्जपाद्दानतो
नो कुर्वन्ति कदाचिदेव पुरुषस्यैवं ग्रहा:पीडनम् ।।
हर प्रकार का टकराव व बिखराव अन्त:करण की शुद्धि से शान्त हो जाता है। परन्तु मनो मालिन्यता के कारण अनेकों आपत्तियां स्वत: उत्पन्न हो जाती हैं। देश को उन्नति के पथ पर अग्रसर करवाने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए न कि अनावश्यक विरोध जैसा प्राय: देखा जा रहा है। शत्रुकृत गतिविधियों से सजगता की आवश्यकता है जिससे वे हमारी शान्ति भंग न करें। इस समय शुक्र के अस्त होने के कारण कोई हानि नहीं होगी क्योंकि कोई भी शुभ मुहूर्त न होने से कोई विशिष्ट कार्य होना नहीं है। परन्तु कुछ देशों के बीच युद्ध के कारण तनाव भी बन/ बढ़ सकता है, अपने देश में भी कहीं कहीं विरोध व टकराव की स्थिति हो सकती है, विशेष कर विपक्ष अनावश्यक हस्तक्षेप कर व अपनी वाणी पर संयम न रख कर विषम परिस्थितियों को उत्पन्न करने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकता है अतः ऐसी सलाह दी जानी चाहिए कि परिस्थिति को समझते हुए अनधिकार चेष्टाओं को कम किया जाए। आशा है ईश्वरीय कृपा हम पर व हमारे देश पर बनी रहेगी। विश्वास रखिए भारत माता के सपूतों में अदम्य साहस है व चुनौतियों का सामना करने की सामर्थ्य भी है।