हिमशिखर धर्म डेस्क
सावन शिवरात्रि यानी शिव चतुर्दशी आज 2 अगस्त को है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करनी चाहिए। इस दिन मां पार्वती को सौभाग्य सामग्री यानी 16 श्रंगार चढ़ाए जाते हैं। जिससे परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ती है और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इस पर्व पर रात के चारों प्रहर में पूजा करने की परंपरा भी है। यानी सूर्यास्त के बाद हर 3 घंटे में शिव-पार्वती पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है।
जल और दूध चढ़ाने से दूर होती है परेशानियां सावन महीने में शिवलिंग पर पानी का कलश या घड़ा स्थापित किया जाता है। माना जाता है कि जैसे घड़े से पानी की बूंद-बूंद शिवलिंग पर गिरती है, उसी तरह परेशानियां भी पानी की तरह बहकर दूर हो जाती है। साथ ही इस महीने में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा भी है। ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, इसलिए इन दो दिनों में शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए।
मिलता है शिव महापूजा का फल
सावन महीने में शिव चतुर्दशी पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद भगवान भोलेनाथ का जल और दूध से अभिषेक करने की परंपरा है। साथ ही फलों के रस से भी अभिषेक करना चाहिए।
शिव पुराण में बताया गया है कि फलों के रस से शिवजी का अभिषेक करने से हर तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां दूर होती हैं। इसके बाद शिवलिंग पर मदार, धतूरा और बेलपत्र चढ़ाना चाहिए। साथ ही शिवजी को मौसमी फलों का भोग लगाएं और इन दो दिनों तक व्रत रखें। इससे शिव महापूजा का फल मिलता है।
भगवान शिव को समर्पित शिवरात्रि का पर्व 2 अगस्त को मनाया जाएगा। सावन शिवरात्रि के दिन ही कांवड़ यात्रा के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। इस साल शिवरात्रि पर आर्द्रा नक्षत्र का दुर्लभ संयोग बन रहा है। जो शिव पूजा के लिए विशेष फलदायी माना जाता है। शिवरात्रि को ही कांवडिए शिवभक्त अपनी कठिन तपश्चर्या के माध्यम से लाए हुए गंगा जल से शिवृजी का जलाभिषेक करते है। इस साल की शिवरात्रि बहुत विशेष है। दो अगस्त को चतुर्दशी तिथि के साथ आर्द्रा नक्षत्र का विशेष संयोग बन रहा है। इस नक्षत्र में शिव पूजन बहुत ही श्रेष्ठ माना जाता है। आर्द्रा नक्षत्र के स्वामी भगवान शिव है। ऐसे में आर्द्रा नक्षत्र को परम उज्जवल माना जाता है। चतुर्दशी तिथि के साथ आर्द्रा नक्षत्र मे किया गया जप-पूजन-अभिषेक शिव भक्तों के लिए परम मंगलकारी माना जाता है।
कांवड़ जलाभिषेक प्रदोष काल में शुभ
आज शिवलिंग पर जलाभिषेक प्रातः काल नित्यकर्म के बाद का समय श्रेष्ठ है। वहीं, कांवड़ जलाभिषेक आज सायं काल प्रदोष काल (6 बजे के बाद) में व निशीथ (रात्रिकालीन) में करना शुभ रहेगा। कांवड़ जलाभिषेक सायं चार बजे चतुर्दशी तिथि शुरू होने के बाद से तीन अगस्त प्रातः दस बजे तक किया जा सकता है। विशेष सायं चार बजे से 7.50 तक रहेगा। 2 को जलाभिषेक न कर पाने के कारण 3 अगस्त को प्रातः साढ़े नौ बजे तक किया जा सकता है।