सुप्रभातम्: देवी दुर्गा के साथ ही छोटी कन्याओं की पूजा का पर्व है नवरात्रि, कन्या के साथ बालक को भी करें आमंत्रित

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

अभी नवरात्रि चल रही है। नौ दिवसीय पर्व में दुर्गा पूजा के साथ ही छोटी कन्याओं की पूजा करने की भी परंपरा है। इसके साथ ही नवमी, दशहरा पर रामायण का पाठ भी करना चाहिए।

अष्टमी और नवमी तिथि पर छोटी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। मान्यता है कि छोटी कन्याएं भी देवी दुर्गा का ही स्वरूप हैं। इनकी पूजा करने से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

ऐसे कर सकते हैं कन्या पूजन

  • अष्टमी-नवमी तिथि पर छोटी कन्याओं को उनके घर जाकर भोजन के लिए निमंत्रण देना चाहिए। नौ कन्याओं को आमंत्रित करेंगे तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
  • जब कन्याएं हमारे घर आएं तो उन्हें आसन पर बैठाएं। सभी कन्याओं के पैर धोएं।
  • कन्याओं के माथे पर कुमकुम से तिलक करें। हार-फूल पहनाएं। इसके बाद भोजन कराएं।
  • भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भी देनी चाहिए। उपहार भी दे सकते हैं।
  • उपहार में नए कपड़े, पढ़ाई से संबंधित चीजें, जूते-चप्पल, श्रृंगार का सामान दे सकते हैं।

कन्या के साथ बालक को भी करें आमंत्रित

कन्या के साथ बालक को भी करें आमंत्रित

कन्या पूजन में इस बात का ध्यान रखें कन्याओं की संख्या 9 होनी चाहिए। ये 9 कन्याएं मां दुर्गा के 9 स्वरूप मानी जाती हैं। उनके साथ एक बालक को भी आमंत्रित करें, वह बालक (बटुक भैरव) का रूप माना जाता है। शक्तिपीठ की सुरक्षा के लिए महादेव ने एक-एक भैरव रखा हुआ है इसलिए देवी के साथ इनकी भी पूजा की जाती है। शक्तिपीठ की पूजा के बाद अगर भैरव के दर्शन नहीं किए तो माता के दर्शन अधूरे माने जाते हैं।

देवी भागवत पुराण में कन्याओं को बताया है देवी का स्वरूप

श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के तृतीय स्कंध में कन्याओं का जिक्र है। इस पुराण में लिखा है कि दो वर्ष की कन्या कुमारी होती है, तीन साल की कन्या त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या कल्याणी, पांच साल की कन्या रोहिणी, छ: साल की कन्या कालिका, सात साल की कन्या चंडिका, आठ साल की कन्या शांभवी, नौ साल की कन्या दुर्गा और दस साल की कन्या सुभद्रा देवी का स्वरूप होती हैं।

श्रीराम नवमी पर कौन-कौन से शुभ काम कर सकते हैं

चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर श्रीराम का प्रकट उत्सव मनाया जाता है। त्रेता युग में इसी तिथि पर राजा दशरथ के यहां भगवान विष्णु ने राम के रूप में जन्म लिया था। नवमी तिथि पर चैत्र नवरात्रि का समापन भी होता है।

देवी दुर्गा की विधिवत पूजा करें। धूप-दीप जलाकर देवी मंत्र का जप करें।

अष्टमी और नवमी पर श्रद्धानुसार करें व्रत या उपवास

चैत्र नवरात्रि की अष्टमी और नवमी पर देवी पूजा के साथ ही श्रद्धानुसार व्रत या उपवास किया जाए तो पूरे नौ दिन व्रत-उपवास करने जितना पुण्य फल मिल सकता है। नवरात्रि में हर दिन व्रत-उपवास न रख पाएं हो तो अष्टमी और नवमी पर ही व्रत करने से पूरे शक्ति पर्व का फल मिल सकता है। इन दो तिथियों पर किए गए व्रत-उपवास से तन-मन की शुद्धि तो होती ही है साथ ही देवी की कृपा से मनोकामना पूरी हो जाती है। चैत्र नवरात्रि की अष्टमी और नवमी पर देवी पूजा और व्रत-उपवास से रोग, शोक और दोष खत्म हो जाते हैं।

सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर व्रत-उपवास
नवरात्रि में देवी दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मार्कंडेय पुराण का कहना है कि इन दिनों में निराहार यानी बिना कुछ खाए देवी की पूजा करनी चाहिए। हालांकि कई लोगों के लिए ये मुश्किल होता है। इसलिए शक्ति पर्व के आखिरी दो दिन यानी अष्टमी और नवमी पर इस तरह से कठिन तप और पूजा की जा सकती है। ऐसा करने से पूरे नवरात्र की पूजा का विशेष फल मिल सकता है।

इन तीन दिनों में ध्यान रखने वाली बातें
1. अष्टमी और नवमी पर तामसिक भोजन न करें। यानी लहसुन, प्याज और मांस सहित ठंड-बासी और किसी भी तरह का दूषित खाना न खाएं।
2. इन दो दिनों में अनाज नहीं खाना चाहिए। बल्कि फलाहार ही करें।
3. पुराणों के मुताबिक व्रत के दौरान दिन में नहीं सोना चाहिए। ऐसा करने से व्रत भंग होता है यानी टूट जाता है।
4. इन दिनों में शराब, तंबाकू और हर तरह के नशे से दूर ही रहना चाहिए।

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