शरद पूर्णिमा दो दिन : 16 रात को चंद्रमा की रोशनी में रखें खीर, 17 को सुबह करें स्नान-दान

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

इस साल शरद पूर्णिमा का संयोग 16 और 17 अक्टूबर दो दिन पड़ रहा है। ऐसे में आज 16 को व्रत, पूजन और चंद्रमा खीर रखने का विधान शास्त्र सम्मत है। वहीं, कल 17 को स्नान और दान किया जाएगा। आश्विन शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं।

यूं तो हर माह पूर्णिमा होती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व कुछ और ही है। इस साल पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात करीब 8 बजकर 40 मिनट पर शुरू होकर 17 को शाम 4 बजकर 50 मिनट तर रहेगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चांद अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। कुछ प्रांतों में खीर बनाकर रात भर खुले आसमान के नीचे रखकर सुबह खाते हैं। इसके पीछे भी यही मान्यता है कि चांद से अमृतवर्षा होती है। मान्यता है कि शरद पूर्णिंमा की रात को चांद पूरी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत गिरता है। ये किरणें सेहत के लिए काफी लाभदायक है। कहते हैं कि इस दिन चांद की किरणें धरती पर अमृतवर्षा करती हैं। इस रात्रि में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल केवल इसी रात में खिलता है। इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास की शुरूआत की थी। इस पूर्णिमा पर व्रत रखकर पारिवारिक देवता की पूजा की जाती है। इस दिन चांद धरती के सबसे निकट होता है इसलिए शरीर और मन दोनों को शीतलता प्रदान करता है। इसका चिकित्सकीय महत्व भी है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

वायु पुराण में चंद्रमा जल का कारक

बता दें कि, आयुर्वेदाचार्य साल भर इस पूर्णिमा का इंतजार करते हैं। जीवनदायिनी रोग नाशक जड़ी-बूटियों को शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनाई जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेद-पुराणों में मन के समान माना गया है। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक भी बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है।

शरद पूर्णिमा पर दीपदान की परंपरा

शरद पूर्णिमा के दिन ऐरावत पर बैठे इंद्र और महालक्ष्मी की पूजा करने से हर तरह का सुख और समृद्धि मिलती है। इस दिन व्रत या उपवास भी करना चाहिए और कांसे के बर्तन में घी भरकर दान करने से कई गुना पुण्य फल मिलता है। इस पर्व पर दीपदान करने की परंपरा भी है। रात में घी के दीपक जलाकर मन्दिरों, बगीचों और घर में रखें। साथ ही तुलसी और पीपल के पेड़ के नीचे भी रखें। ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए पापों का दोष कम हो जाता है।

जानें क्यों बनाते हैं खीर?

शरद पूर्णिमा की रात्रि को खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चन्द्रमा की किरणें अमृत वर्षा करती हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। दूध में लैक्टिक एसिड होता है। ये चंद्रमा की तेज प्रकाश में दूध में पहले से मौजूद बैक्टिरिया को बढ़ाता है और चांदी के बर्तन में रोग-प्रतिरोधक बढ़ाने की क्षमता होती है। इसलिए खीर को चांदी के बर्तन में रखें। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी सबसे तेज होती है। इस कारण खुले आसमान में खीर रखना फायदेमंद होता है।

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