जानिए रावण के पुष्पक विमान की खास बात, जानकर रह जाएंगे हैरान

रामायण में बताया गया है कि रावण ने सीता का हरण किया और पुष्पक से ही लंका पहुंचा था। रास्ते में जटायु और रावण का युद्ध भी हुआ था। इस युद्ध के समय रावण पुष्पक में था और जटायु ने उड़ते हुए युद्ध किया था। पुष्पक विमान मन की गति से चलता था और मनचाहे आकार में बढ़ या घट जाता था।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

रामायण में कई ख़ास चीजों का वर्णन मिलता है और उसमें से एक था पुष्पक विमान। यह ख़ास और अद्भुत पुष्पक विमान रावण के पास था और युद्ध के बाद रावण के पुष्पक विमान से श्रीराम, सीता, और लक्ष्मण ने लंका से अयोध्या की ओर यात्रा की थी। पुष्पक विमान आज के वायुयान के कांसेप्ट पर बना था लेकिन दिलचस्प बात ये है कि उस युग में किसी ने इसके बारे में कैसे सोचा क्योंकि भारतीय शास्त्रों में वायुयान की जानकारी देती हुई एक पुस्तक विमानशास्त्र है, लेकिन इसकी रचना बहुत बाद के समय में हुई। तो, चलिए जानते हैं कि यह कैसे बना, इसे किसने बनाया, यह कैसे काम करता था और इसकी ख़ास बातें क्या-क्या थीं…

रामायणकाल में भगवान राम ने लंकानरेश रावण का वध किया था। इस काल में कई विशेष अस्त्र-शस्त्रों का इस्तेमाल आज भी आधुनिक काल में किया जाता है।  रावण द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले पुष्पक विमान का वैज्ञानिक पद्धति आज के एयरोप्लेन में इस्तेमाल की जाती है। रावण उस दौरान भी विमान उड़ाने के लिए रनवे का इस्तेमाल करता था। यहीं नहीं, उस समय लंका (आज श्रीलंका) में उसके छह एयरपोर्ट हुआ करते थे।

विमान दो शब्दों से मिल कर बना है। वि शब्द का अर्थ स्काय यानी आकाश से है। वहीं, मान शब्द का मतलब मेजर नापतौल से है। इसका अर्थ है कि आकाश को नापने वाला। इस विमान पर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि रामायणकाल में भी विज्ञान आज के विज्ञान से आगे था।

भारत के प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में लगभग दस हजार वर्ष पूर्व विमानों का विस्तृत वर्णन दिया है। इसमें ज्यादातर रावण के पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, पुष्पक विमान का प्रारुप एवं निर्माण विधि अंगिरा ऋषि द्वारा की गयी थी एवं इसका निर्माण एवं साज-सज्जा देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा की गयी थी। यह विमान धन के देवता, कुबेर के पास हुआ करता था, किन्तु रावण ने अपने इस बड़े भाई कुबेर से बलपूर्वक उसकी नगरी लंका तथा पुष्पक विमान छीन लिया था। रावण के वध बाद भगवान राम ने इसे लेकर एकल प्रयोग करने के बाद इसे इसके मूल स्वामी कुबेर को लौटा दिया था। श्रीलंका की श्री रामायण रिसर्च समित्ति के अनुसार, रावण के पास अपने पुष्पक विमान को रखने के लिए चार विमान क्षेत्र थे। इन चार विमान क्षेत्रों में से एक का नाम उसानगोड़ा हवाई अड्डा था, जिसे हनुमान जी ने लंका दहन के समय जलाकर नष्ट कर दिया था। अन्य तीन हवाई अड्डे गुरूलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला थे, जो सुरक्षित बच गए।

बाद में अन्य ग्रन्थों में अन्य सैनिक क्षमताओं वाले विमानों, उनके प्रयोग, विमानों की आपस में भिड़ंत, अदृश्य होना और पीछा करना जैसी घटनाओं का उल्लेख मिला, लेकिन पुष्पक विमान सबसे पहला विमान कहा जा सकता है। समरांगणसूत्रधार नामक ग्रन्थ में विमानों के बारे में लगभग 225 से अधिक पदों में इनके निर्माण, उड़ान, गति, सामान्य तथा आकस्मिक अवतरण तथा पक्षियों द्वारा दुर्घटनाओं की के बारे में भी उल्लेख मिलते हैं।

 पुष्पक विमान कैसे चलता था?

अगर पुष्पक विमान की बात के जाए, तो इसकी ख़ास बात थी कि वो मन की गति से चलता था। उसमें किसी प्रकार का भौतिक ईंधन इस्तेमाल नहीं होता था। किसी स्थान के बारे में सोचने मात्र से ही यह क्षण भर में उस स्थान पर पहुंचा देता था। इसके आकार और आकृति को आधुनिक वायुयानों के अनुरूप बनाया जा सकता था। यह विमान नभचर वाहन होने के साथ-साथ भूमि पर भी चल सकता था। यात्रियों की संख्या और वायु के घनत्व के हिसाब से इसका आकार बदला जा सकता था। हनुमान जी ने जब इस अद्भुत विमान को देखा तो वे भी आश्चर्यचकित हो गये थे। रावण के महल के निकट रखा हुए इस विमान का विस्तार एक योजन लम्बा और आधे योजन चौड़ा था एवं सुन्दर महल के सामान प्रतीत होता था।

ऋगवेद में लगभग २०० से अधिक बार विमानों के बारे में उल्लेख दिया है। इसमें कई प्रकार के विमान जैसे तिमंजिला, त्रिभुज आकार के एवं तीन पहिये वाले, आदि विमानों का उल्लेख है। इनमें से कई विमानों का निर्माण अश्विनी कुमारों ने किया था, जो दो जुड़वां देव थे, एवं उन्हें वैज्ञानिक का दर्जा प्राप्त था। इन में साधारणतया तीन यात्री जा सकते थे एवं उन के दोनो ओर पंख होते थे। इन उपकरणों के निर्माण में मुख्यतः तीन धातुओं- स्वर्ण, रजत तथा लौह का प्रयोग किया गया था। वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं। उदाहरणतया अग्निहोत्र विमान में दो ऊर्जा स्रोत (ईंजन) तथा हस्ति विमान में दो से अधिक स्रोत होते थे। किसी विमान का रूप व आकार आज के किंगफिशर पक्षी के अनुरूप था। एक जलयान भी होता था जो वायु तथा जल दोनो में चल सकता था। कारा नामक विमान भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। त्रिताला नामक विमान तिमंजिला था। त्रिचक्र रथ नामक तीन पहियों वाला यह विमान आकाश में उड सकता था। किसी रथ के जैसा प्कीरतीत होने वाला विमान वाष्प अथवा वायु की शक्ति से चलता था। विद्युत-रथ नामक विमान विद्युत की शक्ति से चलता था।

समरांगणसूत्रधार नामक ग्रन्थ में विमानों के बारे में तथा उन से सम्बन्धित सभी विषयों के बारे में अद्भुत ज्ञान मिलता है। ग्रन्थ के लगभग २२५ से अधिक पदों में इनके निर्माण, उड़ान, गति, सामान्य तथा आकस्मिक अवतरण तथा पक्षियों द्वारा दुर्घटनाओं की के बारे में भी उल्लेख मिलते हैं।

प्राचीन हिन्दू साहित्य में देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाये गए अनेक विमानों का वर्णन मिलता है। जैसे वाल्मीकि रामायण के अनुसार शिल्पाचार्य विश्वकर्मा द्वारा पितामह ब्रह्मा के प्रयोग हेतु पुष्पक विमान का निर्माण किया गया था। विश्वकर्मा, की माता सती योगसिद्धा थीं।] देवताओं के साथ ही आठ वसु भी बताये जाते हैं, जिनमें आठवें वसु प्रभास की पत्नी योगसिद्धा थीं। यही प्रभास थे जिन्हें महाभारत के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था कि उन्हें मृत्यु लोक में काफ़ी समय व्यतीत करना होगा। तब गंगा ने उनकी माता बनना स्वीकार किया, तथा गंगा-शांतनु के आठवें पुत्र के रूप में उन्होंने देवव्रत नाम से जन्म लिया था, व कालांतर में अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण भीष्म कहलाये थे। इन्हीं प्रभास-योगसिद्धा संतति विश्वकर्मा द्वारा देवताओं के विमान तथा अस्त्र-शस्त्र का तथा महल-प्रासादों का निर्माण किया जाता था।

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