आत्मा के बारे में सबसे प्रमाणिक उल्लेख भगवदगीता में मिलता है। कहा गया है कि आत्मा अविनाशी है , इस पर किसी भी प्राकृतिक भाव का असर नहीं होता। आत्मा पर किसी भी प्रकार की चीजें असर नहीं करती। आत्मा का एक ही स्वाभाविक गुण है , स्वाभाविक रूप से प्रसार करना और ईश्वर में विलीन होना। जब तक आत्मा ईश्वर के अपने मुख्य बिंदु तक नहीं पहुंचती, तब तक शरीर बदलता रहता है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
आत्मा, आध्यात्मिक संसार में एक महत्वपूर्ण शब्द है। जिसका अर्थ हर जीव के अंदर ही छिपा होता है लेकिन बिना आध्यात्मिक जर्नी के आप इस आत्मा को बस भूत-प्रेत वाली आत्मा तक ही सीमित रख पाएंगे। आत्मा का असल मतलब समझने के लिए आपको आध्यात्मिक दृष्टिकोण चाहिए।
आत्मा का स्वरूप बताते हुए गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं,
न जायते म्रियते वा कदाचि
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
इसका अर्थ है कि,
यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मती है और न मरती है और न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाली है क्योंकि यह अजन्मी, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती।
आत्मज्ञानी पुरुष आत्मा को ही अपना स्वरूप मानते हैं ना कि इस शरीर को जो कि एक दिन खत्म हो जाएगा। ऐसे ज्ञानी पुरुष ही अपने कतर्व्यों का ठीक तरह से पालन कर पाते हैं क्योंकि इन्हें पता है कि शरीर के लिए कुछ बचाना और कमाना बेकार ही जाएगा। ख्याल रखना है तो आत्मा का रखो।
मानवी-जीवन को श्रेष्ठ और समुन्नत बनाने के लिये सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय करना और जीवन में उतारना अत्यन्त आवश्यक है। मनुष्य-जीवन का सच्चा मार्गदर्शक एवं आत्मा का भोजन है स्वाध्याय। स्वाध्याय से जीवन को आदर्श बनाने की सत्प्रेरणा स्वतः मिलती है।
स्वाध्याय हमारे चिंतन में सही विचारों का समावेश करके चरित्र-निर्माण करने में सहायक बनता है, साथ ही ईश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर कराता है। स्वाध्याय स्वर्ग का द्वार और मुक्ति का सोपान है
जिस तरह अपने शरीर को पोषित करने के लिए आप रोजाना बिना भूले तीन समय का खाना खाते हैं, वैसे ही आत्मा को भी पोषण की आवश्यकता होती है और उसे भी इसके लिए इसकी प्रकृति के अनुसार भोजन देना पड़ता है। आत्मा का पोषण आवश्यक है।
आत्मा को आखिर किस तरह के भोजन की आवश्यकता होती है
जैसा कि ऊपर बताया, ये पोषक तत्व आपकी आत्मा की बुनियादी जरूरतें हैं, जो उसे स्वस्थ रखती है लेकिन आत्मा को ऊर्जावान बनाये रखने के लिए उन पोषक तत्वों से भरपूर भोजन की आवश्यकता होती है, ताकि अपनी सर्वोच्चता (हायर सेल्फ) से जुड़ी रहे। आत्मा को ये भोजन कई तरीके से खिलाये जा सकते हैं। जैसे, आप जब कृतज्ञता का भाव रखते हैं और भोजन के रूप में रोजाना उसका अभ्यास करते हैं, तो अहंकार से बच जाते हैं। जब आप प्रार्थना करते हैं, तो खुद में सकारात्मकता, विश्वास और उम्मीद भरते हैं। जब आप दूसरों की सेवा करते हैं , तो खुद में करुणा और दया लाते हैं। जब आप मानसिक रूप से शांत रहते हैं, तो अपनी अंतरात्मा से जुड़ जाते हैं। जब आप प्रकृति से जुड़ते हैं, तो रचनात्मकता, इंट्यूशन और आंतरिक खुशी पाते हैं। संगीत से जब दोस्ती करते हैं, तो प्रेरणा, सुकून और संतोष मिलता है।
पोषण आपकी आत्मा को मिलती रहे, इसके लिए आवश्यक है…
ये सभी प्रकार के भोजन की आवश्यकता आत्मा को हमेशा स्वस्थ और पोषित रखती है। लेकिन इन सबसे जुड़े रहना और उसे बनाये रखना किसी भी मनुष्य के लिए आसान नहीं होता। इसलिए उसे कई प्रकार के आध्यात्मिक अभ्यासों की आवश्यकता पड़ती है, ताकि वह अपने लक्ष्य से भटके नहीं। ये भोजन और पोषण आपकी आत्मा को मिलती रहे, इसके लिए आवश्यक है आप ध्यान और योग करते रहें।