आज से मार्गशीर्ष माह शुरू, भगवान श्रीकृष्ण की पूजा से होगा लाभ

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पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज वृश्चिक संक्रान्ति और।

संक्रान्ति फल

पशुओं के लिए यह संक्रान्ति अच्छी है।
वस्तुओं की लागत सामान्य होगी।

आज से मार्गशीर्ष महीना शुरू हो गया है। इस महीने सुख-समृद्धि के लिए शंख और लक्ष्मी जी की पूजा करने की परंपरा है। सूर्य को जल भी चढ़ाते हैं। इससे हर तरह के दोषों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है, इस महीने किए गए स्नान-दान, व्रत और पूजा-पाठ से अक्षय पुण्य मिलता है।

श्रीकृष्ण का प्रिय महीना होने से इस मास में यमुना नदी में नहाने का विधान ग्रंथों में बताया है। इससे हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। इस महीने के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा पर चंद्रमा मृगशिरा नक्षत्र में रहता है। इसलिए इसे मार्गशीर्ष कहा गया है।

अगहन मास की दोनों एकादशी खास अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक इस तिथि पर भगवान विष्णु से एकादशी प्रकट हुई थी। इसलिए इसे उत्पन्ना कहते हैं। वहीं, शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्ष देने वाली होती है। पुराणों के मुताबिक इस तिथि पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई थी। इसलिए गीता जयंती इसी तिथि पर मनाते हैं।

अगहन मास में किसी भी शंख को श्रीकृष्ण का पांचजन्य शंख मानकर उसकी पूजा की जाती है। इससे कृष्ण प्रसन्न होते हैं। साथ ही इस महीने देवी लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए।

शंख को देवी लक्ष्मी का भाई माना जाता है। इसी कारण लक्ष्मी पूजा में शंख को भी खासतौर से रखते हैं। लक्ष्मी जी और शंख पूजा करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस महीने हर दिन श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप में पूजा करना चाहिए।

सूर्यदेव की पूजा का होता विशेष महत्व अगहन महीने में भगवान सूर्य की पूजा का भी विशेष फल है। ग्रंथों में बताया गया है कि इस महीने में रविवार को उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने से हर तरह के दोष और पाप खत्म हो जाते हैं। अगहन महीने में रविवार को बिना नमक का व्रत करना चाहिए। ऐसा करने से कुंडली में ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ फल में कमी आती है।

आज का पंचांग

शनिवार, नवम्बर 16, 2024
सूर्योदय: 06:45 ए एम
सूर्यास्त: 05:27 पी एम
तिथि: प्रतिपदा – 11:50 पी एम तक
नक्षत्र: कृत्तिका – 07:28 पी एम तक
योग: परिघ – 11:48 पी एम तक
करण: बालव – 01:21 पी एम तक
द्वितीय करण: कौलव – 11:50 पी एम तक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
वार: शनिवार
अमान्त महीना: कार्तिक
पूर्णिमान्त महीना: मार्गशीर्ष
चन्द्र राशि: वृषभ
सूर्य राशि: तुला – 07:41 ए एम तक

पीपल के वृक्ष की रविवार् पूजा क्यों नहीं की जाती?

सूतजी ने ऋषियों से, कहा प्रसंग बखान।
चौंतीसवें अध्याय पर, दया करो भगवान।।

ऋषियों ने पूछा – हे सूतजी! पीपल के वृक्ष की रविवार् पूजा क्यों नहीं की जाती?

सूतजी बोले – हे ऋषियों! समुद्र-मंथन करने से देवताओं को जो रत्न प्राप्त हुए, उनमें से देवताओं ने लक्ष्मी और कौस्तुभमणि भगवान विष्णु को समर्पित कर दी थी. जब भगवान विष्णु लक्ष्मी जी से विवाह करने के लिए तैयार हुए तो लक्ष्मी जी बोली – हे प्रभु! जब तक मेरी बड़ी बहन का विवाह नहीं हो जाता तब तक मैं छोटी बहन आपसे किस प्रकार विवाह कर सकती हूँ इसलिए आप पहले मेरी बड़ी बहन का विवाह करा दे, उसके बाद आप मुझसे विवाह कीजिए. यही नियम है जो प्राचीनकाल से चला आ रहा है.

सूतजी ने कहा – लक्ष्मी जी के मुख से ऎसे वचन सुनकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी की बड़ी बहन का विवाह उद्दालक ऋषि के साथ सम्पन्न करा दिया. लक्ष्मी जी की बड़ी बहन अलक्ष्मी जी बड़ी कुरुप थी, उसका मुख बड़ा, दाँत चमकते हुए, उसकी देह वृद्धा की भाँति, नेत्र बड़े-बड़े और बाल रुखे थे. भगवान विष्णु द्वारा आग्रह किये जाने पर ऋषि उद्दालक उससे विवाह कर के उसे वेद मन्त्रों की ध्वनि से गुंजाते हुए अपने आश्रम ले आये. वेद ध्वनि से गुंजित हवन के पवित्र धुंए से सुगन्धित उस ऋषि के सुन्दर आश्रम को देखकर अलक्ष्मी को बहुत दु:ख हुआ. वह महर्षि उद्दालक से बोली – चूंकि इस आश्रम में वेद ध्वनि गूँज रही है इसलिए यह स्थान मेरे रहने योग्य नहीं है इसलिए आप मुझे यहाँ से अन्यत्र ले चलिए.

उसकी बात सुनकर महर्षि उद्दालक बोले – तुम यहाँ क्यों नहीं रह सकती और तुम्हारे रहने योग्य अन्य कौन सा स्थान है वह भी मुझे बताओ. अलक्ष्मी बोली – जिस स्थान पर वेद की ध्वनि होती हो, अतिथियों का आदर-सत्कार किया जाता हो, यज्ञ आदि होते हों, ऎसे स्थान पर मैं नहीं रह सकती. जिस स्थान पर पति-पत्नी आपस में प्रेम से रहते हों पितरों के निमित्त यज्ञ होते हों, देवताओं की पूजा होती हो, उस स्थान पर भी मैं नहीं रह सकती. जिस स्थान पर वेदों की ध्वनि न हो, अतिथियों का आदर-सत्कार न होता हो, यज्ञ न होते हों, पति-पत्नी आपस में क्लेश करते हों, पूज्य वृद्धो, सत्पुरुषों तथा मित्रों का अनादर होता हो, जहाँ दुराचारी, चोर मनुष्य निवास करते हों, जिस स्थान पर मद्यपान, ब्रह्महत्या आदि पाप होते हों, ऎसे स्थानों पर मैं प्रसन्नतापूर्वक निवास करती हूँ.

सूतजी बोले – अलक्ष्मी के मुख से इस प्रकार के वचन सुनकर उद्दालक का मन खिन्न हो गया. वह इस बात को सुनकर मौन हो गये. थोड़ी देर बाद वे बोले कि ठीक है, मैं तुम्हारे लिए ऎसा स्थान ढूंढ दूंगा. जब तक मैं तुम्हारे लिए ऎसा स्थान न ढूंढ लूँ तब तक तुम इसी पीपल के नीचे चुपचाप बैठी रहना. महर्षि उद्दालक उसे पीपल के वृक्ष के नीचे बैठाकर उसके रहने योग्य स्थान की खोज में निकल पड़े परन्तु जब बहुत समय तक प्रतीक्षा करने पर भी वे वापिस नहीं लौटे तो अलक्ष्मी विलाप करने लगी. जब वैकुण्ठ में बैठी लक्ष्मी जी ने अपनी बहन अलक्ष्मी का विलाप सुना तो वे व्याकुल हो गई. वे दुखी होकर भगवान विष्णु से बोली – हे प्रभु! मेरी बड़ी बहन पति द्वारा त्यागे जाने पर अत्यन्त दुखी है. यदि मैं आपकी प्रिय पत्नी हूँ तो आप उसे आश्वासन देने के लिए उसके पास चलिए. लक्ष्मी जी की प्रार्थना पर भगवान विष्णु लक्ष्मी जी सहित उस पीपल के वृक्ष के पास गये जहाँ अलक्ष्मी बैठकर विलाप कर रही थी.

उसको आश्वासन देते हुए भगवान विष्णु बोले – हे अलक्ष्मी! तुम इसी पीपल के वृक्ष की जड़ में सदैव के लिए निवास करो क्योंकि इसकी उत्पत्ति मेरे ही अंश से हुई है और इसमें सदैव मेरा ही निवास रहता है. प्रत्येक वर्ष गृहस्थ लोग तुम्हारी पूजा करेगें और उन्हीं के घर में तुम्हारी छोटी बहन का वास होगा. स्त्रियों को तुम्हारी पूजा विभिन्न उपहारों से करनी चाहिए. मनुष्यों को पुष्प, धूप, दीप, गन्ध आदि से तुम्हारी पूजा करनी चाहिए तभी तुम्हारी छोटी बहन लक्ष्मी उन पर प्रसन्न होगी.

सूतजी बोले – ऋषियों! मैंने आपको भगवान श्रीकृष्ण, सत्यभामा तथा पृथु-नारद का संवाद सुना दिया है जिसे सुनने से ही मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है और अन्त में वैकुण्ठ को प्राप्त करता है. यदि अब भी आप लोग कुछ पूछना चाहते हैं तो अवश्य पूछिये, मैं उसे अवश्य कहूँगा.

सूतजी के वचन सुनकर शौनक आदि ऋषि थोड़ी देर तक प्रसन्नचित्त वहीं बैठे रहे, तत्पश्चात वे लोग बद्रीनारायण जी के दर्शन हेतु चल दिये. जो मनुष्य इस कथा को सुनता या सुनाता है उसे इस संसार में समस्त सुख प्राप्त होते हैं.

आज का विचार

बलशाली होने का अर्थ यह नहीं कि आप दूसरों को कितना झुका सकते हो अपितु यह है, कि आप स्वयं कितना झुक सकते हो

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